Edit/Op-Ed

क्या कांडा ने जो किया वो बलात्कार नहीं?

Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines

नई दिल्ली. हम लंबे वक्त से उदासीनता के आनंद में लीन थे और अचानक एक दर्द भरी चीख ने हमारे चैन में खलल डाल दिया. हम बदहवास है, समझ नहीं पा रहे हैं कि क्या हो रहा है और क्यों हो रहा है. अपने शिथिल शरीर के अंदर अचानक हमें संवेदनशील आत्मा महसूस हो रही है. लग रहा है जैसे किसी ने जोर से झकझोर दिया है. सारी मानवता, सारी संवेदनशीलता एक झटके में ही जागृत हो गई है. लेकिन जो सड़को और संसद में प्रदर्शित हो रही है वो असल में हमारी संवेदनशीलता नहीं बल्कि हमारा डर है.

लेकिन सवाल यह है कि हमारी संवेदनशीलता के स्तर का पैमाना जघन्यता क्यों हैं? दिल्ली में हुआ गैंगरेप जघन्य है इसलिए हमें पीड़ा महसूस हो रही है? अखबारों में लिखे शब्द हमारे शरीर में सूइयों की तरह चुभ रहे हैं. ऐसा लग रहा है जैसे सरिया हमारे ही शरीर में घुसेडा़ गया हो.

23 साल की छात्रा के साथ जो हुआ है उसे सोचकर ही हमारा शरीर ठंडा पड़ रहा है. हम डर गए हैं, सहम गए हैं. और हम इस डर को प्रदर्शनों, नारों, धरनों और सोशल मीडिया अपडेट्स के जरिए निकालने की कोशिश कर रहे हैं ताकि एक बार फिर चैन से उदासीनता की सांस लेते रहें, सबकुछ नजरअंदाज करके आगे बढ़ते रहे हैं.

लेकिन सवाल यह है कि क्या दिल्ली की छात्रा के साथ जो हुआ वही बलात्कार है? यदि इस मामले से जघन्यता (जिससे हम डरे हुए हैं और हमें अपने मानव होने पर ही शक हो रहा है) को हटा दिया जाए तो ऐसी घटनाएं तो आम हैं. जो जहां जबर है वहां बलात्कार कर रहा है. कहीं ताकत के बल पर, कहीं पैसे के बल पर और कहीं दोनों के बल पर.

उदाहरण के तौर पर हरियाणा के पूर्व गृहमंत्री गोपाल गोयल कांडा का ही मामला ले लीजिए. कांडा ने न सिर्फ गीतिका का बलात्कार किया बल्कि पूरे सिस्टम और समाज का भी वह रेप करता रहा, लेकिन हम पर फर्क नहीं पड़ा. जिस शारिरिक पीड़ा से दिल्ली गैंगरेप की पीड़िता गुजर रही है उसी स्तर की मानसिक पीड़ा को गीतिका शर्मा ने हर रोज महसूस किया और अंत में हालात ऐसे हो गए कि उसे अपनी जान तक देनी पड़ी. लेकिन अपराध की हमारी परिभाषा जो गीतिका के साथ हुआ उसे बलात्कार मानने के लिए तैयार नहीं है.

दिल्ली गैंगरेप के मामले में सतर्क और संवेदनशील होने का दावा कर रही दिल्ली पुलिस की हकीकत को गीतिका शर्मा सुसाइड कैस बयां करता हैं. BeyondHeadlines ने आरटीआई के ज़रिए सवाल पूछककर दिल्ली पुलिस की उदासीनता का पर्दाफाश करने की कोशिश की थी. गीतिका की मौत के 13 दिन बाद तक मुख्य अभियुक्त गोपाल गोयल कांडा टीवी चैनलों को साक्षात्कार देता रहा था और उसे पकड़ने के नाम पर हमारी दिल्ली पुलिस गोवा की सैर कर रही थी.

BeyondHeadlines ने आरटीआई के जरिए दिल्ली पुलिस से गीतिका शर्मा आत्महत्या मामले की एफआईआर और गीतिका शर्मा की पोस्टमार्टम रिपोर्ट मांगी थी. साथ ही कांडा को गिरफ्तार करने के लिए हुई छापेमारी की कार्रवाई पर हुआ दिल्ली पुलिस के खर्च की जानकारी मांगी थी ताकि पता चल सके कि कांडा को गिरफ्तार करने पर हमारी पुलिस ने कितना पैसा खर्च किया.

