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मुजफ्फरनगर से आया एक संदेश…

साथियों!

हाल ही में मुजफ्फरनगर के एक गाँव में मोटरसाईकिल की टक्कर को लेकर दो पक्षों में झगड़ा हो गया, जिसमें तीन लड़कों की मौत हो गयी. यह घटना बहुत ही दुखद है. हमारे इलाके की हालत यह है कि आये–दिन डोल–गूल की राड़ या बुग्गी अड़ाने की मामूली बातों को लेकर भी गोलियाँ चल जाती हैं. यहाँ तक कि दिल्ली में रोज ही रोड़–रेज (गाड़ी टकराने को लेकर मारपीट और हत्या) की घटनाएँ होती हैं. नौजवानों की असीम ऊर्जा का नाश होना, छोटी–छोटी बातों के लिये जान की बाजी लगा देना हमारे मौजूदा दौर की एक बड़ी चिन्ता और विकट समस्या है.

हद तो यह है कि इस मामले को लेकर दोनों पक्षों के बीच शान्ति का माहौल बनाने के बजाय इस घटना से पैदा हुये गुस्से को हिन्दू और मुसलमान दोनों धर्मों के नेताओं ने हवा देना शुरू किया. उन्होंने पूरे इलाके का माहौल जहरीला बना दिया. देखते–देखते हमारे जिले के माहौल में फिरकापरस्ती का धुआँ भर दिया गया. इस घटना का इस्तेमाल करके शान्तिप्रिय हिन्दु–मुस्लिम आबादी के बीच फूट डालना और अपने वोट की फसल लहलहाना किनकी साजिश है? नफरत और अफवाहें फैलाकर अवाम के दिलों में दहशत पैदा करने और समाज को तोड़ने वाले ये लोग कौन हैं ? इनका असली मकसद क्या है ? इसे समझना ज़रूरी है….

message from muzaffar nagarसभी जानते हैं कि अगले साल (2014) देश में संसदीय चुनाव हैं. इन्हीं चुनावों की तैयारी के सिलसिले में पिछले दो साल में देश की 1150 से भी ज्यादा जगहों पर दंगे कराये जा चुके हैं. सबसे ज्यादा, लगभग 200 जगहों पर दंगे उत्तर प्रदेश में हुये हैं. हम पिछले कई चुनावों से देख रहे हैं कि हर चुनाव से पहले कभी धर्म के नाम पर तो कभी जाति के नाम पर जनता के बीच फूट के बीज बो दिये जाते हैं. आज किसी भी पार्टी के नेता के पास आम जनता के हित की कोई योजना नहीं है.

असल में महँगाई, बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार, किसानों की तबाही, गरीबी, भुखमरी, जनता की सम्पत्ति का निजीकरण और इन जैसी तमाम समस्याओं पर सभी पार्टियों की एक राय है. खुद को मुसलमानों के या हिन्दुओं के रहनुमा बताने वाले नेता जनता के खिलाफ योजनाएँ लागू करने में एक–दूसरे से पीछे नहीं हैं. हर चुनाव से पहले दंगे करवाकर ये लागों के दिलों में फासले और भय पैदा कर देते हैं. ऐसे माहौल में चुनाव के मुद्दे की बात तो कहीं पीछे छूट जाती है और जाति–धर्म के नाम पर अपने–अपने रहनुमाओं को जिताकर हम संसद और विधान सभाओं में भेज देते हैं.

इसके बाद उन्हें 5 साल तक आराम से हमारे ऊपर सवारी करने का मौका मिल जाता है. हमें समझने की ज़रूरत है कि सैकड़ों दंगों और हजारों लोगों की मौत के बाद भी आखिर हमें क्या मिला है. पिछले दो सालों में हमारे प्रदेश में जो लगभग 200 जगहों पर दंगे हो चुके हैं, क्या उनसे हमारी समस्याएँ हल हुयीं ? आज रुपये की कीमत चवन्नी भर भी नहीं रह गयी है, विकास दर घट कर आधी रह गयी है. देश की अर्थव्यवस्था चौपट हो चुकी है. कर्ज के बोझ से लाखों किसान आत्महत्या कर चुके हैं व करोड़ों खेती छोड़ना चाहते हैं. बेरोजगारी के चलते नौजवानों की शादियाँ नहीं हो रही हैं. वे अपराध और नशाखोरी करने को मजबूर हैं, आत्महत्या कर रहे हैं.

