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प्रगतिशील लेखक संघ की सभा में याद किए गए पीर मुहम्मद मूनिस

BeyondHeadlines News Desk

नई दिल्ली : प्रगतिशील लेखक संघ, जोशी-अधिकारी इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेस और इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल एजुकेशन के संयुक्त तत्वाधान में चम्पारण सत्याग्रह के नायक पीर मुहम्मद मूनिस को याद करते हुए सेकूलर हाउस में दिनांक 16 फरवरी 2018 को एक सभा आयोजित की गई.

अब यह बात सर्वविदित हो चुकी है कि महात्मा गांधी को सबसे पहले चंपारण ले जाने और वहां के किसानों की दुर्दशा से अवगत कराने का श्रेय पीर मुहम्मद मूनिस को जाता है. चंपारण सत्याग्रह के पिछले साल सौ साल पूरे होने के मौक़े पर इस तथ्य ने बड़े पैमाने पर लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा था.

सभा में वक्ताओं ने चंपारण सत्याग्रह और गांधी जी को चंपारण ले जाने में पीर मुहम्मद मूनिस की भूमिका को लेकर विस्तार से चर्चा की.

पीर मुहम्मद मूनिस पर एक पुस्तिका लिख चुके और लगातार मूनिस के ऊपर शोधपरक काम में जुटे अफ़रोज़ आलम साहिल ने अपने मुख्य व्यक्तव्य में मूनिस की एक शिक्षक और पत्रकार के तौर पर भूमिका को लेकर विस्तार से चर्चा की.

उन्होंने कहा कि, ये मूनिस के क़लम का जादू ही था कि गांधी जी चम्पारण चले आएं. मूनिस के ज़रिए लिखे गए एक पत्र ने गांधी को इतना प्रभावित किया कि वो खुद को चम्पारण आने से रोक नहीं सकें. 

इसके अलावा उन्होंने चम्पारण में गांधी जी के सहयोगी रहे और भी कई शख्सियतों का ज़िक्र करते हुए कहा कि इतिहास में इन्हें उचित जगह दिए जाने की ज़रूरत है.

जेएनयू के प्रोफ़ेसर अख़लाक़ आहन ने इस मौक़े पर अपने संबोधन में चम्पारण की धरती का भारत के इतिहास के परिप्रेक्ष्य में सही मूल्यांकन करने की बात कही.

उन्होंने चंपारण में सत्याग्रह शुरू होने की पृष्ठभूमि पर बात की और कहा कि चम्पारण का सत्याग्रह अचानक नहीं शुरू हो गया था.

दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर और प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष अली जावेद ने वर्तमान संदर्भ में पीर मुहम्मद मूनिस की पत्रकारिता की प्रासंगिकता का उल्लेख किया.

उन्होंने कानपुर से निकलने वाले अख़बार प्रताप, मूनिस जिसके संवाददाता थे, का ज़िक्र करते हुए कहा कि उसे अभी निकल रहे प्रताप अख़बार से संबंध करके देखने की ग़लतफ़हमी नहीं पैदा होनी चाहिए. कानपुर से निकलने वाले प्रताप अख़बार के संपादक गणेश शंकर विद्यार्थी जैसे स्वतंत्रता सेनानी रहे हैं.

जेएनयू के ही प्रोफ़ेसर एस.एन. मालाकार ने इस मौक़े पर चम्पारण के आंदोलन और वहां के प्रवास का गांधी जी के जीवन पर पड़ने वाले असर का ज़िक्र किया.

उन्होंने वर्तमान पश्चिमी चंपारण स्थित गांधी जी के भितिरहवा आश्रम का उल्लेख करते हुए स्थानीय स्तर पर प्रचलित कई किवदंतियों की चर्चा की.

दिल्ली विश्वविद्यालय में इतिहास का अध्यापन कर रहे सौरभ वाजपेयी ने वर्तमान समय में गांधीवाद और मूनिस जैसे उनके सहयोगियों के जीवन मूल्यों को आत्मसात करने की अहमियत पर बल दिया.

इससे पहले कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए जेएनयू के प्रोफ़ेसर अजय पटनायक ने विषय प्रवेश किया और कहा कि इस तरह के आयोजन पीर मुहम्मद मूनिस जैसे इतिहास में भूला दिए गए आज़ादी के नायकों को सही श्रद्धांजली है.

प्रगतिशील लेखक संघ की ओर से दिल्ली राज्य के महासचिव तारेंद्र किशोर ने वक्ताओं और श्रोताओं का स्वागत किया.

इस मौक़े पर दिल्ली विश्वविद्यालय, जामिया मिल्लिया इस्लामिया और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के दर्जनों छात्र मौजूद थे. कार्यक्रम के अंत में इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल एजुकेशन के रविभूषण वाजपेयी ने वक्ताओं और श्रोताओं का धन्यवाद ज्ञापन किया.

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