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ब्रांड अम्बेस्डर ‘आमिर खान’ के शहर में कुपोषण से मर रहे हैं बच्चे

Fahmina Hussain for BeyondHeadlines

गगनचुंबी इमारतें, चौड़ी सड़कें, पांच सितारा होटल और पूरी रात जवान रहने वाला शहर है मुंबई… हर किसी को अपनी चकाचौंध से लुभाकर पास बुलाता है, लेकिन इस शहर का एक और चेहरा है जो स्याह है.

मुंबई, पुणे, ठाणे और नागपूर का देश में अपना एक अलग महत्व तो है ही क्योंकि यहां की रंगिनियां देश-दुनिया को अपनी ओर आकर्षित करती हैं.  मुंबई अगर अपने ऐशो-आराम के लिए जानी जाती है. तो भिवंडी, गोवंडी, रफ़ीक नगर, शाहपुर, वाडा, मोखाड़ा, पालघर, व तलासरी के इलाके भी देश के इसी आर्थिक राजधानी मुंबई से 100 किलोमीटर के दायरे में पड़ते हैं.

मुंबई से सटे ये इलाके किसी और कारण से चर्चा में हैं. यह कारण है अबोध बच्चों की कुपोषण से मौत… इसे इलाके में रहने वाले लोग भूख और कुपोषण के चलते कीड़े-मकोड़ों की तरह मरने को बेबस हैं.

malnutrion in mumbaiमहाराष्ट्र जैसे राज्य में भी कुपोषण ने अपना साम्राज्य कायम रखा है. हर साल यहां हजारों बच्चे मरने को मजबूर हैं. प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक राज्य के नंदूरबार जिले में साल 2011-12 में 49 हजार, नासिक में एक लाख, मेलघाट में 40 हजार, औरंगाबाद में 53 हजार, पुणे जैसे विकसित शहर में 61 हजार और मराठवाड़ा में 24 हजार बच्चे कुपोषण का शिकार हुए हैं.

यकीन करना मुश्किल है, लेकिन ये सच है… मुंबई भी भुखमरी का शिकार है. यहां के अस्पतालों में हर रोज़ 100 से ज्यादा कुपोषण के शिकार बच्चे भर्ती हो रहे हैं. यही नहीं 40 से ज्यादा बच्चों की साल भर में कुपोषण से मौत भी हो रही है. ये उस शहर का सच है जो देश को हर साल दस लाख करोड़ रुपए से ज्यादा टैक्स के तौर पर देता है. माया नगरी के खुबसूरत चहरों के बीच कुछ चहरें ऐसे हैं जिनके लिए जिंदगी का नाम भूख और गंदगी है.

देश की आर्थिक राजधानी का यह हाल है तो बाकी महाराष्ट्र का क्या हाल होगा? सरकार की मानें तो उसका स्वास्थ्य विभाग स्थानीय एजेंसियों के साथ मिलकर जागरूकता अभियान चला रहा है. लोगों को साफ सफाई के बारे में जागरूक कर रहा है. यही नहीं, नवजात बच्चों को कुपोषण से बचाने के लिए पूरक आहार और दवाइयां देने में भी मदद कर रहा है. दावों के मुताबिक सरकार कुपोषण के शिकार बच्चों को आयरन, कैल्शियम और दूसरे पोषक आहार देने में भी जुटी है.

दिसंबर 2010 में एक खबर आई थी कि देश की आर्थिक राजधानी कहे जाने वाले मुंबई शहर में 18 बच्चे भुखमरी और कुपोषण के कारण उनकी मौत हो गयी थी. इस भूखमरी और कुपोषण से प्रशासन और सरकार बेखबर थी जब मीडिया के द्वारा खबरें निकलकर आयी तो पता चला कि मुंबई के गोवंडी इलाके में पांच साल और उससे कम उम्र के 18 बच्चे भूख और कुपोषण के शिकार हो गए. पता चला था कि गोवंडी के झोपड़पट्टी में 64% बच्चे कुपोषण के शिकार थे.

क्या यह शर्म की बात नहीं है कि इस तेजी से विकसित हो रहे देश में बच्चों की एक बड़ी आबादी कुपोषण के कारण तिल-तिल कर मरने को मजबूर है.

