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आम बजट में देश के गरीबों के लिए कुछ भी नहीं…

Faiz Ahmad Faiz for BeyondHeadlines

मोदी सरकार ने कल अपना आम बजट पेश कर यह स्पष्ट कर दिया कि उनका सत्ता में आने का मक़सद अवाम की ज़िन्दगी को जहन्नुम बनाकर कार्पोरेट जगत को मालामाल करने का है और उस मक़सद को पाने लिए उन्होंने देश भर के आम भारतीयों गरीबों, मजदूरों और मध्य वर्ग के सामने झूठ बोला था. आप इस आम बजट को गंभीरता से देखेंगे तो पता चलेगा कि बजट में देश के गरीबों, मज़दूरों व मध्य वर्ग के लिए कुछ भी नहीं है.

आम बजट से पहले मोदी सरकार के पहले रेल बजट ने ही जनता के तमाम संदेह व आशंकाओं को यक़ीन में बदल दिया था. रेलवे में एफडीआई का  रास्ता खोलने, यात्री किराए को सरकार के नियंत्रण से आज़ाद करने और साल में दो-दो बार रेल किराया में इज़ाफा की घोषणा इस बात की गवाही दे रही है कि वर्तमान बीजेपी सरकार दो-चार कार्पोरेट घरानों के आदेश पर देश की जनता का मुकद्दर गिरवी रखने जा रही है. और अब आम बजट से खुलकर सामने आ गया है कि मोदी सरकार गरीबों की नहीं, बल्कि देश-विदेश के चंद पुंजीपतियों के इशारे पर नाचने वाली कठपुतली सरकार है.

यह कितना दिलचस्प है कि जिस एफडीआई पर बीजेपी बदतमीजी की हद तक देश में अनारकी फैला रही थी. वही एफडीआई उन्हें अब देश-हित में नज़र आने लगा. शायद बीजेपी देश का वो इतिहास भूल गई कि आज से पौने तीन सौ साल पहले ईस्ट इंडिया कम्पनी  ने भी इसी निवेश के ज़रिए हमारे इस महान देश पर कब्ज़ा किया था.

देश में महंगाई का स्तर चरम सीमा पर है. मगर मोदी सरकार इसकी परवाह किए बिना बाज़ारों को विदेशी कम्पिनयों के हाथों गिरवी रखने के लिए उतावली है. जिससे देश के गरीब व मध्य वर्ग का जीवन नरक बनकर रह गया है. कम्प्यूटर, टीवी, हीरे-मोती सस्ते कर देने से देश की 80 फीसद जनता का क्या लेना-देना? जनता तो आलू-प्याज़ के कीमतों से ही परेशान है.

सच तो यह है कि देश में प्याज और उसके जमाख़ोरी का कारोबार चलाने वाले व्यापारी सरकार की गिरफ्त से आज़ाद हो चुके हैं. जब भी उनके दिल में आता है, वह जनता को रूलाने लगते हैं.  जनता कुछ समय चीखती चिल्लाती है, फिर शांत हो जाती है, क्योंकि उस समय तक प्याज़ के व्यापारी अपना घर भरकर मुस्कुरा रहे होते हैं. जिस तरह प्याज की कीमतों में अचानक उछाल आता है, उस तरह अन्य चीजों की कीमतें नहीं बढ़ती. जैसे ही प्याज़ अपना तेवर दिखाता है, दाल, अदरक, काली मिर्च, जीरा, इलायची आदि धीरे-धीरे अवाम को सताना शुरू कर देते हैं. आलू अपेक्षाकृत एक धैर्यपूर्ण पसंदीदा प्राणी है. वे अपनी हद से आगे जाने की कोशिश नहीं करता, लेकिन इस बार वह भी प्याज़ के रास्ते पर चल पड़ा है. इसने भी जनता के खिलाफ बगावत का ऐलान कर दिया है.

