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भारत पाक की नई राहें…

Ravi Nitesh for BeyondHeadlines

66 वर्षों के इतिहास में पहली बार हमारे पड़ोसी मुल्क में सत्ता का लोकतांत्रिक तरीके से हस्तांतरण, न केवल उस मुल्क यानी की पाकिस्तान के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि हमारे यानि कि हिन्दुस्तान के लिए भी.

जम्हूरियत की बहाली का संदेश वास्तव में अपने आप में बहुत कुछ समेटे हुए है. व्यापक तौर पर, राजनीतिक विश्लेषण में इसे लोकतंत्र का मज़बूतीकरण और लोकतांत्रिक व्यवस्था में लोगों का यकीन और उम्मीद के रूप में देखा जा सकता है. हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के बीच अमन चाहने वाले लोगों के बीच इसे एक मज़बूत कड़ी के रूप में देखा जा रहा है.

भारत पाक की नई राहें…दरअसल हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के आपसी रिश्ते बंटवारे के बाद सामान्य नहीं हो पाये. इस बंटवारे ने यूं तो उस वक्त ही हज़ारों लाशें बिछा दी थीं, पर उसके बाद जो आपसी झगड़ों और नफ़रत का दौर चला, तो इसके असर सामाजिक व्यवस्थाओं पर भी पड़ने लगे. यह निश्चित तौर पर दर्दनाक और दुर्भाग्यपूर्ण रहा कि एक पूरे मुल्क का जन्म महज़ मज़हबी आधार पर हो जाए.

बहरहाल, हिन्दुस्तान के लिए पड़ोसी मुल्क में लोकतंत्र की स्थापना एक प्रमुख बात है. और चले आ रहे संबंधों में ज़बरदस्त सुधार की संभावना भी. दोनों मुल्कों के बीच अमन-चैन क़ायम होना एक ज़रूरत बन चुकी है. और यह ज़रूरत सिर्फ नागरिक संवाद बढ़ाने लोगों के बीच अमन और यकीन का संदेश देने के ही लिए नहीं, बल्कि जन-आधारित विकास और वैश्विक दृष्टिकोण से भी आवश्यक हो गया है. दोनों देश अब तक तीन बड़ी लड़ाइयां लड़ चुके हैं आपसी सीमा पर चाक-चैकसी बरतने के लिहाज़ से कई मिलियन डालर अपनी सुरक्षा पर ख़र्च करते रहे हैं. यही नहीं एक-दूसरे से सुरक्षा की दृष्टि से होड़ में दोनों ही नाभिकीय सुरक्षा से लैस हो चुके हैं.

हथियारों की यह होड़ न केवल सुरक्षा की दृष्टि से असुरक्षित है, बल्कि अमानवीय भी. एक ऐसे वक्त में जब दोनों ही देश विकास की राह पर क़दम बढ़ा रहे हैं, और तब जबकि दोनों ही देशों में शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार, कुपोषण जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए बहुत कुछ किया जाना बाकी है, तब उस वक्त में नाभिकीय अस्त्रों की होड़ और सुरक्षा का बजट लगातार बढ़ाया जाना अनैतिक और अन्यायिक दोनों ही है.

आम अवाम की ओर से कई संगठित कोशिशें जारी हैं. दोनों ही मुल्कों के लोग पूरी तरह से ये मानते हैं कि अमन का रास्ता ही आखि़री और सर्वश्रेष्ठ रास्ता है. ये अवाम की कोशिशों का ही नतीजा था कि चुनाव से पहले राजनीतिक दलों को हिन्दुस्तान से बेहतर संबंधों की बात करनी पड़ी.

कई छोटी कोशिशें हमारे बीच रिश्तों को और बेहतर बना सकती हैं, हालांकि मुख्य मुद्दा फिर भी कश्मीर रहेगा. भारत और पाकिस्तान के बीच फंसा ज़मीन का ये टुकड़ा भी दोनों देशों के बीच झगड़े की मुख्य वजह बना हुआ है. कश्मीर समस्या को सुलझाना अपने आप में एक बड़ी समस्या और हिम्मत भरा काम है.

दोनों ही सरकारें इस मुद्दे पर कोई सीधा संवाद या समझौता करने से बचती रही हैं. हालांकि कश्मीर समस्या का निदान करने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका खुद कश्मीर के लोगों की ही है, इसलिए तीनों (हिन्दुस्तान, पाकिस्तान और कश्मीर) को ही राजनैतिक दृढ़ विश्वास के साथ इसके लिए जुटना होगा.

हालांकि कश्मीर मुद्दे को हल करने के लिए दोनों मुल्कों के बीच ‘संबंध’ अच्छे होने चाहिए, क्योंकि कश्मीर मुद्दे पर आपसी सहमति बना पना, बिना ठोस आपसी यकीन के कठिन होगा. हालांकि ऐसा हो पाना भारत और पाकिस्तान में रहने वाले करोड़ों लोगों के साथ ही, भयंकर त्रासदी झेल रही कश्मीरी जनसंख्या के लिए सबसे ज़्यादा राहत भरी होगी.

कश्मीर विश्व का सर्वाधिक सैन्य घनत्व वाला क्षेत्र है, जहां सिविल क्षेत्रों में सेनाओं की तैनाती, विशेषाधिकार, सीमा पार से घुसपैठ और मानवाधिकार उल्लंघन की घटनाओं की एक लंबी फेहरिस्त है.

हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के बीच सुधरते रिश्ते और दोनों देशों के बीच अपनी मूलभूत सुविधाओं की ओर ध्यान देने का प्रयास, निश्चित ही दक्षिण एशियाई क्षेत्र में शान्ति का स्थायी माहौल बनाने में मददगार होगा और विश्व के सर्वाधिक संवेदनशील क्षेत्रों में से एक में स्थिरता की तरफ हुई ये बात, इंसानी समाज के हित में होगी.

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