India

इंसाफ के बिना लोकतंत्र नहीं स्थापित किया जा सकता

BeyondHeadlines News Desk

लखनऊ : मौलाना खालिद के हत्यारों की गिरफ्तारी और आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाहों की रिहाई सवाल से भाग रही सरकार मानसून सत्र  बुलाने की हिम्मत नहीं कर पा रही है. यह बात कहते हुए रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुएब ने कहा कि पड़ोस के जिले कानपुर, सीतापुर समेत प्रदेश में बहुत से ऐसे मुस्लिम युवक हैं जो आतंकवाद के झूठे आरोपों में फंसाए गए थे, जो सालों साल जेलों में रहने के बाद बरी हुए हैं पर आज तक सरकार ने उनके मुआवजे और पुनर्वास की सुध नहीं ली और इधर सरकार के प्रवक्ता हैं वो रोज़ सरकार की उपलब्धियों के तीर छोड़ते नज़र आते हैं. सपा सरकार हो या कोई सरकार इस बात को जान लेना चाहिए कि इंसाफ के बिना लोकतंत्र नहीं स्थापित किया जा सकता.

रिहाई मंच के प्रवक्ता राजीव यादव ने बताया कि मौलाना खालिद को न्याय दिलाने व आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाहों की रिहाई के लिए रिहाई मंच के धरने के 86वें दिन आजादी की 66वीं वर्षगांठ 15 अगस्त को आतंकवाद के नाम पर पीडि़त और दंगा पीडि़त अपने सवालों के साथ विधान सभा पर पहुंचेगे.

Democracy without justice can not be establishedउन्होंने बताया कि 23 नंवबर 2007 यूपी कोर्ट ब्लास्ट, 31 दिसम्बर 2007 तथा 1 जनवरी 2008 के बीच की रात रामपुर में हुये कथित आतंकी हमले, सहकारिता भवन लखनऊ में 15 अगस्त 2000 को हुए धमाके, श्रमजीवी एक्सप्रेस बम कांड, बाबरी मस्जिद/राम मंदिर परिसर में हुआ कथित आतंकी हमला, वाराणसी में संकटमोचन-कैंट स्टेशन-दश्वाश्वमेध घाट धमाका, राहुल गांधी पर 2007 में हुये कथित आतंकी हमले, जुन 2007 में लखनऊ में कथित आतंकी वारदात के नाम पर की गई मुस्लिम युवकों की गिरफ्तारी, 23 दिसम्बर 2007 को तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती को मारने के नाम पर चिनहट लखनऊ में हुये आतंकवाद के नाम पर कथित एनंकाउंटर, गोरखपुर में हुए सीरियल धमाकों समेत अन्य आतंकी वारदातों के सवाल को प्रमुखता से उठाया जाएगा कि सरकार अगर इंसाफ करना चाहती है तो प्रदेश में हुई समस्त आतंकी घटनाओं की जांच एनआईए से कराए.

प्रवक्ता ने कहा कि सपा के लोग जो बार-बार कहते हैं कि उनके शासन में कोई गिरफ्तारी नहीं हुई थी तो हम 15 अगस्त को सपा सरकार में 13 मई 2012 को एटीएस द्वारा उठाये गये सीतापुर के निवासी शकील समेत चार और अन्य मामलों समेत पिछली मुलायम सरकार में इलाहाबाद के वलीउल्ला और मेरठ के डा0 इरफान, मो0 नसीम, शकील अहमद, मो0 अजीज के सवालों को भी उठाएंगे. इसके अलावा प्रदेश में हुए दंगों के पीडि़त भी उस दिन शामिल होंगे.

सामाजिक कार्यकर्ता लक्ष्मण प्रसाद और इंडियन नेशनल लीग के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हाजी फहीम सिद्दीकी ने कहा कि जिस तरीके से कंवल भारती का बयान आया है कि सपा सरकार के मंत्री आज़म खान और उनके लोग इतना परेशान कर दिए है कि वो आत्महत्या करने को मजबूर हो रहे हैं इस बात के लिए सपा की जितनी निंदा की जाए वो कम है.

उन्होंने कहा कि जब जब पीलीभीत में मुसलमानों को बीमारी कहने वाले वरुण गांधी का सवाल आता है, जिसने कहा था कि चुनाव बाद मुसलमानों की कमल गर्दन काटेगा तो आज़म का मुंह सिल जाता है और वरुण को बचाने में पीलीभीत से आने वाले सपा के मंत्री रियाज अहमद की भी भूमिका तहलका के स्टिंग आपरेशन में सामने आ गई.

इसी तरह प्रतापगढ़ के अस्थान गांव में रघुराज प्रताप सिंह के पिता उदय प्रताप सिंह के रचे गए षडयंत्र में प्रवीण तोगडि़या आता है और अस्थान में दंगे के बाद लुटे-पिटे घरों को फिर से जलवा देता है, जिसकी रिहाई मंच लंबे समय से सीबीआई जांच की मांग कर रही है. पर अपने को मुस्लिम हितैषी होने का सबूत देने वाली सपा सरकार तोगडि़या पर एफआईआर दर्ज नहीं होने देती है. पर जब बात किसी दलित लेखक की आती है जिसने आज़म खान जैसे लोगों की कारस्तानी जग जाहिर कर दी तो सरकार द्वारा उसका उत्पीड़न शर्मनाक है.