सवाल पैदा होता है कि वो लोग आख़िर बीजेपी की सरकार आते ही कहां गायब हो गए जो कल इसी महंगाई के लिए यूपीए सरकार को पानी पी-पी कर कोस रहे थे. जिनका सिद्धांत था कि मार्केट बेहतरीन रेगूलेट्री है, इसे किसी सरकार के दबाव से कोई फर्क नहीं पड़ता.

विडंबना यह है कि कारोबारी एकजुट हैं. वह बंद कमरे में बैठकर षड्यंत्र करते हैं. मगर एक तरफ किसान तो दूसरी ओर उपभोक्ता पूरी तरह से बिखरे पड़े हैं. यह सिद्धांत बिल्कुल स्पष्ट है कि संगठित ताकते हमेशा असंगठित वर्ग को हरा देती हैं. कहने को तो देश के पास सरकार नाम का एक निर्वाचित संगठन भी मौजूद है, लेकिन इसका काम बेशर्म गैंडे की तरह सोए रहना है.

कहा तो यह भी जाता है कि सरकार की व्यापार संगठनों के साथ मिलीभगत है, जिसका इशारा चुनावी अभियान के दौरान नरेन्द्र मोदी के प्रदर्शन से ही मिल चुका था.

नरेंद्र मोदी एक दार्शनिक हैं जिनके पास देश के हर समस्या का इलाज मौजूद है, यह अलग सी बात है कि वह पूर्व प्रधानमंत्री की तरह चुप्पी साधे हुए हैं, हालांकि इस चुप्पी की वजह से वह मनमोहन सिंह को ‘मौन मोहन’ सिंह कहा करते थे. यह बात स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री और संसद में मौजूद 543 सांसदों को इस कमरतोड़ महंगाई से कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन इस महंगाई से जिस गरीब व मध्यवर्ग के होश उड़ेंगे, उनमें बेचैनी ज़रूर है. मगर इनकी आवाज़ उठाने वाला संसद या इसके बाहर कोई जुर्रत-मंद लीडर मौजूद नहीं है.

आप शायद नरेंद्र मोदी का वो बयान भूले नहीं होंगे, जो लोकसभा के चुनावी अभियान के दिनों में उन्होंने जवाहर लाल नेहरू के बारे सीना ठोकते हुए दिया था.

मोदी ने कहा था कि मौजूदा महंगाई प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की देन है. उन्होंने देश भर में घूम-घूम कर लोगों को बताया था कि जवाहर लाल ने जिन आर्थिक नीतियों की बुनियाद  रखी थी, वह कांग्रेस की ‘प्रबंधन नीति’ है, जिसकी सजा 67 वर्षों से हम सभी भुगत रहे हैं. लेकिन कांग्रेस की उन गरीब विरोधी नीतियों को खत्म करके ही दम लूंगा. जनता ने मोदी की इन चिकनी चुपड़ी बातों  पर यकीन कर लिया और उन्हें पूर्ण बहुमत देकर देश की बागडोर हाथों में थमा दी.

वह बार-बार कहा करते थे कि कांग्रेस मुक्त हिंदुस्तान ही भ्रष्टाचार मुक्त हिंदुस्तान बन सकता है, मगर हम देख रहे हैं कि प्रधानमंत्री और उनके मंत्रिमंडल के हर फ़ैसले से देश के किसान, मज़दूर, गरीब और मध्य वर्ग की हालत बद से बदतर होती जा रही है.

यहां यह भी दुर्भाग्यपूर्ण है कि कांग्रेस पार्टी मोदी और बीजेपी की योजनाबद्ध नीतियों को समझने और उसकी हक़ीक़त को देश की जनता के सामने रखने में नाकाम रही. काश कांग्रेस इस सच्चाई को जनता तक पहुंचाने में कामयाब हो जाती तो आज परिणाम कुछ और होता.

(लेखक विश्व शांती परिषद के अध्यक्ष हैं.)

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