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कांग्रेस-सपा और खुफिया एजेंसियों की साम्प्रदायिकता के खिलाफ सम्मेलन

BeyondHeadlines News Desk

लखनऊ, आतंकवाद के नाम पर कैद निर्दोषों का रिहाई मंच 19 सितम्बर को बाटला हाउस फर्जी मुठभेड के चौथी बरसी पर कांग्रेस, सपा और खुफिया एंजेसियों की साम्प्रदायिकता के खिलाफ़ सम्मेलन करेगा. रिहाई मंच के मोहम्मद शुएब, शाहनवाज आलम और राजीव यादव ने बताया कि यूपी प्रेस क्लब में होने वाले इस सम्मेलन में वरिष्ठ वामपंथी नेता अतुल कुमार अंजान, वरिष्ठ पत्रकार अनिल चमडिया, इंडियन नेशनल लीग के राष्टीय अध्यक्ष मो. सुलेमान, पीयूसीएल झारखंड के महासचिव शशिभूषण पाठक, वरिष्ठ समाजवादी नेता और मध्य प्रदेश रिहाई मंच से जुडे एडवोकेट नूर मोहम्मद, प्रशांत राही, सउदी अरब से भारतीय खुफिया एजेंसियों द्वारा गायब कर दिये गये दरभंगा के इंजीनियर फसीह महमूद की पत्नी निकहत परवीन समेत कई पीडि़त परिवारों के लोग और सामाजिक कार्यकर्ता शामिल रहेंगे.

रिहाई मंच के नेताओं ने कहा कि बाटला हाउस फर्जी एंकाउंटर अब सिर्फ मानवाधिकार उत्पीड़न का मामला भर नहीं रह गया है बल्कि यह एक राजनीतिक हत्या का मामला है जो भारतीय लोकतंत्र और उससे प्राप्त जीने के मूलभूत अधिकारों पर कांग्रेस और खुफिया एजेंसियों के साम्प्रदायिक हमले को दर्शाता है. उन्होंने समाजवादी पार्टी पर आरोप लगाते हुये कहा कि बाटला हाउस फर्जी मुठभेड पर संसद में अपनी चुप्पी से उसने अपने असली साम्प्रदायिक चेहरे को उजागर तो किया ही है, आतंकवाद के नाम पर जेलों में कैद निर्दोष मुस्लिम नौजवानों को छोड़ने के अपने चुनावी वादे से मुकर कर मुसलमानों को ठगने का भी काम किया है. उन्होंने आगे कहा कि इसीलिये रिहाई मंच बाटला हाउस फर्जी मुठभेड की चौथी बरसी पर तमाम सेक्यूलर राजनीतिक धाराओं के साथ कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और खुफिया एजेंसियों की साम्प्रदायिकता के खिलाफ आम राय बनाते हुये सम्मेलन में राजनीतिक प्रस्ताव पास करेगा.

रिहाई मंच द्वारा 13 सितम्बर से 19 सितम्बर तक चलाया जा रहा खुफिया एजेंसियों की साम्प्रदायिकता के खिलाफ जन जागरण अभियान फूलबाग, अमीनाबाद और मौलवीगंज में भी जारी रहा. जिसमें गुफरान सिद्दीकी, तारिक शफीक, शाहनवाज खान आदि शामिल रहें. 

रिहाई मंच ने इस अवसर पर एक पर्चा जारी किया है. जिसमें रिहाई मंच का कहना है कि बाटला हाउस फर्जी एनकाउंटर के चार साल पूरे हो गए हैं. इस दरम्यान सरकार का साम्प्रदायिक चेहरा अपने और भी भयानक रूपों में हमारे सामने आया है. जिसके तहत देश के तमाम हिस्सों से निर्दोष मुसलमान नौजवानों को सरकार ने अपनी अल्पसंख्यक विरोधी नितियों के तहत उठाया. सिर्फ आजमगढ़ से ही सात नौजवानों को ‘गायब’ कर दिया. तो वहीं इन नीतियों के खिलाफ सवाल उठाने वाले पत्रकारों एस.एम.ए. काजमी और मतिउर्रहमान को आतंकी बताकर पकड़ लिया.

स्थिति यहां तक भयावह हो गई कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के अहिंसावादी सिद्धांत पर चलने का दावा करने वाली पुणे की यरवदा जेल में कतील सिद्दिकी की हत्या खुफिया एजेंसियों ने करा दी, तो वहीं दरभंगा के फसीह महमूद को 13 मई को भारतीय खुफिया एजेंसियों ने सउदी अरब से उनके घर से गायब कर दिया. जिस पर सरकार के हर मंत्रालय के चौखट पर गुहार लगाने के बावजूद उनकी पत्नी निकहत परवीन को तमाम अन्ताराष्ट्रीय संधियों और मानवाधिकारों को धता बताते हुए भारत सरकार न उन्हें अपने पति से मिलने दे रही है न फसीह महमूद को भारत ला रही है. जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि खुफिया एजेंसियों ने भारतीय लोकतंत्र और उससे प्राप्त जनता के अधिकारों को किस क़दर बंधक बना लिया है. इशरत जहां फर्जी मुठभेड़ तो इसका सबसे चर्चित उदाहरण रहा जिसमें खुद सीबीआई ने आईबी की भूमिका को अपने जांच के दायरे में ला दिया.

यह दौर इसका भी गवाह बना कि कैसे हमारी सुरक्षा एजेंसियां जनता द्वारा चुनी गई सरकारों को बिना विश्वास में लिए सीआईए, मोसाद और इन्टरपोल से सीधे संचालित होने लगीं और सुरक्षा सम्बंधी आन्तरिक नीतियों को वैसे ही नियंत्रित करने लगीं. जैसे देशी-विदेशी मल्टीनेशनल कम्पनियां हमारी आर्थिक नीतियां नियंत्रित करती हैं. जिसका नजारा हम कोडनकुलम, छत्तीसगढ़, झारखंड से लेकर नर्मदा घाटी में देख सकते हैं.

बाटला हाउस फर्जी मुठभेड़ और उसके बाद के चार साल इस बात के भी गवाह बने किस तरह काग्रेंस ने जांच के नाम पर तो कभी सोनिया के आंसू के नाम पर जनता को ठगने की कोशिश की. तो वहीं आतंकवाद के नाम पर बेगुनाह मुस्लिम नौजवानों को छोड़ने के वादे के साथ सत्ता तक पहुंची सपा सरकार ने वादा खिलाफी तो की ही तीन बेगुनाहों को और भी पकड़ा, तारिक-खालिद की गिरफ्तारी पर गठित निमेष आयोग की रपट को दबा दिया. संसद में बटला हाउस मसले पर उसकी आपराधिक चुप्पी तो जग जाहिर है.

ऐसे में आज ज़रुरी हो जाता है कि लोकतंत्र, मानवाधिकारों और राजनीतिक अधिकारों की रक्षा के लिए सरकारों और खुफिया एजेंसियों के जनविरोधी और साम्प्रदायिक नीतियों के खिलाफ देश एक निर्णायक संघर्ष के लिए तैयार हो. यह सम्मेलन इसी की एक कोशिश है।

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