Dr. Abhinaw Upadhyay for BeyondHeadlines
उन दिनों गोरखपुर से राजनीति विज्ञान मे एम.ए. कर रहा था. तभी एक दिन विभाग की प्राध्यापिका डा. शुभा राव ने मुझसे कहा था कि जाकर मनोज सिंह से मिल लो. मनोज जी से मिला वह मुझे बनारस एक सेमिनार में भेजना चाहते थे. मैंने हां कर दी.
सेमिनार सांप्रदायिक दंगों के दौरान की परिस्थतियों को समझने और उसके बारे सही कदम उठाने को लेकर था. यहां मेरी पहली मुलाकात असगर अली इंजीनियर से हुई क्योंकि यह सेमिनार उनकी संस्था और बनारस की एक संस्था के साथ मिलकर हो रहा था.
दंगों के दौरान की परिस्थिति का गवाह बनारस भी रहा है और मेरा जिला मऊनाथ भंजन भी… फिर दो साल बाद उनसे मुलाकात सहारनपुर में हुई. वहां का वाकया दिलचस्प था. इंजीनियर साहब को कट्टर हिन्दू मुस्लिमों का एजेंट कहते थे, क्योंकि यह दंगों में शामिल हिन्दुओं के बारे में कहते थे कि प्राय: दंगों में अफवाह के कारण बहुसंख्यक अल्पसंख्यकों पर हमला करते हैं.
इंजीनियर साहब के विचार मुस्लिमों के बारे में भी जुदा थे. वह हमेशा कहते रहे कि सच्चे मुसलमान का मतलब मुसल्लम इमान है. मुस्लिमों को महिलाओं के हक़ के बारे में भी सोचना चाहिए. उनके पास कुरान के तर्क थे. इसलिए कट्टर मुसलमान उनको हिन्दुओं का एजेंट कहता था और इस्लाम का दुश्मन मानते थे.
सहारनपुर में भी यही वाकया हुआ. लगभग एक सप्ताह का सेमिनार था. परिचर्चा के लिए एक कालेज में सबलोग इकट्ठा हुए, रात के आठ बज रहे थे. शहर के प्रतिष्ठित मुसलमान भाई लोग भी आए थे मुल्ला लोग भी थे. असग़र अली इंजीनियर ने इस्लाम में महिलाओं को दिए जाने वाले हक़ के संबंध में अपनी बात रखनी शुरू की.
बात अभी कुछ देर चली कि एक मुल्ला साहब खड़े हो गए और उन्हे इस्लाम का दुश्मन घोषित कर दिया लेकिन उनके पास कोई तर्क नहीं था. इंजीनियर साहब बार-बार कह रहे थे कि आप अपनी बात तर्क के साथ रखिए मुल्ला जी की तरफ़ से कई लोग खड़े हो गए मामला गंभीर देख बैठक को जल्द ही समाप्त कर दिया गया.
वह बार-बार कहते थे कि दंगों को भड़काने में मीडिया की भूमिका अहम है. इसके लिए पत्रकारों को प्रशिक्षित करने की ज़रूरत है कि दंगों के दौरान किस तरह की रिपोर्र्टिंग करे. शायद ही कोई संस्थान अपने पत्रकारों को प्रशिक्षण देता हो लेकिन वह पूरे भारत में इसको लेकर वर्कशाप चलाते थे.
उनसे आखिरी मुलाकात मुम्बई में हुई. यह महज एक मुलाकात नहीं थी क्योंकि गोरेगांव में 10 दिनों का वर्कशाप था मुझे भी बुलाया गया. वहां कई लोग पूरे देश भर से आए थे. सबको एक साथ रहना था, बातें करनी थी और एक दूसरे धर्म के बारे में खुल कर बात करनी थी केवल अच्छाइयों के बारे में ही नहीं बुराइयों के बारे में भी. पहली बार इस तरह का माहौल मिला था जमकर चर्चा हुई. कई मुस्लिम दोस्त बने, कुछ इसाई भी…
यह परिचर्चा से उपजे सवाल और उनके जवाब दोनों अविस्मरणीय थे. क्योंकि हमें किस जाति,धर्म या संप्रदाय में पैदा होना है यह मेरी इच्छा पर निर्भर नहीं करता लेकिन इसके लिए लड़ाई हम इस हद तक लड़ते हैं कि जान की भी परवाह नहीं करते. ऐसे वर्कशॉप के बाद कई लोगों के विचारों में बदलाव आए मैं भी उनमें से एक था. यहाँ समाज को नए सिरे से देखने समझने का मौका मिला.
आज असग़र अली इंजीनियर हमारे बीच नहीं है लेकिन उनके रहते हुए भी उनके बेटे इरफान इंजीनियर इसे आगे बढ़ाते रहे हैं और मुझे उम्मीद है कि वह आगे भी इसी तरह बढ़ाएंगे…