BeyondHeadlines News Desk
लखनऊ : रिहाई मंच ने कहा है कि सन् 2008 में आतंकवादी बताकर गिरफ्तार किए गए बेलगाम, कर्नाटक निवासी इक़बाल अहमद जकाती, जो चार साल तक बेगुनाह होते हुए भी जेल में बंद रहे और बाद में अदालत द्वारा बाइज्ज़त बरी किए गए, को दंगा भड़काने के एक फर्जी मुक़दमें में आरोपी बनाकर गिरफ्तार करने की निंदा करते हुए इसे कर्नाटक पुलिस की घोर सांप्रदायिक मानसिकता का उदाहरण बताया है.
रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब ने कहा कि इक़बाल अहमद जकाती, जो पिछले कई महीनों से अपना अख़बार ‘पैगामे इत्तेहाद’ निकालते थे और आतंकवाद से जुड़ी घटनाओं में संघ परिवार की संलिप्तता पर आयी रिपोर्टों की पुस्तिकाओं का स्टॉल लगाते और इस सवाल को अपने अखबार के ज़रिए उठाने का काम कर रहे थे, को पिछले कई महीनों से पुलिस द्वारा धमकी दी जा रही थी कि वे ऐसा न करे, नहीं तो उन्हें आतंकवाद के झूठे आरोप में फंसा दिया जाएगा.
जिसके संदर्भ में उन्होंने 9 फरवरी 2015 हो ही कर्नाटक के मुख्यमंत्री, डीजीपी समेत, राष्ट्रीय व राज्य मानवाधिकार आयोग को अपने उत्पीड़न और मिल रही धमकियों पर न्याय की गुहार की थी. अपने शिकायती पत्र में उन्होंने साफ तौर पर बताया था कि बेलगाम के एसएसपी ने उन्हें फर्जी मुठभेड़ में मार देने तक की धमकी दी है. लेकिन बावजूद इसके पत्र पर कार्रवाई करने के पुलिस ने 11 फरवरी की रात 1 बजे उन्हें जबरन घर से उठा लिया और दंगाई बताते हुए उनके खिलाफ मुक़दमा दर्ज कर दिया.
लोक संघर्ष पत्रिका के सम्पादक और अधिवक्ता रणधीर सिंह सुमन ने कहा कि इक़बाल जकाती जो उनकी पत्रिका से जुड़े हुये थे, को पुलिस हिरासत में बुरी तरह पीटा गया और उनसे लिखित तहरीर पर, जिसमें बताया गया था कि उन्होंने बहुत सारे लड़कों को उकसा कर पाकिस्तान जिंदाबाद नारा लगाने के लिए भेजा था.
रणधीर सिंह सुमन ने पत्रकार बिरादरी और मानवाधिकार संगठनों से एक निर्दोष पत्रकार के उत्पीड़न के इस मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की है.