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‘स्वच्छ भारत’ का सपना देखने वालों के सपनों में कितनी सच्चाई?

Chitra Chetri for BeyondHeadlines

दिल्ली का मयूर विहार इलाक़ा कभी अपनी साफ-सुथरे होने के लिए जाना जाता था, पर सफाई कर्मियों के हड़ताल ने इस इलाक़े को नरक में तब्दील कर दिया है. हड़ताल ख़त्म होने के बाद भी कचरे साफ नहीं हुए हैं. हालांकि सफाई कर्मचारियों की ओर से कहा गया है कि अधिकतम तीन दिनों में पूरी दिल्ली का कचरा साफ हो जाएगा.

इस इलाक़े के जानकार बताते हैं कि यदि तीन दिनों के भीतर इन कचरों को नहीं हटाया गया तो इलाक़े में महामारी फैल सकती है, क्योंकि बारिश ने अब और विकट समस्या पैदा कर दिया है.

मनोज जैन बताते है कि 16 दिनों से पड़े-पड़े यह कूड़ा अब सड़ने लगा है. आज की थोड़ी सी बारिश ने स्थिति और भयावह बना दिया है. क्योंकि कूड़ा सड़ने अमोनिया एवं मिथेन जैसी गैस बननी शुरू हो गई हैं.

स्मृति जो कि साइंस ग्रेजुएट हैं, बताती है कि सड़ चुके कूड़-कचरों से बैक्टिरिया अब लोगों के घरों में पहुंच रही हैं. अब चाहे कूड़ा हटा भी दिया जाए, तब भी कई तरह की बीमारियों के फैलने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता. क्योंकि हवा में बैक्टिरिया फैल चुके हैं.

राकेश का कहना है कि उनके घरों के बच्चे पिछले तीन दिनों से बीमार हैं. घर से कूड़ा घर काफी दूर है, लेकिन गंध हमारे घरों तक आ रही है. घरों में सोना और खाना दोनों दुभर हो गया है.

हालांकि इलाके के लोगों में थोड़ी खुशी है कि कम से कम अदालत ने इस मामले को सख्ती से निपटा दिया है, अन्यथा सरकार ने तो अपनी अहं की लड़ाई में दिल्ली की जनता को मारने का पूरा प्लान बना ही लिया था.

हालांकि दिल्ली सरकार के ज़रिए 513 करोड़ देने के बाद भी नगर निगम संतुष्ट नहीं है. उत्तरी व पूर्वी निगम दिल्ली सरकार द्वारा जारी इस फंड को अपर्याप्त बताया है, तो वहीं दक्षिणी निगम का कहना है कि अभी उन्हें कोई राशि नहीं दी गई है.

इन मसलों के बीच सियासत जारी है. राहुल गांधी सफाई कर्मियों से यह कहते हुए नज़र आ रहे हैं कि केन्द्र व दिल्ली सरकार सफाई कर्मियों को फुटबॉल की तरह इस्तेमाल कर रही है. साथ ही उन्होंने यह भी कह डाला कि मांगने से अब कुछ नहीं होगा. अब वक़्त आ गया है कि सफाई कर्मी संगठित होकर यह दिखा दें कि वह सिर्फ सफाई कर्मी ही नहीं, शहर की सेना के सिपाही हैं. अगर इन सिपाहियों ने अपनी शक्ति सच में दिखा दी तो काम हो जाएगा.

बहरहाल, सफ़ाई कर्मियों की हड़ताल भले ही ख़त्म हो गई है. लेकिन यह हड़ताल अपने पीछे कई अहम सवाल छोड़ गया है. यह पूरा घटनाक्रम बताता है कि ‘स्वच्छ भारत – स्वस्थ भारत’ का सपना देखने वालों के सपनों में कितनी सच्चाई है.

यह कितना दिलचस्प है कि एक तरफ़ हमारी सरकारें स्वच्छ भारत अभियान पर लाखों-करोड़ों खर्च कर रही हैं, वहीं दूसरी तरफ़ इस भारत को स्वच्छ बनाने वालों को सैलरी तक देने को तैयार नहीं हैं. एक तरफ़ दिल्ली के पॉश इलाक़ों में साइकिल व गाड़ियों से लोगों स्वच्छता का पाठ पढ़ाया जा रहा है, तो दूसरी तरफ़ लोगों बीमारियों से मरने के लिए छोड़ दिया जा रहा है.

(लेखिका पत्रकारिता की छात्र हैं.)

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