BeyondHeadlines News Desk
लखनऊ : स्वतंत्रता दिवस पर रिहाई मंच के इस धरना स्थल पर यह झंडा रोहण कर हम संकल्प लेते हैं कि सरकारों द्वारा आतंकवाद का संरक्षण कर बेगुनाह मुस्लिमों, आदिवासियों, दलितों के खिलाफ चल रहे अघोषित युद्ध का हम पुरजोर मुखालफत करते हुए देश में सच्चे लोकतंत्र की स्थापना करेंगे.
रिहाई मंच के अध्यक्ष मो0 शुएब ने कहा कि आजादी की 66वीं वर्षगांठ पर हमने आज संकल्प लिया है कि फांसी की सजा जो अमानवीय और सभ्यताविरोधी है, के खिलाफ राष्ट्रव्यापी आंदोलन चलाएंगे और इसके तहत 2002 में गुजरात में अक्षरधाम मंदिर हमले के मामले में फर्जी तरीके से फंसाए गए बरेली के चांद खान, अहमदाबाद के मुफ्ती कयूम और मौलाना अब्दुल्लाह की फांसी की सजा के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर अभियान चलाया जाएगा.
मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित गांधीवादी कार्यकर्ता संदीप पाण्डे ने कहा कि आजादी का मतलब यह नहीं होता कि दो देशों के बीच की लड़ाई और उसमें दोनों देशों के मेहनतकश किसानों के बच्चे अपने-अपने देश के नाम पर एक छद्म युद्ध लड़ें और मारे जाने पर उन्हें शहीद का नाम देकर फर्जी राष्ट्रवादी बनाया जाए.
उन्होंने कहा कि जिस तरीके से आज यह सामने आ रहा है कि आईबी देश में आतंकी वारदातों को सरकारों की साम्राज्यावादी नीतियों के तहत करवाकर मुस्लिमों को आतंकवादी और आदिवासियों को माओवादी के नाम पर कत्लेआम मचाए हुए है ऐसे ही हालात पाकिस्तान के भी थे.
आज जिस तरह आईबी हिन्दुत्वादी है ठीक वैसे ही पाकिस्तान में आईएसआई का इस्लामीकरण के नाम पर पूरे देश को तबाह कर दिया गया है और आज पाकिस्तान विश्व में फेल्ड कंट्री के रुप में जाना जाता है. ऐसे में हम आज जब आजादी की वर्षगांठ पर आईबी व राज्य प्रायोजित आतंक के खिलाफ इस विधानसभा पर अपना विरोध कर रहे हैं तो हम संकल्प लेते हैं कि हम अपने देश को एक विफल राष्ट्र नहीं बनने देंगे. बेगुनाह खालिद को यही हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी.
रिहाई मंच के प्रवक्ताओं ने कहा कि आजादी की 66वीं वर्षगांठ पर ‘जिन्हें नाज है हिन्द पर वो कहां हैं’ जनसुनवाई के माध्यम से हमने सरकारों को जो देश में लोकतंत्र होने का दावा करती हैं उन दावों को लखनऊ विधानसभा धरना स्थल से चुनौती दिया है कि इस देश में सरकारें लोकतंत्र के नाम पर फांसीवादी नीतियो चला रही हैं. जिसके तहत सरकारें देश में आतंकी घटनाएं करवाती हैं. निर्दोषों को जलों में डालती हैं, दंगे करवाती हैं और कारपोरेट लूट को खुली छूट देती हैं.
रिहाई मंच के प्रवक्ता शाहनवाज़ आलम और राजीव यादव ने बताया कि आजादी की 66वीं वर्षगांठ पर आयोजित ‘जिन्हें नाज है हिन्द पर वो कहां हैं’ जनसुनवाई में प्रदेश भर के आतंकवाद के नाम पर पीडि़त व दंगा पिडि़तों ने अपनी बातें रखीं.
जनसुनवाई में मरहूम मौलाना खालिद के चचा ज़हीर आलम फलाही, अक्षरधाम हमला मामले में फांसी की सजा पाए बरेली के निर्दोष चांद खान की पत्नी नगमा परवीन, बेटी इक़रा व युसरा और भाई ताहिर खान, कचहरी धमाकों के आरोप में फंसाए गए आज़मगढ़ के तारिक के चचा हाफिज फैयाज़, पिछली मुलायम सरकार में संकटमोचन धमाकों के मामले में फंसाए गए मौलाना वलीउल्ला के ससुर मौ0 हनीफ, सीआरपीएफ कैंप रामपुर में हुई कथित आतंकी घटना में फंसाए गए कुंडा प्रतापगढ़ के कौसर फारुकी के भाई अनवर फारुकी, जंगबहादुर के बेटे शेर खान, जून 2007 में बम धमाके के झूठे षडयंत्र मामले में फंसाए गए.