रिहाई मंच के इस मंच से मांग हैं कि कंवल भारती पर से तत्काल मुक़दमा वापस लिया जाए और उनकी जो भी किताबें और कम्प्यूटर या अन्य उनकी बौद्धिक संपदा सामग्री को अराजक पुलिस उठा ले आई है उसे तत्काल कंवल भारती के सुपुर्द किया जाए.

रिहाई मंच के नेता अनिल आज़मी और बब्लू यादव ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि आज पीपी पाण्डे जैसा खूनी गैर जमानती वारंट जारी होने के बाद नाटकीय तरीके से अस्पताल से गायब हो जाता है. हम जानते है कि पूरे गुजरात में आज पुलिस की सांप्रदायिक जेहनियत न केवल मोदी के एजेंट की तरह काम करने की है बल्कि वह उनके कृपा-पात्रों को कानून से ऊपर उठकर संरक्षण देती है.

आज जब यह साफ है अपने कुकृत्यों पर फंस जाने पर पीपी पाण्डे जैसे हत्यारे कानून से डरकर फरार हो रहे हैं यह मोदी सरकार की जिम्मेदारी है कि उन्हे तुरंत खोजकर न्यायिक अभिरक्षा में भेजा जाए. लेकिन जब उसे भगाने में ही मोदी जेसे लोग शामिल हों तो फिर इशरत जहां को न्याय कैसे मिल सकेगा. मोदी की सरकार इशरत जहां के हत्यारों का संरक्षण कर रही है. पीपी पाण्डे की न्यायिक हिरासत से फरारी इसी का परिणाम है.

इस अवसर पर पत्रकार फैजान मुसन्ना ने कहा कि सरकार रिहाई मंच के 83 दिन से चल रहे धरने से इतनी घबरा गयी है कि उसकी हिम्मत ही मानसून सत्र बुलाने की नहीं पड़ रही है. इससे यह साबित हो जाता है कि रिहाई मंच का यह धरना किस तरह से आम जनता के बीच अपनी पैठ बना चुका है.

भारतीय एकता पार्टी के नेता सैय्यद मोइद और जैद अहमद फारुकी ने कहा कि आज इस देश की सुरक्षा नीतियां मोसाद जैसी कुख्यात इजायली खुफिया एजेंसियां बना रही हैं. आज इस देश में पैसे और ताक़त के बल पर मोसाद अपनी मनमानी कर रही है. लेकिन जब तक हम जैसे लोग जिंदा हैं इस देश के अमन पसंद ढांचे पर आंच नहीं आने देंगे चाहे हमें कितने और दिन धरने पर न बैठना पड़े.

भागीदारी आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक पीसी कुरील ने कहा कि रिहाई मंच के इस धरने से सरकार बेहद डर गयी है. बेगुनाह मुसलमानों की रिहाई के सवाल पर अखिलेश यादव के पास अब जवाब ही नही हैं, चूंकि समूची सपा सरकार ही लुटेरों और गुंडों की सरकार है. जब तक ये लुटेरे लोकतांत्रिक तरीके से खत्म नही किये जाऐंगे तब तक खालिद जैसे बेगुनाह लोगों की हत्या को रोका नहीं जा सकता. ज़रूरी है कि लोकतंत्र की रक्षा में इस देश के अमन पसंद लोग सामने आयें ताकि मानवता की हत्या को रोका जा सके.

पिछड़ा महासभा के एहसान-उल-हक मलिक तथा शिव नारायण कुशवाहा ने कहा कि आज सपा सरकार के खिलाफ प्रदेश का हर तबका खड़ा हो चुका है. सरकार इन विरोधों को पुलिस के बल पर दबाना चाहती है. अपनी छवि को बचाने के लिए आज सरकार आम जनता के बीच भेद पैदा कर रही है. साजिश के तहत इस प्रदेश में दंगे फैलाए जा रहे हैं. लेकिन इस समाज को बांटने के किसी भी मकसद में सरकार कामयाब नहीं होगी। जब तक खालिद के हत्यारे पुलिस अधिकारी पकड़े नहीं जाते तब तक पिछड़ा महा सभा के लोग रिहाई मंच के साथ कंधे से कंधा मिलाकर इंसाफ के हक़ में लड़ते रहेंगे.

यूपी की कचहरियों में 2007 में हुए धमाकों में पुलिस तथा आईबी के अधिकारियों द्वारा फर्जी तरीके से फंसाए गये मौलाना खालिद मुजाहिद की न्यायिक हिरासत में की गयी हत्या तथा आरडी निमेष कमीशन रिपोर्ट पर कार्रवायी रिपोर्ट के साथ सत्र बुलाकर सदन में रखने और आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाहों को छोड़ने की मांग को लेकर रिहाई मंच का धरना सोमवार को 83वें दिन भी जारी रहा.

धरने का संचालन हरेराम मिश्र ने किया. धरने को भारतीय एकता पार्टी (एम) के सैय्यद मोईद अहमद, इंडियन नेशनल लीग के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हाजी फहीम सिद्दीकी, भागीदारी आंदोलन के पीसी कुरील, पिछड़ा समाज महासभा के एहसानुल हक़, मुस्लिम मजलिस के जैद अहमद फारुकी, शिवनारायण कुशवाहा, अनिल आजमी, रईस मियां, मुजाहिद, जाकीर, महबूब अली, नुसरत अली, अनवर हुसैन, बबलू यादव, लक्ष्मण प्रसाद, इरफान शौकत, असद उल्लाह, मोहम्मद फैज, के के शुक्ला, इरफान सादिक, वारिफ शाह, राजीव यादव ने संबोधित किया.

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