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दशहरा पर्व प्रतिभावान (ज्ञानी) व्यक्ति की हत्या का पर्व

Subhash Gautam for BeyondHeadlines

आज दशहरा पर्व है. हिन्दु्स्तान के अलग-अलग राज्यों और शहरों में इसे मनाने के अपने-अपने तरीक़े हैं. कहीं रावण दहन तो कहीं रावण वध (हत्या) के रूप में इसे मनाया जाता है. हिन्दुस्तान का एक बड़ा समुदाय इस जश्न में शरीक होता है. कुछ प्रगतिशील लोग इसकी भर्त्सना भी करते हैं और इसे अन्धविश्वास से जोड़कर देखते है. कुछ लोग इस पर्व को असत्य पर सत्य की जीत के रूप में देखते है और रावण को अहंकारी, दानव, राक्षस आदि नाम देते हैं.

Ram-Vs-Ravanलेकिन मुझे जहां तक लगता है कि इस पर्व को एक प्रतिभावान और ज्ञानी व्यक्ति की हत्या के रूप में देखा जाना चाहिए. इस प्रकार की हत्या और दुर्घटनाएं सदियों से हमारे समाज में होती रही हैं और आज भी हो रही हैं. आज भी हमारे समाज में चाहे अकादमिक क्षेत्र की बात करें या अन्य सरकारी गैर-सरकरी नौकरियों की बात करें तो इस प्रकार की षड्यंत्रकारी हत्याएं हमें देखने को आज भी मिलती हैं.

हिन्दुस्तानी समाज में सदियों से प्रतिभावान और ज्ञानी व्यक्ति की उपेक्षा और हत्याएं होती रही हैं. इसका इतिहास साक्ष है. हमारे यहां प्रतिभा की कभी भी क़द्र नहीं हुई हैं. जैसा कि अकादमिक दुनिया, मीडिया आदि में भी एक ख़ास वर्चस्ववादी समाज का दबदबा आज भी देखने को मिलता है.

रावण अपने समय का सबसे ज्ञानी व्यक्ति था यह बात किसी से छुपी नहीं है. इसका ग्रंथो में भी उल्लेख मिलता है. ज़ाहिर सी बात है कि रावण के ज्ञान से एक ख़ास तरह के वर्चस्ववादी समाज को ख़तरा महसूस हुआ होगा और उसकी हत्या की साज़िश राम जैसे अज्ञानी व्यक्ति के साथ मिलकर रची गई होगी और सफल भी हुए. जिस राम-लक्षण के ज्ञान और पराक्रम का बखान राम तुलसी करते हैं, वह कितना सत्य है यह शोध का विषय है. रही बात उनके ज्ञान और पराक्रम कि तो राम-लक्षमण जिस अवस्था में बनवास गए थे उस समय उनकी उम्र चौदह वर्ष थी. इसका मतलब यह कि वो कक्षा दस भी नहीं पास नहीं थे और राम-लक्ष्मण जैसे मूर्खो को तुलसी जैसा पोंगा कवि शिखर पर चढ़ा दिया.

जिस छल और कपट से राम-लक्षण ने रावण जैसे ज्ञानी व्यक्ति कि हत्या (वध) की उसका अंदाज़ा आज वर्चस्ववादी समाज की बर्बरता से लगा सकता है, जो आज भी प्रतिभावान व्यक्तियों की लगातार उपेक्षा और हत्या कर रहा हैं. आज जिस योग्य व्यक्ति को सम्मान और पद मिलना चाहिए उसे व्यवस्था से बाहर रखकर यह वर्चस्ववादी समाज अपना वर्चस्व बनाए हुए हैं. हमें दशहरा को याद कर इस ख़ास वर्चस्ववादी समाज और अयोग्यों को उखाड़ फेंकना है.

 (ये लेखक के अपने विचार हैं.)

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