Edit/Op-Ed

इलाहबाद से प्रयागराज : नाम में क्या रखा है?

राम पुनियानी

ऐसा लगता है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी नाम बदलने का अभियान चला रहे हैं. हाल में उन्होंने उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध शहर इलाहबाद का नाम बदलकर प्रयागराज करने की घोषणा की है. प्रयाग में  गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती का संगम है और शायद इसी कारण उन्होंने हमारे शहरों के नाम से इस्लामिक शब्दों को हटाने के अभियान के तहत इस शहर का नाम बदलने का निर्णय लिया है.

वैसे इलाहबाद का नाम इलाहबाद क्यों पड़ा? इस संबंध में अलग-अलग मत हैं. एक अनुमान यह है कि यह नाम इला-वास पर आधारित है. इला, पौराणिक पात्र पुरूरवा की मां का नाम था.

कुछ लोगों का दावा है कि यह लोक संगीत के प्रसिद्ध पात्रों आल्हा-ऊदल के आल्हा के नाम पर रखा गया है. परंतु इनसे अधिक यथार्थपूर्ण दावा यह है कि सम्राट अकबर ने इसका नाम इल्लाह-बाद या इलाही-बास रखा था. इसकी पुष्टि दस्तावेज़ों से भी होती है.

इल्लाह ईश्वर के लिए व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है. अकबर, इलाहबाद को हिन्दुओं के लिए पवित्र नगर मानते थे और इलाह-बास का फ़ारसी में अर्थ होता है ‘ईश्वर का निवास’. यह उस काल के दस्तावेज़ों एवं सिक्कों से यह स्पष्ट होता है एवं यह अकबर की समावेशी नीति का भाग था. इसके पहले योगी मुग़लसराय का नाम बदलकर दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन, आगरा के विमानतल का नाम बदलवाकर दीनदयाल उपाध्याय विमानतल, उर्दू बाज़ार का हिन्दी बाजार, अली नगर का आर्य नगर आदि करवा चुके हैं. वे सभी मुस्लिम शब्दों वाले नामों को पराया मानते हैं. 

एक साक्षात्कार में योगी ने कहा है कि वे कई अन्य नाम भी बदलना चाहते हैं. इनमें शामिल है ताज महल का नाम बदलकर राम महल, आजमगढ़ का आर्यमगढ़ किया जाना और सबसे बढ़कर संविधान में इंडिया शब्द को हिन्दुस्तान से प्रतिस्थापित करना. उनके अनुसार इन स्थानों के मूल नाम मुस्लिम राजाओं के हमलों के बाद बदल दिए गए थे, अतः अब इन्हें दुबारा बदलना ज़रूरी है.

उत्तर प्रदेश में इस तमाशे की शुरूआत मायावती ने की थी और अखिलेश यादव ने इसे कुछ हद तक पल्टा था. अब योगी, मुस्लिम शब्दों वाले नामों की पहचान कर उन्हें बदलने का अभियान चला रहे हैं.

योगी आदित्यनाथ प्रसिद्ध गोरखनाथ मठ के महंत हैं. मठ में उनके पूर्ववर्ती भी राजनीतिज्ञ थे और योगी तो उत्तर प्रदेश के एक प्रमुख राजनेता हैं. वे राजनीति में हिन्दू सभाई विचारधारा के प्रतिनिधि हैं. उनका प्रभुत्व उत्तर प्रदेश के एक बड़े भाग में लोकप्रिय उनके नारे ‘यूपी में रहना है तो योगी योगी कहना होगा’ से ज़ाहिर होता है.

उनकी हिन्दू युवा वाहिनी समय-समय पर ग़लत कारणों से अख़बारों की सुर्खियों में रहती है. वे ‘पवित्र व्यक्तियों’ के उस समूह का हिस्सा हैं, जिसमें साक्षी महाराज, साध्वी उमा भारती, साध्वी निरंजन ज्योति आदि शामिल हैं और जो हिन्दू राष्ट्रवादी एजेंडे को लेकर चल रहा है. यूं तो ‘पवित्र व्यक्तियों’ से अपेक्षा की जाती है कि वे सांसारिक मुद्दों से दूर रहेंगे और आध्यात्म पर अपना केन्द्रित करेंगे, परंतु यह समूह तो सांसारिक लक्ष्यों की पूर्ति में ही अधिक सक्रिय है.