हमने पोस्टमार्टम रिपोर्ट की कॉपी इसलिए मांगी थी ताकि गीतिका शर्मा मामले का पूरा सच देश के सामने आ सके. मीडिया रिपोर्टों में पुलिस के हवाले से कहा जाता रहा है कि गीतिका शर्मा का कई बार गर्भपात करवाया गया. लेकिन कहीं भी इस बात का उल्लेख नहीं किया गया है कि गीतिका शर्मा का जब गर्भपात हुआ तब गर्भ कितने महीने का था. भारत में तीन महीने से अधिक के गर्भ को खत्म कराना कानूनन अपराध है. दिल्ली पुलिस ने उस डॉक्टर के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जिसने गीतिका का गर्भपात किया. न ही यह बताया गया कि जिसने गर्भपात किया वह इसके लिए अधिकृत डॉक्टर था या नहीं.

BeyondHeadlines ने जवाब न मिलने पर फर्स्ट अपील भी दायर की थी, अपीलेट अथॉरिटी ने दिल्ली पुलिस को हमारे सभी सवालों का जवाब देने का आदेश भी दिया था लेकिन फिर भी दिल्ली पुलिस की ओर से हमारे एक भी सवाल का जवाब नहीं दिया गया। जाहिर है दिल्ली पुलिस गोपाल गोयल कांडा की पूरी जानकारी देने से बच रही है.

हमने सवाल किसी सनसनीखेज जानकारी को जनता के सामने रखने के लिए नहीं पूछे थे. बल्कि हम दिल्ली पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाना चाहते थे. कांडा दिल्ली में था और दिल्ली पुलिस की टीमें गोवा में छापेमारी कर रही थी. कोई सामान्य व्यक्ति आरोपी होता है तो पुलिस तुरंत गिरफ्तारी कर लेती है लेकिन कांडा को 13 दिन के बाद गिरफ्तार किया जा सका. क्या दिल्ली पुलिस की जिम्मेदारी तय नहीं की जानी चाहिए.

जो दिल्ली पुलिस एयरहोस्टेस गीतिका शर्मा के मामले में उदासीन है, जवाब देने से बच रही है, क्या वो हमारी संवेदनशीलता को समझ पाएगी? यदि आरोपी बस ड्राइवर है तो दिल्ली पुलिस संवेदनशील है, सतर्क है लेकिन यदि आरोपी किसी राज्य का गृहमंत्री है तो फिर दिल्ली पुलिस बेबस और बेचार, इतनी बेबस की आरटीआई के जरिए पूछे गए सवालों का जवाब तक नहीं देती, एपीलेट अथॉरिटी के आदेश के बावजूद जानकारी को छिपा लेती है.

यह सिर्फ एक उदाहरण है जो साबित करता है कि जब तक दिल्ली पुलिस का चेहरा और कार्यप्रणाली नहीं बदली जाएगी तब तक हमारे नारों का, हमारे दुख का और हमारी इस संवेदनशीलता का कोई नतीजा नहीं निकलेगा.

यह ताजा मामला जघन्य है तो हम सब दिल्ली पुलिस के खिलाफ हैं लेकिन जब सामान्य मामलों में यही पुलिस अपराधियों का साथ देती है, उन्हें सुविधाएं मुहैया कराती हैं तब हम कुछ नहीं करते क्यों? यदि हम दिल्ली गैंगरेप की पीड़िता को सच्चा न्याय दिलाना चाहते हैं तो अब से हमें हर मामले में संवेदनशील होना होगा. बलात्कार को बलात्कार मानना होगा चाहें वो बाहुबल के दम पर किया गया है या फिर धनबल के.

और इसी बीच एडीआर ने एक रिपोर्ट जारी की है जिसमें बताया गया है कि हमारे 6 विधायकों ने बकायदा हलफनामा देकर बताया है कि वो बलात्कारी हैं. दिल्ली गैंगरेप मामले की जघन्यता अपवाद ज़रूर है, लेकिन गोपाल गोयल कांडा अपवाद नहीं है. दिल्ली की पीड़िता को तब तक सच्चा न्याय नहीं मिल सकता जब तक गोपाल कांडा जैसे के मन में कानून का खौफ पैदा न हो, और जैसा दिल्ली पुलिस का रवैया है उससे नहीं लगता कि कांडा के मन में कोई खौफ पैदा हो पाएगा.

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