बिजनौर के नौशाद के पिता मो0 शफी व याकूब के बहनोई जियाउल हक, आजमगढ़ के मो0 हबीब के भाई मो0 आमिर, अस्थान दंगों के पीडि़त निजाम, फैयाज, कुतुबपुर बिस्वां के सैय्यद मुबारक हुसैन, लखनऊ के मो0 जियाउद्दीन के पिता मो0 नसीम, परसपुर गोंडा से दंगा पीडि़त जुबैर, लखनऊ के शाहबाज के ससुर अब्दुल मोइद और इटावा के अदनान जिनकी हिन्दुत्ववादी मानसिकता के न्यायाधीश की सह पर हिंदुत्वादी अपराधियों ने हत्या कर दी के पिता मो0 अखलाक समेत विभिन्न परिवारों ने आपबीती सुनाई.
इंडियन नेशनल लीग के राष्ट्रीय अध्यक्ष मोहम्मद सुलेमान ने कहा कि वर्तमान लोकतांत्रिक प्रक्रिया में जिस तरह सरकारें लगातार आंतरिक शत्रु निर्माण की प्रक्रिया साम्राज्यवादी हितों के लिए कर रही हैं उसमें देश के वंचित तबके चाहे वो मुस्लिम, आदिवासी, दलित और महिलाएं हों सबके लोकतांत्रिक अधिकारों को खत्म कर देने की साजिशें चल रही हैं.
पिछले एक दशक से असम, मणिपुर जैसे पूर्वोत्तर के राज्यों में आफ्स्पा जैसे काले कानूनों के खिलाफ इरोम शर्मीला अनशन पर हैं पर सरकारों का रुख देख कर तो लगता है कि जैसे इस देश के नागरिक कहीं दूसरे ग्रह से आयातित हैं, और पूंजीपतियों के खिलाफ युद्ध कर रहे हैं और सरकारों की नैतिकता हो गई है कि वो मल्टीनेशनल्स के पक्ष में खड़ी हों. कितनी शर्मनाक स्थिति है कि जो देश अपने को लोकतंत्र कहता है वहां पूर्वोत्तर में महिलाओं को ‘इंडियन आर्मी रेप अस’ के बैनर के साथ नग्न प्रदर्शन करना पड़ता है.
वहीं आईएनएल के उपाध्यक्ष हाजी फहीम सिद्दीकी और भारतीय एकता पार्टी के सैय्यद मोईद अहमद ने कहा कि कश्मीर में भारतीय सेनाओं द्वारा गायब कर दिए गए लोगों, जिन्हें दो देशों की लड़ाई में शायद मार दिया गया हो के परिजनों को अपने गायब बच्चों की लड़ाई संगठन बनाकर लड़नी पड़ रही है जिसकी नेता परवीना अहंगर हैं. ऐसी ही लड़ाई लड़ रहा है रिहाई मंच जिसको आजादी की इस 66वीं वर्षगांठ पर आतंकवाद के नाम पर पीडि़त व दंगा पीडि़त लोगों की जनसुनवाई करनी पड़ रही है जिनकी सुनवाई इस प्रदेश की सरकार नहीं कर सकी.
बाराबंकी से आए अधिवक्ता रणधीर सिंह सुमन, ऐपवा की ताहिरा हसन, अलग दुनिया के केके वत्स और मसूद रियाज ने कहा कि आज सांप्रदायिकता की जो समस्या है उसके कारण सन 47 से जुड़े हैं जब आजादी और विभाजन दोनों एक साथ देखने को मिली. वह एक बड़ी त्रासदी थी जिसको उसी वक्त सुलझा लेना चाहिए था पर शासक वर्ग के हित इसी में निहित थे कि यह गम और गुस्सा लगातार पलता रहे और वक्त बे वक्त वो उसका इस्तेमाल कर सकें.
पहले देश के विभाजन का और अब आतंकवादी होने का ठप्पा मुसलमानों पर लगा दिया गया हालात इतने बदतर कर दिए गए कि इशरत, साजिद जमाल मेहतर हो या फिर यूपी में मौलाना खालिद हमारे बेगुनाह बच्चों का कत्ल कर दिया गया, इस मुस्लिम विरोधी साम्प्रदायिक सामूहिक चेतना को सन्तुष्ट करने के लिए हमारे सर्वोच्च न्यायालय ने भी अफजल गुरु को फांसी दे दिया. यह लोकतंत्र नहीं बल्कि फांसीवाद के लक्ष्ण हैं जिसके खिलाफ अवाम को खड़ा करना होगा तभी वास्तविक लोकतंत्र स्थापित हो पाएगा.