पवित्र पुरूषों एवं महिलाओं की राजनीति में यह दख़लअंदाज़ी उन कई देशों में पाई जाती है जो पूर्व में उपनिवेश रहे हैं. इन देशों में आमूल भू-सुधार नहीं हुए हैं, ज़मींदार-पुरोहित वर्ग का दबदबा क़ायम है और संभवतः इसी कारण राजनीति के क्षेत्र में पवित्र व्यक्तियों की दख़ल है.

ये पवित्र पुरूष एवं महिलाएं लोकतांत्रिक मूल्यों को पश्चिमी, पराया और ‘अपनी’ भूमि के संस्कारों के विपरीत बताते हैं. एक तरह से वे औद्योगिक क्रांति के पूर्व के जन्म-आधारित पदानुक्रम में विश्वास रखते हैं. यदि हम इन देशों पर नज़र डालें तो हम पाते हैं ईरान में अयातुल्लाह खौमेनी का उदय, और उनके बाद कई अयातुल्लाओं का प्रभुत्व और पाकिस्तान में मुल्ला-सेना-ज़मींदार गठज़ोड, लोकतंत्र की जड़ें जमने में बाधक हैं.

इस मामले में पाकिस्तान में जो सबसे प्रमुख नाम याद आता है वह है मौलाना मौदूदी का जिन्होंने ज़िया-उल-हक़ के साथ मिलकर पाकिस्तान का इस्लामीकरण किया. पड़ोसी म्यांनमार में अशीन विराथू जैसे भिक्षु, जिन्हें ‘बर्मा का बिन लादेन’ कहा जाता है, राजनीति का हिस्सा हैं, जो लोकतंत्र विरोधी हैं क्योंकि वे यह चाहते हैं कि धार्मिक अल्पसंख्यकों पर ज्यादतियां जारी रहें.

भारत में पवित्रजनों का यह गिरोह राजनीति को तरह-तरह से प्रभावित करता है. इनमें से अधिकतर हिन्दू राष्ट्रवादी आंदोलन का हिस्सा हैं और घृणा फैलाने वाली बातें कहते हैं. हमें याद आता है साध्वी निरंजन ज्योति का रामजादे वाला भाषण और साक्षी महाराज द्वारा मुसलमानों को जनसंख्या वृद्धि के लिए दोषी ठहराना, जिसके कारण उनके विरूद्ध प्रकरण दर्ज हुआ था. स्वयं योगी के ख़िलाफ़ घृणा फैलाने वाले भाषणों से संबंधित कई प्रकरण लंबित हैं. इनमें सबसे ख़राब था वह भाषण जिसमें उन्होंने मुस्लिम महिलाओं के साथ बलात्कार की वकालत की थी.

योगी ने साम्प्रदायिक एजेंडे को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. उत्तर प्रदेश सरकार, हिन्दू त्यौहार मनाती है. हमें याद है कि दीपावली के अवसर पर भगवान राम और सीता हेलीकाप्टर से आए थे और योगी ने उनकी अगवानी की थी. उत्तर प्रदेश सरकार ने बड़ी संख्या में दीप प्रज्जवलन भी किया था.

हाल में यह ख़बर काफ़ी चर्चित रही कि उत्तर प्रदेश सरकार कुंभ मेले पर 5,000 करोड़ रूपये खर्च करेगी. यह सब तब हो रहा है जब राज्य में स्वास्थ्य एवं अन्य बुनियादी सुविधाएं बहुत बुरी स्थिति में हैं और छोटे बच्चे एवं नवजात शिशु अस्पतालों में सुविधाओं की कमी के चलते दम तोड़ रहे हैं. जिन शहरों के नाम बदले गए हैं, वहां बुनियादी सुविधाओं के बुरे हाल हैं और राज्य, मानव विकास सूचकांकों पर लगातार पिछड़ रहा है. मानवाधिकारों की स्थिति की तो बात करना ही बेकार है. अल्पसंख्यकों के आजीविका के साधनों पर राज्य प्रायोजित प्रहारों (मांस की दुकानों को बलपूर्वक बंद किया जाना जैसा कि भाजपा ने उत्तर प्रदेश में सत्ता संभालते ही किया था) व अन्य कई कारणों से अल्पसंख्यकों की स्थिति बिगड़ती जा रही है.

योगी ने साफ़-साफ़ कहा है कि धर्मनिरपेक्षता एक बड़ा झूठ है. उनके निर्णयों से यह स्पष्ट है कि वे राज्य को हिन्दू राष्ट्र बनाने की ओर ले जा रहे हैं और उन्हें धर्मनिरपेक्षता संबंधी संवैधानिक मूल्यों की कोई परवाह नहीं है.     (अंग्रेज़ी से हिन्दी रूपांतरण —अमरीश हरदेनिया)

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