अगर फैक्ट्रियों में काम मिल भी जाय तो 14 घण्टे काम करके भी एक मजदूर अपना पेट नहीं भर सकता. भ्रष्टाचार सभी सीमाएँ लाँघ चुका है. देश में हर रोज हत्याएँ व औरतों के साथ बलात्कार हो रहे हैं. क्या इन सब के लिये हिन्दू या मुसलमान होना जिम्मेदार हैं या ये निकम्मे नेता और इनके चहेते धन्ना सेठ जिम्मेदार हैं. 1857 की आजादी की पहली लड़ाई में हिन्दू–मुसलमान–सिक्ख–इसाई कंधे से कंधा मिलाकर लड़े थे और अंग्रेजों के दाँत खट्टे कर दिये थे.

अंग्रेजो को उसी समय से जनता की एकता खटकने लगी थी. उसके बाद उन्होंने ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति अपनायी और जानबूझ कर हिन्दू–मुस्लिम दंगे भड़काये. फिरकापरस्त नेता अंग्रेजों की कठपुतली बने हुये थे. इसके बाद भी रोशन सिंह, बिस्मिल, अशफाक उल्ला, चन्द्रशेखर आजाद, भगत सिंह जैसे रणबांकुरों ने कौमी एकता की मिशाल कायम रखी और अंग्रेजों की र्इंट से र्इंट बजा दी. आज ये काले अंग्रेज भी अपने पूर्वज गोरे अंग्रेजों की उसी ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति को अमल में ला रहे हैं.

अपने लिये तो उन्होंने महलों का निर्माण किया है और जनता के पैसों से अय्याशी कर रहे हैं. दूसरी ओर जनता को कंगाल बदहाल करके नर्क में ढकेल दिया है. ये जनता के खिलाफ ऐसे जघन्य अपराध कर रहे हैं कि अंग्रेज भी शर्मा जायें. इनकी लूट बराबर चलती रहे इसलिये वे चाहते हैं कि जनता आपस में जाति–धर्म के नाम पर लड़ती रहे और असली दुश्मन की तरफ उसका ध्यान भी न जाये.

हमारे 1857 के बाबा शाहमल और मंगल पाण्डे और उनके बाद के आजादी के संघर्ष के बिस्मिल, अशफाक, आजाद और भगत सिंह जैसे देशभक्त कभी भी अंग्रेजों के फूट डालो राज करो के षडयंत्र में नहीं फँसे. उन्हीं से प्रेरणा लेते हुये हमें अपनी एकता को बरकरार रखने के लिये फूटपरस्ती के खिलाफ संघर्ष करना होगा. इसी तरह के हालात के बारे में शहीद भगत सिंह ने कहा था ‘‘गरीब मेहनतकशों और किसानों… तुम्हारे असली दुश्मन पूँजीपति हैं, इसलिये तुम्हें इनके हथकण्डों से बचकर रहना चाहिए और इनके हत्थे चढ़ कुछ न करना चाहिए. संसार के सभी गरीबों के, चाहे वह किसी भी जाति, रंग, धर्म या राष्ट्र के हों, अधिकार एक ही हैं.’’

नौजवान भारत सभा तमाम मेहनतकश जनता से अपील करता है कि संकट और अविश्वास की इस घड़ी में धैर्य से सोच–विचार करें. धर्म और जति के नाम पर देश की जनता को बाँटने वाले नेताओं और उनके पिछलग्गुओं की चालों में न फँसकर देश की असली समस्या के बारे में सोचें और इनका समाधान करने के लिये एकजुट हों.

जाति धर्म में नहीं बँटेंगे मिलजुल कर संघर्ष करेंगे!

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