आजादी के 66वीं वर्षगांठ पर रिहाई मंच के धरने के 86वें दिन आयोजित जनसुनवाई ‘जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहां हैं’ में अपनी बात रखते हुए मौलाना खालिद के चचा ज़हीर आलम फलाही ने कहा कि खालिद की शहादत के बाद मैं बहुत कुछ सोचने को मजबूर हुआ.
रिहाई मंच के धरने का एक पहलू यह है कि इस आंदोलन ने पूरे मुल्क में बेगुनाहों की रिहाई के सवाल को एक राजनीतिक सवाल बना दिया है और आईबी की मुस्लिम विरोधी नितियों को उजागर कर दिया है. सरकार ने झूठा वादा किया कि वह बेगुनाहों को छोड़गी यह बहुत बड़ा झूठ था. जो इस देश की सर्वोच्च सदन संसद में सपा ने बोला था.
उन्होंने कहा कि मैंने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश, उच्च न्यायालय के न्यायामूर्ती और अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष को खालिद मुजाहिद की मौत के पहले लिखा था कि आप इस मामले को अपने हाथ में ले लें. शहादत के बाद भी पत्र लिखा. इसके बावजूद मामले पर संज्ञान नहीं लिया गया.
बाराबंकी से आए सूफी उबैर्दुरहमान, फतेहपुर से आए मौलाना हबीब कासमी ने कहा कि जिस तरह बेगुनाह बच्चे आतंकवाद के नाम पर बंद हैं और जिस तरह समाज चाहे ईद हो या यौमे आजादी लोग विधान सभा पर धरने के माध्यम से उनके इंसाफ की लड़ाई लड़ रहा है इसकी जीत एक दिन ज़रूर होगी.
पिछड़ा समाज महासभा के एहसानुल हक़ मलिक, वेलफेयर पार्टी के मो. इलियास, मुस्लिम मजलिस के जैद अहमद फारुकी, भागीदारी आंदोलन के पीसी कुरील, शिवनारायण कुशवाहा ने कहा कि आतंवाद के नाम पर सिर्फ बेगुनाहों को ही नहीं जिस तरह देश में इसकी लड़ाई लड़ने वालों की भी हत्या की गई वो इस भयावह स्थिति को बयां करता है कि खुफिया एजेंसियां खुद को बचाने के लिए कुछ भी कर सकती है.
आतंकवाद के आरोप में फंसाए गए शाहिद आज़मी ने बरी होने के बाद जब बेगुनाहों के मुक़दमें लड़ने शुरू किए तो मुबंई स्थित उनके चेम्बर में उनकी हत्या कर दी गई, ठीक इसी तरह जम्मू-कश्मीर के चर्चित मानवाधिकार नेता जलील अंदराबी की आईबी ने सेना के एक कर्नल से हत्या करवा दी और जब आईबी फंसने लगी तो उसने उस कर्नल पर इतना दबाव बना दिया कि पिछले दिनों उसने कनाडा मे अपने पूरे परिवार के साथ आत्म हत्या कर ली. ऐसे हालात में प्रशासनिक अधिकारियों को सोचने की ज़रुरत है कि राज्य की आतंकी नितियों को संरक्षित करने के लिए वो बेगुनाहों के खिलाफ उसकी आपराधिक साझेदारी में भागीदार न बनें.
रिहाई मंच के प्रवक्ताओं ने बताया कि 18 अगस्त रविवार को धरने के समर्थन में सांप्रदायिकता के खिलाफ लंबे समय से फिल्मों और जनांदोलनों के माध्यम से लड़ रहे चर्चित डॉक्यूमेंट्री फिल्म निर्देशक आनंद पटवर्धन मुबंई से आएंगे.
जन सुनवाई का संचालन आजमगढ़ रिहाई मंच के संयोजक मसीहुद्दीन संजरी ने की. धरने में आजमगढ़ से आए सरफुद्दीन, शमीम, तारिक शफीक, विनोद यादव, बब्लू यादव, अबू आमिर, फैजाबाद के एडवोकेट नदीम, बाराबंकी के फरहान वारसी, एडवोकेट एखलाक, रफीक सुल्तान खां, कानपुर के मो0नदीम, मो0 हफीज, अहमद हुसैन, शबाना अजीज, कमर सीतापुरी, कमरूदीन कमर, शेख इरफान आदि उपस्थित थे.