BeyondHeadlines News Desk
लखनऊ : बाटला हाऊस फर्जी मुठभेड़ भारतीय लोकतंत्र का काला दिन है, जिसने साबित कर दिया कि जनता द्वारा चुनी गयी सरकारों को खुफिया एजेंसियों ने अगवा कर लिया है और अब वह देश को आतंकवाद का भय दिखा कर अपने ही देश के अल्पसंख्यकों का कत्ल करने पर उतारू हो गयी हैं. देशभक्त जनता को आज अमरीका और इजरायल से संचालित होने वाली भारतीय खुफिया एजेंसियों के चंगुल से लोकतंत्र को रिहा कराना होगा.
रिहाई मंच लोकतंत्र की रिहाई की लड़ाई लड़ रहा है. आज हम खालिद के हत्यारे पुलिस व आईबी अधिकारियों की गिरफ्तारी और निमेष कमीशन की रिपोट पर अमल करने के लिए चल रहे अनिश्चित कालीन धरने की समाप्ति मानसून सत्र से एक दिन पहले गिरफ्तारी देकर खत्म कर रहे है और सरकार को मौका दे रहे हैं कि वह अपना वादा निभाते हुए निमेष कमीशन की रिपोर्ट पर कार्रवायी रिपोर्ट सदन में रखे. यदि सरकार ऐसा नहीं करती है तो फिर रिहाई मंच पूरे सूबे में अवाम के बीच जाकर सरकार के मुस्लिम विरोधी और फासिस्ट नीतियों की पोल खोलेगा.
यह बातें रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुएब ने रिहाई मंच के धरने के 121वें दिन आयोजित बाटला हाऊस फर्जी मुठभेड़ के खिलाफ सम्मेलन और रिहाई मंच के नेताओं की गिरफ्तारी से पहले आयोजित सभा में कही.
इंडियन नेशनल लीग के अध्यक्ष मो. सुलेमान ने कहा कि आज बाटला हाऊस फर्जी एनकाउंटर की पांचवीं बरसी है. एक तरफ केन्द्र में कांग्रेस की सरकार है, जिसने आज़मगढ़ के मासूम साजिद और आतिफ की ढंडे दिमाग से कत्ल करवाकर आईबी, दिल्ली पुलिस तथा शिवराज पाटिल जैसे नेताओं को बचाने के लिए इस फर्जी मुठभेड़ की न्यायिक जांच नहीं करवाई. दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश सरकार है, जिसने मरहूम मौलाना खालिद मुजाहिद और तारिक कासमी की बेगुनाही का सबूत निमेष रिपोर्ट को एक साल दबाए रखकर आईबी और वरिष्ठ पुलिस अधिकारी डीजीपी विक्रम सिंह बृजलाल, मनोज कुमार झा, अमिताभ यश जैसे सांप्रदायिक आपराधिक प्रवृत्ति वालों का मनोबल बढ़ाकर खालिद मुजाहिद की हत्या करवा दी.
अखिलेश यादव ने इस हत्या को छिपाने के लिए सीबीआई जांच नहीं करवाया और अब राज्य सरकार द्वारा जांच कराकर खालिद मुजाहिद की मौत को बीमारी से हुई मौत साबित करने की कोशिश की. पर जब आज सपा सरकार ने आंदोलन के दबाव में निमेष कमीशन की रिपोर्ट को स्वीकार लिया है, जो इन्हीं दोषी पुलिस अधिकारियों की तरफ इशारा करती है, उन पर कार्यवाही न करके अखिलेश यादव ने अपना फैसला सुना दिया है कि वे मरहूम मौलाना खालिद के पक्ष में नहीं है बल्कि दोषी पुलिस अधिकारियों के पक्ष में हैं.
सूफी उबैदुर्रहमान ने कहा कि एक तरफ कांग्रेस है जिसने बाटला हाउस में मारे गये हमारे मासूम बच्चों की न्यायिक जांच नही करवायी दूसरी तरफ अखिलेश सरकार है जो हमारे बेगुनाह बच्चों की बेगुनाही का सबूत निमेष कमीशन की रिपोर्ट पर अमल नहीं कर रही है. सबसे अहम कि सपा समेत दूसरी पाटिर्यों के मुस्लिम विधायकों ने आपराधिक चुप्पी साधे रही जो सबसे शर्मनाक है. ऐसे दौर में अल्पसंख्यक समाज के सामने एक बड़ी चुनौती है कि उनके लोकतांत्रिक अधिकारों को कहीं जांच और वादों के नाम पर वोट बैंक के रूप में देखा जा रहा है. ऐसे में बाटला हाउस फर्जी एनकाउंटर की पांचवीं बरसी पर हमें संकल्प लेना चाहिए कि राजनैतिक दलों के बहलावे में न आकर हम इंसाफ की लड़ाई को तेज करें जोकि लोकतंत्र की बुनियाद है.
