Sanjeev Kumar (Antim) for BeyondHeadlines
आधारभूत संरचना के मामले में गुजरात बहुत बड़े-बड़े दावे करता है, जिसमें पूरे गुजरात को 24 घंटे बिना कटे बिजली, पानी और हर गांव में सड़क आदि शामिल है.
इसमें कोई शक नहीं है कि गुजरात की इन सभी क्षेत्रों वर्तमान स्थति उल्लेखनीय और सराहनीय है, परन्तु सर्वोत्तम नहीं. भारत के कई ऐसे राज्य हैं जिनका इन क्षेत्रों में स्थति गुजरात से कहीं अधिक बेहतर है.
इससे भी अधिक ध्यान देने योग्य बात ये है कि मोदी के शासन की तुलना में मोदी के पूर्व के शासनकाल में इन क्षेत्रों में विकास कहीं बेहतर हुआ था. अब गुजरात की हर विषयवस्तु के लिए तो मोदी जी जिम्मेदार नहीं हो सकते हैं, बल्कि उनके काल में जो भी हुआ है उसके लिए ही उन्हें जिम्मेदार ठहराया जा सकता है.
1990 के दशक में गुजरात में कुल सड़कों कि लम्बाई में 9.77 % की बढ़त हुई जो कि 2000 के दशक, अर्थात विकास पुरुष मान्यनीय नरेंद्र भाई मोदी के कार्यकाल में यह वृद्धि दर 4.95% रह गई. 1990 के दशक में गुजरात में कुल 6554 किलोमीटर नए सड़क बनवाए गए, जबकि 2000 के दशक में मात्र 3646 किलोमीटर सड़क ही बनवाएं गए.[1]
यह ध्यान देने योग्य बात है कि 1991 में ही गुजरात की 87.5% सड़के सल्फाइट से पक्की बनी हुई थी.[2] गुजरात में कुल सड़कों कि लम्बाई मार्च 2002 में 137617 किमी थी, जो कि पूरे भारत में फैले कुल सड़क का 5.60% था, बढ़कर 2011-12 में 156188 किमी हुआ जो कि पूरे भारत में फैले कुल सड़क कि लम्बाई का मात्र 4.12% ही रह गया.
इसी प्रकार 2002 में गुजरात में पूरे भारत में फैले कुल पक्के सड़क में गुजरात की भागीदारी 8.75% सड़क था जो कि 2011 में घटकर 6.05% रह गया.[3] अर्थात पक्की सड़क हो या कच्ची देश के अन्य भागो की तुलना में गुजरात में कम सड़कें बन रही है.
अब मोदी जी ये भी तो नहीं कह सकते हैं कि केंद्र सरकार उनके साथ इस मामले में सौतेला व्यवहार कर रही है और उनके राज्य को धन आवंटित नहीं कर रही है, क्यूंकि कैग के अनुसार गुजरात सरकार के सड़क और निर्माण विभाग को केंद्र सरकार ने वर्ष 2012-13 के दौरान 957.94 करोड़ रूपये दिए पर राज्य सरकार उसमें से आधा भी न खर्च कर पाई.[4]
गुजरात सरकार की सड़क बनाने के प्रति सजगता का ढोल तब फुट पड़ता है, जब हम राज्य सरकार के कार्यक्षेत्र में आने वाले राज्य मुख्य मार्गो के पिछले दशक में गुजरात के विस्तार का अध्यन करते है.
