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जमाल ख़शोगजी को इसलिए मारा गया क्योंकि वो अरब देशों में लोकतंत्र के समर्थन में खड़े थे — अज़्ज़ाम तमीमी

BeyondHeadlines News Desk

‘ख़शोगजी मर्डर मामले में डोनाल्‍ड ट्रम्प अपने साथी मोहम्मद बिन सलमान को बचाने की कोशिश कर रहे हैं. क्योंकि वो अपने दोस्त बिन सलमान को गिरते हुए नहीं देख सकते.’

ये बातें डॉ. अज़्ज़ाम तमीमी ने BeyondHeadlines के सम्पादक अफ़रोज़ आलम साहिल के साथ एक ख़ास बातचीत में कही.

BeyondHeadlines के सम्पादक अफ़रोज़ आलम साहिल के साथ अज़्ज़ाम तमीमी…

ब्रिटिश फ़िलिस्तीनी शिक्षाविद डॉ. अज़्ज़ाम तमीमी अक्टूबर में तुर्की के इस्तांबुल शहर में मारे गए मशहूर सऊदी पत्रकार जमाल ख़शोगजी के ख़ास दोस्त हैं. अज़्ज़ाम इन दिनों AL HIYAWAR टीवी चैनल में बोर्ड अध्यक्ष हैं और अपना एक टीवी शो लेकर आते हैं. आपने     मध्य पूर्वी और इस्लामी राजनीति पर कई किताबें लिखी हैं, जिनमें “पावर-शेयरिंग इस्लाम”, “इस्लाम एंड सेक्यूलरिज़्म इन द मिडल ईस्ट”, और “डेमोक्रेट विदिन इस्लामिज़्म एंड हमास : ए हिस्ट्री फ्रॉम विदिन” शामिल है.

अज़्ज़ाम के मुताबिक़, ट्रम्प अपने दोस्त बिन सलमान को बचाने में लगे हुए हैं. लेकिन अमेरिकी मीडिया इस मामले में बहुत अच्छा काम कर रही है. वाशिंगटन पोस्ट, न्यूयॉर्क टाईम्स और सीएनएन जैसे मीडिया हाउस इस मामले के हर विवरण और तथ्यों को उजागर कर रहे हैं.

वो कहते हैं कि मुझे ये बात कहने में कोई संदेह नहीं है कि मोहम्मद बिन सलमान ने ही जमाल खशोगजी की हत्या का आदेश दिया था.

उन्होंने यह भी कहा कि ये बेहद ख़तरनाक बात है कि कोई सरकार एक पत्रकार को धोके से अपने दूतावास में ले जाए और बार-बार इसके बारे में झूठ बोले और अंत में ये बात भी स्वीकार कर ले कि उसने ही इस पत्रकार का मर्डर किया है. मुझे लगता है कि मीडिया और जमाल खशोगजी के दोस्त अपनी गतिविधियों को जारी रखेंगे क्योंकि इस मुद्दे का ज़िन्दा रहना बहुत ज़रूरी है.

डॉ. अज़्ज़ाम अपने दोस्त जमाल को याद करते हुए कहते हैं कि, अक्टूबर की पहली तारीख़ दिन सोमवार को जमाल से मेरी आख़िरी मुलाक़ात लन्दन में हुई. वो यहां फ़िलिस्तीन के मुद्दे पर मिडल ईस्ट मॉनिटर द्वारा आयोजित एक प्रोग्राम में आए थे. हमें रविवार को ही मिलना था, लेकिन उनकी तबीयत ख़राब होने की वजह से वो आराम कर रहे थे. सोमवार को वो मेरे ऑफ़िस आए. हम दोनों ने साथ वक़्त गुज़ारा. फिर उसी दिन वो रात की फ्लाईट से इस्तांबुल के लिए निकल गए. मुझे भी उनके साथ ही इस्तांबुल के लिए निकलना था, लेकिन मैं अपने एक शो की वजह से न निकल सका. अगले रोज़ सुबह की फ्लाईट से जब इस्तांबुल पहुंचा तब तक वो गायब हो चुके थे.

बता दें कि अज़्‍ज़ाम तमीमी के साथ BeyondHeadlines की ये ख़ास बातचीत इस्तांबुल के एक कांफ्रेंस में हुई. ‘तवासुल —3’ (#PalestineAddressingTheWorld) नामक ये कांफ्रेंस मिडल ईस्ट मॉनिटर व अल-जज़ीरा मीडिया इंस्टीट्यूट के सहयोग से फ़िलीस्तीन इंटरनेशनल फॉरम फॉर मीडिया एंड कम्यूनिकेशन ने आयोजित किया था.

इस कांफ्रेंस के एक पैनल डिस्कशन में ‘मीडिया के मौजूदा वैश्विक परिदृश्य में फ़िलिस्तीन का पक्ष’ विषय पर जमाल ख़शोगजी को भी बोलना था. उनकी ग़ैर-मौजूदगी ने हॉल में मौजूद ज़्यादातर पत्रकारों व लेखकों के आंखों में आंसू ला दिया. फिर उनके दोस्त अज़्ज़ाम तमीमी  ने ख़ुद को जमाल ख़शोगजी मानते हुए फ़िलिस्तीन पर उनके विचारों को रखा. उन्होंने अपनी बातें अरबी भाषा में रखी.

उन्होंने अपने भाषण में कहा कि, ख़शोगजी ने अपनी रिपोर्टिंग में राष्ट्र, स्वतंत्रता और सत्ता के अत्याचार से मुक्ति के लिए संघर्ष के मुद्दों को हमेशा शामिल किया. वो देश के लोकतांत्रिककरण के समर्थन के लिए मारे गए हैं. उन्हें इसलिए मारा गया क्योंकि वो मिस्र, ट्यूनीशिया, सीरिया, यमन और सभी अरब देशों में लोकतंत्र के समर्थन में खड़े थे.

इस पैनल डिस्कशन में भारत की ओर से सीनीयर जर्नलिस्ट उर्मिलेश सिंह बोल रहे थे. उन्होंने फ़िलिस्तीन पर अपनी बात रखते हुए कहा कि, फ़िलिस्तीन के मु्द्दे को सिर्फ़ अरब-इज़राइल संघर्ष के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि इसे समग्र रूप से यथार्थवादी व मानवीय दृष्टिकोण से देखे जाने की ज़रूरत है.

बता दें कि भारत की ओर से उर्मिलेश के अलावा डीएनए स्ट्रैटेजिक अफ़ेयर्स के एडिटर सैय्यद इफ़्तिख़ार गिलानी, न्यूज़पेपर एवं टीवी कमेंटेटर सौरभ कुमार, तमिल पत्रकार मुथुकृष्णन, पत्रकार आरफ़ा खानम, यूनाईटेड अगेन्स्ट हेट के संस्थापक सदस्य नदीम खान और ख़ालिद सैफ़ी, एशिया टाइम्स के सम्पादक अशरफ अली बस्तवी, इंडो-पाल फाउंडेशन के सचिव गौहर इक़बाल और BeyondHeadlines के सम्पादक अफ़रोज़ आलम साहिल सम्मेलन में बतौर मेहमान शरीक हुए.

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