भागीदारी आंदोलन के नेता पीसी कुरील, भंवरनाथ पासवान, शोसित समाज दल के केदार नाथ सचान, आईएनएल के एससी मेहरोल ने कहा कि रिहाई मंच का पिछले चार महीनों से चल रहा यह धरना अपने आप में इतिहास है और इसे आने वाले दौर में लोकतंत्र को मज़बूत करने वाले जनआंदोलन के बतौर याद किया जाएगा. जिससे समाज प्रेरणा लेगा. इस धरने के दबाव में जिस तरीके से सरकार ने निमेष आयोग की रिपोर्ट को स्वीकारा और उसके बाद सत्र के पहले ही दिन सदन के पटल पर सार्वजनिक किया उसने मुस्लिम समाज में जनआंदोलनों के प्रति एक बड़ी लहर पैदा की है. क्योंकि पिछले पच्चीस-तीस सालों के उत्तर प्रदेश के इतिहास में अगर बात शुरू की जाय तो मेरठ हाशिमपुर मलियाना से जिसमें 6 जांच आयोग गठित किये गए, तो वहीं 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस से पहले और उसके बाद जिस तरीके से तमाम दंगों पर बने आयोग हों या कानपुर में प्रशासन की भूमिका की जांच के लिए बनी एसी माथुर कमीशन हो या फिर बिजनौर दंगा कमीशन सहित दर्जनों दंगा कमीशनों की रिपोर्ट आज तक न तो स्वीकार हुई और ना ही सार्वजनिक हुई है. इसलिए निमेष कमीषन रिपोर्ट का सार्वजनिक किया जाना रिहाई मंच की एक ऐतिहासिक जीत है कि उसने चार महीनों की मशक्कत के बाद सरकार को इसे स्वीकारने और उसे सार्वजनिक करने को मजबूर किया.
सामाजिक न्याय मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष और रिहाई मंच के इलाहाबाद प्रभारी राघवेंद्र प्रताप सिंह, संस्कृतिकर्मी आदियोग, साहित्यकार विरेंद्र यादव और प्रगतिशील लेखक संघ के संजय श्रीवास्तव ने कहा कि रिहाई मंच ने जिस तरीके से सपा सरकार को निमेष कमीशन की रिपोर्ट को सार्वजनिक करने पर मजबूर किया. ऐसे में हमें पूरा यकीन है कि यूपी में चाहे वह विक्रम सिंह या बृजलाल या फिर अन्य आई बी के अधिकारी, आने वाले दिनों में गुजरात के बंजारा और सिंघल की तरह जेल के पीछे नज़र आयेंगे. ऐसे में आवाम की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है कि इस आंदोलन को इसकी मंजिल तक पहुंचाने के लिए यानि, बेगुनाहों की रिहाई तथा दोषी पुलिस अधिकारियों की गिरफ्तारी और आतंकवादी घटनाओं की पुर्न विवेचना करा कर देश में आतंक की राजनीति का खात्मा करे.
आज़मगढ़ से आए अबु आमिर, रफीक़ सुल्तान खान, शम्स तबरेज ने कहा कि आज बाटला हाउस की पांचवी बरसी है. आज ही के दिन आईबी के राजेन्द्र कुमार ने साजिश रचकर बाटला हाउस फर्जी मुठभेड़ को अंजाम दिलवाया था. और एक जिले को आतंक की नर्सरी के रूप में स्थापित करने की कोशिश की. ये वही राजेन्द्र कुमार हैं जिनको पिछले दिनों इशरत जहां केस में देश के गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने बचाने के लिए सीबीआई द्वारा चार्जशीट नहीं आने दिया. ठीक यही काम 3 दिनों पहले 16 सितंबर को यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने प्रदेश की सर्वोच्च संस्था विधान सभा में खुलेआम किया. और निमेष कमीशन रिपोर्ट पर अमल न करके आईबी और आतंकवादी संगठनों के गठजोड़ को बचाने का काम किया जो देश के लोकतंत्र के लिए खतरनाक है.
कानपुर से आए हफीज अली, फरीद खान ने कहा कि आज़मगढ़ के शहजाद प्रकरण पर जिस तरीके से दिल्ली की साकेत कोर्ट ने फैसला दिया. साकेत कोर्ट ने बिना तथ्यों और सबूत के उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई, ऐसे में जब लोकतंत्र के सभी स्तंभ मुस्लिम समुदाय के लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमलावर हो तब हमारी जिम्मेदारी और बढ़ जाती है कि हम अपने लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए बड़े जन आंदोलनों की तरफ बढ़े.
इस मौके पर मुस्लिम मजलिस के नेता शाहआलम शेरवानी, डॉ. फिरोज, तलत और जैद अहमद फारूकी और भारतीय एकता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष सैय्यद मोईद अहमद ने कहा कि मुसलमान नहीं बल्कि संघ परिवार के लोग आतंकवादी हैं. जिसके कार्यकर्ता पूरे देश में आतंक फैलाने के आरोप में पकड़े गए हैं. उन्होंने कहा कि सरकारें निर्दोष मुसलमानों को आतंकवाद के आरोप में फंसाती हैं, लेकिन कर्नल पुरोहित द्वारा आतंकवाद की ट्रेनिंग पाए सैकड़ों आतंकवादी आज भी नहीं पकड़े गए. उन्होंने कहा कि देश में हर जगह आईबी और संघ परिवार ने मिल कर विस्फोट कराए हैं जिसमें सैकड़ो लोग मारे गए. आईबी की इस साम्प्रदायिकता को खत्म किये बिना लोकतंत्र सुरक्षित नहीं है.
रिहाई मंच के धरने के 121वें दिन गिरफ्तारी से पहले आमरण अन्शन पर बैठे रिहाई मंच के प्रवक्ता राजीव यादव, आजमगढ़ रिहाई मंच के प्रभारी मसीहुद्दीन संजरी और तारिक शफीक को पीसी कुरील और भंवर नाथ पासवान ने जूस पिला कर अनशन तुड़वाया.