2001 में पूरे भारत के सभी राज्यों के राज्य मुख्यमार्गों में गुजरात कि भागीदारी 13.92% थी जो घटकर 2011 में 11.24 % रह गई. 2011 में गुजरात में प्रति 100 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर 79.7 किमी सड़क था, जबकि राष्ट्रीय औसत 115.3 किमी है. प्रति लाख की आबादी पर गुजरात में 258.7 किमी सड़क है, जबकि भारत का राष्ट्रीय औसत 313 किमी है और ये तब हो रहा है जब गुजरात का जनसंख्या वृद्धि दर भारत की जनसंख्या वृद्धि दर से कम ही है.[5]
1990-91 में गुजरात राज्य परिवहन निगम की कुल कार्य क्षमता 858000 किमी की थी जो 2000-01 में बढ़कर 1205000 किमी हो गई थी, लेकिन 2010-11 आते-आते ये निराशजनक रूप से घटकर 1121000 किमी रह गई. वहीं 1990-91 से 2000-01 के बीच गुजरात के सड़क पर सरकारी वाहनों की संख्या 7633 से बढ़कर 8573 हो गई थी. लेकिन 2010-11 आते आते संख्या फिर से घटकर 6327 हो गई.[6]
इसका तो यही अर्थ हुआ कि गुजरात सरकार अपने आम नागरिकों को सरकारी परिवहन व्यवस्था उपलब्ध करवाने में कोई रूचि नहीं रखता है. लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि गुजरात के लोग परिवहन नहीं करते हैं, बल्कि फर्क सिर्फ इतना है कि अब वहां के नागरिकों को प्राइवेट परिवहन व्यवस्था पर अधिक निर्भर रहना पड़ता है. और इससे निजी वर्ग को परिवहन के क्षेत्र में भी पैठ बनाकर बिना किसी रोक-टोक के बेतहाशा लाभ कमाने का मौका मिल जाये और उसे परिवहन के सरकारी क्षेत्र से कोई चुनौती न मिल पाए.
1996 में ही गुजरात के कुल 18028 राजस्व गांव में से 16922 गांव पक्के सड़क से जुड़े हुए थे, जिनकी संख्या 2006 में बढ़कर 17822 हो गई. राजस्व गांव वो गांव होते हैं जहां के वाशिंदे के पास कृषि योग्य ज़मीन हो और वो उसपे कर देतें हों. इस तरह के ज्यादातर गांव मजदूरों और दलितों का होता है जिसकी आबादी सामान्यतः 500 से कम ही होती है.
पिछले दस वर्षों में सड़क से जोड़े गए नए मानव बस्तियों में से 4040 बस्तियों को केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत जोड़ा गया, जिसमें 3000 से अधिक बस्ती की आबादी 500 से कम है. जबकि गुजरात सरकार ने 500 से कम आबादी वाले छोटे मानव बस्तियों को सड़क से जोड़ने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रही है. आज भी गुजरात में 500 से कम आबादी वाले 22% बस्तियां सड़क से जुड़े नहीं है.[7] गुजरात के पिछड़े क्षेत्रों में जहां ज्यादातर समाज के निम्न वर्ग की आबादी रहती है, वहां ये दावा और अधिक साफ़ दिखता है.
हालांकि इसका मतलब ये नहीं है कि गुजरात में पिछले दस वर्षों में सड़क परिवहन के क्षेत्र में कोई विशेष उपलब्धि नहीं हासिल की है. गुजरात की वर्तमान सरकार ने सड़क परिवहन से बिल्कुल कटे क्षेत्रों को जोड़ने के स्थान पर पहले से ही सड़क परिवहन से जुड़े क्षेत्रों को अधिक बेहतर सड़क सुविधा उपलब्ध करवाने पर अधिक जोर दिया है. सड़कों की लम्बाई की जगह चौड़ाई और चिकनाई बढाने पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है.
शहरों को रेड-लाइट से मुक्त करने के लिए फ्लाईओवर पर फ्लाईओवर बनाये जा रहे है ताकि वाणिज्य व्यापार में समय की बर्बादी न हो. गुजरात सरकार ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वो ऐसा समझती है कि छोटे गांव और बस्तियों को सड़को से जोड़ने से ज्यादा लाभ बड़े मानव बस्तियों में बेहतर सड़क की सुविधा पहुंचाने से होती है. क्यूंकि बड़े गांव में रहने वाले ज्यादातर आबादी उच्च जाति और उच्च वर्ग से सम्बन्ध रखते हैं. इसलिए ऐसी बस्तियां मोदीजी के चहेते पूंजीपतियों को बेहतर बाजार उपलब्ध साबित होती है और वो भी कम खर्चे पे.
इसकी तुलना में छोटे बस्तियों में रहने वाले दलित और बन्धूआ मजदुर के पास पेट भरने के लिए तो साधन कम पड़ जाता है, वो क्या पूंजीपतियों के लिए वाइब्रेंट बाजार साबित होंगे.
अगर गुजरात सरकार का आकलन सही भी है तो भी क्या हम इस बात से इंकार कर सकते हैं कि छोटे मानव बस्तियों में रहने वालों को भी बेहतर सड़क सुविधा पाने का उतना ही अधिकार है, जितना बड़े मानव बस्तियों में रहने वाले लोगों को है.