आंकड़े बताते हैं कि देश में प्रति वर्ष 6,00,000 बच्चों की मौत कुपोषण के कारण हो जाती है. सरकार और उसके नुमाइन्दों द्वारा आमतौर पर यह तर्क दिया जाता है कि कुपोषण की समस्या का मूल कारण आबादी है पर अगर हम अपनी तुलना चीन से करेंगे तो हमारी सरकार और उसके नुमाइन्दों का तर्क हमें खोखला और बेकार लगने लगता है.

भूख और गरीबी राजनीतिक एजेंडा की प्राथमिकता नहीं होते तो बड़ी तादाद में कुपोषण सतह पर उभरता है. अपने देश की यही विडम्बना है. यहां कुपोषण की स्थिति इसके पड़ोसी अधिक गरीब और कम विकसित बांग्लादेश और नेपाल से भी अधिक है.

यह ठीक है कि कुपोषण की समस्या से निपटने के लिए लगातार पंचवर्षीय योजनाओं में प्रावधान किया जाता रहा है पर सचाई यह है कि हम छह दशक बाद भी इससे मुक्ति पाने के लिए संघर्ष ही करते नज़र आ रहे हैं. भले ही सरकार बच्चों में भूख और कुपोषण से निपटने के लिए आईसीडीएस योजना चलाती है लेकिन सिर्फ उसके भरोसे रहना काफी नहीं होगा.

धारावी, गोवंडी, कुर्ला, वडाला, बैलबाजार जैसी कई बड़ी झुग्गी बस्तियों की हालत सबसे ज्यादा खराब हैं जहां लोग नालों के किनारे गंदगी में रहते हैं और बुरी तरह कुपोषण के शिकार हैं.

सरकार नें बच्चों में कुपोषण को दूर करने के लिए कई योजनायें और जागरूकता कार्यक्रम भी चलायें हैं. छह वर्ष तक के बच्चों के स्वास्थ्य में सुधार लाने के लिए समेकित बाल विकास योजना शुरू कई गई. केन्द्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के अधीन खाद्य एवं पोषण बोर्ड लोगों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक बनाने के लिए हर साल 1 से 7 सितंबर तक राष्ट्रीय पोषण सप्ताह आयोजित करता है. इस वर्ष भी इस सप्ताह के दौरान देश भर में कार्यशालाओं, शिविर, प्रदर्शनी आदि का आयोजन कर लोगों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक बनाया जाएगा.  लेकिन लगातार कुपोषण से हो रही मौतों के आकड़ें ऐसे प्रयासों, कार्यक्रमों और नीतियों पर सवाल खड़े कर रहे हैं.

मिस्टर परफेक्शनिस्ट के नाम से जाने जानेवाले अभिनेता आमिर खान ने पिछले दिनों अपने टीवी रियालिटी शो ‘सत्यमेव जयते’ से लोगों को जागरूक करने की एक मुहिम चला रखी थी. यह धारावाहिक ना केवल पसंद किया गया बल्कि लोग बड़े पैमाने पर संवेदनशील मुद्दे जैसे भ्रुण हत्या, दहेज, बाल यौन उत्पीड़न जैसे मुद्दे पर जागरूक भी हुए. यह शो तो खत्म हो चुका है लेकिन आमिर ने अपना जागरूकता अभियान शुरू रखा है. आमिर ने कुपोषण के खिलाफ लोगों को जागरूक करने के लिए कमर कसा है. लेकिन मिस्टर खान को शायद ये पता ही नहीं कि उन्हीं के नाक के नीचे मुंबई शहर के रफीक नगर और गोवंडी में सबसे ज्यादा कुपोषण हैं. जिस अभियान के लिए आमिर खान को ब्रांड अबेस्डर चुन गया है ये अभियान उनके शहर में ही असफल नज़र आ रहा है.

जिस राज्य में लवासा जैसी आधुनिकतम सुख सुविधा युक्त कृत्रिम शहर बसाया जा रहा है. वहां बाल कुपोषण से होने वाली मौतों से निपटने के लिए कोई ठोस उपाय नहीं है. अब सवाल यह है कि आखिर एक विकसित राज्य कुपोषण के कोढ़ को मिटाने में क्यों नाकाम रहा है.? आईए इसका जवाब हम सब मिलकर ढूंढ़ते हैं.

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