BeyondHeadlines News Desk
लखनऊ : रिहाई मंच ने प्रेस परिषद द्वारा गठित फैजाबाद दंगे की जांच रिपोर्ट का स्वागत करते हुए कहा कि दस महीने में 11 बडे़ दंगे कराने वाली सपा सरकार में थोड़ी भी शर्म बची हो तो उसे इस घटना की सीबीआई जांच का आदेश दे देना चाहिए. क्योंकि शीतला कमेटी ने इस बात पर जोर देकर कहा है कि दंगे की जांच न्यायिक या स्वतंत्र आयोग से कराई जाए. क्योंकि इस रिपोर्ट ने साफ कर दिया है कि रुदौली के भाजपा विधायक रामचन्द्र यादव और पूर्व भाजपा विधायक लल्लू सिंह तो दंगे के षड़यंत्र करता तो थे ही, सपा सरकार के वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों तत्कालीन डीएम दीपक अग्रवाल, तत्कालीन एसएसपी रमित शर्मा, तत्कालीन पुलिस अधिक्षक रामजी सिंह यादव और तत्कालीन एडीएम सिटी श्रीकांत मिश्र समेत पूरा पुलिस अमला इस मुस्लिम विरोधी सांप्रदायिक हिंसा में शामिल था.
आवामी काउंसिल में राष्ट्रीय महासचिव असद हयात व रिहाई मंच के प्रवक्ता राजीव यादव और शाहनवाज़ आलम ने कहा कि दंगे के बाद सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने कहा था कि फैजाबाद का दंगा हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच अविश्वास के चलते हुआ था तो वहीं उनके मुख्यमंत्री बेटे अखिलेश यादव ने कहा था कि दंगा सरकार को बदनाम करने के लिए किया गया था. लेकिन प्रेस परिषद के अध्यक्ष मार्कण्डेय काटजू द्वारा गठित शीतला सिंह आयोग की रिपोर्ट ने सपा मुखिया और मुख्यमंत्री के झूठ का पोल खोल दिया है कि दंगा हिंदुओं और मुसलमानों के बीच अविश्वास फैलाने या सरकार को बदनाम करने के षड़यंत्र के तहत नहीं हुआ बल्कि सांप्रदायिक भाजपा नेता और कथित सेकुलर सरकार के प्रशासनिक मिली भगत से हुआ, जिसमें सपा सरकार की सहमति थी.
रिहाई मंच ने कहा कि फैजाबाद में 24 अक्टूबर 2012 को हुई मुस्लिम विरोधी हिंसा सपा और भाजपा के राजनीतिक रणनीति का हिस्सा थी. ऐसे में इस घटना की तत्काल सीबीआई जांच करवाई जाए. शीतला सिंह आयोग ने तत्कालीन डीएम दीपक अग्रवाल के कफ्र्यू संबन्धी आदेश को सांप्रदायिक मानसिकता का परिचायक बताते हुए जिन अधिकारियों पर कर्तव्यों की अवहेलना, अकुशलता और इच्छाशक्ति के आभाव का आरोप लगाते हुए उन्हें दंडित करने और भविष्य में निर्णायक पदों पर नियुक्त न किए जाने की बात कही है उन सभी को राज्य सरकार तत्काल प्रभाव से उनको पदमुक्त करते हुए यह सुनिश्चित करे कि वे दुबारा किसी अहम पद न नियुक्त किए जाएं.