सही कहें तो वास्तविकता ये है कि गुजरात सरकार को बड़े उद्द्योगपतियों और पूंजीपतियों के लाभ और फायदे की चिंता अधिक है और चूंकि उन पूंजीपतियों को बड़े मानव बस्तियों और शहरों में कम मेहनत में बड़ा बाजार मिल जाता है तो वो छोटे बस्तियों की तरफ क्यूं ध्यान दे, जहां बाजार फ़ैलाने में अधिक मेहनत और पूंजी लगेगी.
अब छोड़िए! अगर हमारे मोदी जी को दबी कुचली जनता के समस्याओं और सुविधाओं के बारे में प्रश्न सुनना अच्छा नहीं लगता है तो नहीं पूछेंगे. पर पोर्ट परिवहन के बारे में तो पूछ सकते है, क्यूंकि पोर्ट परिवहन का तो गरीब जनता से प्रत्यक्ष रूप से कोई लेना देना तो है नहीं.
1981 से 2001 के दौरान भारत के कुल पोर्ट ट्रैफिक में गुजरात कि भागीदारी 45.36% से बढ़कर 76% हो गई जो कि आज तक उतना ही है और मोदी के शासन काल में कोई बदलाव नहीं हुआ.[8]
वैसे राज्य की सभी पोर्ट राज्य सरकार के जिम्मे में नहीं होता है. राज्य सरकार के जिम्मे में सिर्फ नान मेजर पोर्ट्स ही होते है जबकि मेजर पोर्ट्स केंद्र सरकार के जिम्मे होता है. नॉन-मेजर पोर्ट्स पर भारत के कुल पोर्ट ट्रैफिक को नियमित करने में गुजरात का योगदान 2001-02 में 83.3% से घटकर 2009-10 में 71.2% रह गया.
इसी काल के दौरान आंध्र प्रदेश ने अपने योगदान को 5.9% से बढ़ाकर 15.1% कर लिया.[9] गुजरात के खुद के दस्तावेज़ के अनुसार 1990-91 से 2000-01 के दौरान गुजरात का पोर्ट हैंडलिंग चार गुना से भी ज्यादा बढ़ा जबकि मोदी के कार्यकाल के 10 वर्षों के दौरान ये 2 गुना से कुछ ज्यादा ही बढ़ पाया.[10]
संचार के एक अन्य प्रतीक सेलुलर फ़ोन के मामले में भी गुजरात की स्थिति कुछ ऐसी ही है. 2005 में गुजरात में भारत का 7.53% सेलुलर फ़ोन हुआ करता था जबकि आज ये मात्र 5.71% रह गया है.[11]
(लेखक जेएनयू के छात्र के साथ-साथ एक थियेटर एक्टिविस्ट और जागृति नाट्य मंच के संस्थापक सदस्य हैं. इनसे Subaltern1987@gmail.com पर सम्पर्क किया जा सकता है.)
[1] सामाजिक आर्थिक समीक्षा, गुजरात सरकार 2012-13, पृ.स.S-63
[2] टाइम्स ऑफ़ इंडिया, 5 अक्टूबर 2011
[3] Socio-Economic Review, Gujarat State 2012-13, p 94; Socio-Economic Review, Gujarat State 2005-06, p 94
[4] इकनोमिक टाइम्स; “8 holes CAG picked”
[5] सामाजिक आर्थिक समीक्षा, गुजरात सरकार 2012-13, पृ.स.94; और 2005-06, पृ.स.94
[6] सामाजिक आर्थिक समीक्षा, गुजरात सरकार 2012-13, पृ.स. S-68
[7] अतुल सूद, तालिका 4.5, पृ.स.70-71 or 226; http://www.rnbgujarat/panchayat1.htm
[8] टाइम्स ऑफ़ इंडिया, 5 अक्टूबर 2011
[9] http://shipping.gov.in/index1.php?.ang=1aurlevel=0orlnked= 12orlid=55
[10] सामाजिक आर्थिक समीक्षा, गुजरात सरकार 2012-13, पृ.स.S-69
[11] सामाजिक आर्थिक समीक्षा, गुजरात सरकार 2012-13, पृ.स. 95; और 2005-06, पृ.स.94