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खालिद मुजाहिद हत्या कांड में फाइनल रिपोर्ट का खारिज होना सपा सरकार के मुंह पर तमाचा- रिहाई मंच

BeyondHeadlines News Desk

लखनऊ : रिहाई मंच ने खालिद मुजाहिद हत्या मामले में विवेचना अधिकारी द्वारा लगाई गई फाइनल रिपोर्ट के बाराबंकी मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी द्वारा खारिज किए जाने का स्वागत किया है.

रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब ने इसे इस मामले के आरोपियों जिनमें पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह, पूर्व एडीजी कानून व्यवस्था बृजलाल, मनोज झा समेत कई आला पुलिस अधिकारियों समेत आईबी के अधिकारी भी शामिल हैं, को बचाने वाली प्रदेश सरकार के मुंह पर तमाचा बताया है.

खालिद मुजाहिद हत्या कांड की जांच में वादी ज़हीर आलम फलाही के अधिवक्ता मोहम्मद शुऐब और रणधीर सिंह सुमन ने बताया कि खालिद की हत्या जो 18 मई 2013 को हुई थी, के मामले में उनके चचा ज़हीर आलम फलाही ने बाराबंकी कोतवाली में मुक़दमा दर्ज कराते हुए सीबीआई जांच की मांग की थी. लेकिन विवेचना अधिकारी ने पूरे मामले बिना आरोपियों से पूछताछ किए ही 12 जून 2014 को फाइनल रिपोर्ट लगा दी थी.  जिसे खारिज करने की मांग के साथ ज़हीर आलम फलाही ने 20 अक्टूबर 2014 को वाद दाखिल किया था. जिसमें उन्होंने प्रार्थना की थी कि विवेचना अधिकारी द्वारा वादी का 161 सीआरपीसी के तहत बयान दर्ज नहीं किया गया, अभियुक्तगणों का नाम मामले में होने के बावजूद विवेचना अधिकारी द्वारा उन्हें अज्ञात लिखा गया.

इसके साथ ही विवेचनाधिकारी मोहन वर्मा, कोतवाल, बाराबंकी ने खालिद के कथित तौर पर गिरफ्तारी के समय उनके अपहरण, अवैध हिरासत के आरोप की जांच नहीं की, जिससे बाद में उनकी हत्या का उद्देश्य स्पष्ट हो जाता है.

वहीं विसरा की जांच भी उचित तरीके से नहीं की गई, क्योंकि प्रभावशाली आरोपियों विक्रम सिंह और बृजलाल के प्रभाव क्षेत्र में ही विधि विज्ञान प्रयोगशाला भी आती है.

प्रार्थना पत्र में ज़हीर आलम ने सवाल उठाया था कि चूंकि ऐसा प्रतीत होता है कि विवेचनाधिकारी ने अपने उच्च अधिकारियों को बचाने के लिए साक्ष्य एकत्र करने के बजाए उन्हें नष्ट करने का कार्य किया और हत्या के उद्देश्य के संबन्ध में कोई जांच करने की कोशिश ही नहीं की, इसलिए पूरे मामले की फिर से जांच कराई जाए.

जिस पर फैसला सुनाते हुए मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी बृजेन्द्र त्रिपाठी ने वादी से सहमत होते हुए कहा कि सभी साक्ष्यों के आधार पर यह स्पष्ट है कि सही ढंग से मामले की विवेचना नहीं की गई है. सही बयान भी अंकित नहीं किए गए हैं. जिसके समर्थन में वादी ने शपथ पत्र भी लगाया है.

दंण्डाधिकारी ने आगे कहा है कि पत्रावली के परिसीलन से यह भी स्पष्ट हो जाता है कि प्रकरण में विवेचक का आचरण जल्दबाजी का प्रतीत हो रहा है. इसलिए उक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए मामले की अग्रिम विवेचना कराया जाना न्यायोचित है.

इस मामले में दण्डाधिकारी ने थाना प्रभारी कोतवाली बाराबंकी को निर्देशित किया है कि इस पूरे मामले की विवेचना के प्रति सभी तथ्य संज्ञान में लेकर पुलिस अधीक्षक बाराबंकी के निर्देशानुसार इसकी जांच सुनिश्चित करें तथा दो महीने के अंदर परिणाम से अवगत कराएं.

रिहाई मंच आज़मगढ़ प्रभारी मसीहुद्दीन संजरी ने कहा कि खालिद मुजाहिद की हत्या प्रकरण में विवेचनाधिकारी पर उठते सवाल जिस पर अदालत ने भी संदेह व्यक्त कर दिया, से साफ है कि डीजीपी, एडीजी स्तर के अधिकारी इस पूरे मामले को दबाने में लगे हैं, जिसमें यूपी की अखिलेश सरकार भी उनके साथ है.

खालिद मुजहिद हत्या प्रकरण सिर्फ हत्या तक सीमित नहीं है, बल्कि यह तारिक़-खालिद की गिरफ्तारी से भी जुड़ा है, जिस पर आरडी निमेष जांच आयोग ने संदेह व्यक्त करते हुए दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की है.

उन्होंने कहा कि दरअसल तारिक़-खालिद की गिरफ्तारी के समय उनके पास से बरामद दिखाए गए हथियार व विस्फोटक उनकी गिरफ्तारी के झूठे साबित हो जाने के बाद पुलिस व खुफिया विभाग संदेह के घेरे में आ जाता है कि इतने बड़े पैमाने पर उनके पास विस्फोटक व हथियार कहां से आए.

यह पूरा मामला पुलिस-खुफिया विभाग और आतंकवाद के बीच के गठजोड़ का है, जिसे हर संभव कोशिश कर प्रदेश की सपा सरकार उन्हें बचाकर छुपाना चाहती है. क्योंकि इससे आतंकवाद की पूरी राजनीति जिसके निशाने पर मुसलमान हैं, का पर्दाफाश हो जाएगा.

रिहाई मंच ने मांग की कि यूपी सरकार प्रदेश को खुफिया विभाग-पुलिस और आतंकवाद के गठजोड़ से पैदा होने वाली खतरनाक राजनीतिक खेल में न फंसाकर खालिद मुजाहिद हत्या कांड की सीबीआई जांच कराए और तत्काल प्रभाव में निमेष जांच आयोग रिपोर्ट पर अमल करते हुए दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करे.

स्पष्ट विवेचना न्याय का आधार होती है जिसकी जिम्मेदारी विवेचनाधिकारी पर होती है. पर विवेचनाधिकारी ने जिस तरीके से इस मामले में पुलिस के आला अधिकारियों को बचाने की कोशिश की उसके खिलाफ न सिर्फ कार्रवाई की जाए बल्कि आतंकवाद के नाम पर झूठी बरामदगी, गिरफ्तारी व हत्या कराने वाले पुलिस के अधिकारियों के इस पूरे गठजोड़ की जांच कराई जाए.

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