Afroz Alam Sahil, BeyondHeadlines
यदि इंसान में हौसला व जज़्बा हो, तो वो अपने साथ-साथ दूसरों के जीने का भी एक आधार तैयार कर देता है. एक ऐसी ही कहानी फ़िलिस्तीन के ग़ाज़ा शहर में रहने वाले मोमिन फ़ैज़ की है.
दिसम्बर 2008 में जब ग़ाज़ा सीज़ था, तब मोमिन वहां के हालात को अपनी तस्वीरों के ज़रिए दुनिया को बताना चाह रहे थे. इसी मक़सद से उन्होंने ग़ाज़ा व इज़रायल के बीच कर्नी बोर्डर को जैसे ही पार किया, तभी इज़रायली फ़ौज ने ग्रेनेड मारा और मोमिन के नीचे का आधा जिस्म हवा में उड़ गया. इनकी दोनों टांगे ग़ायब हो गईं. इनके साथ इनका एक दोस्त भी था, जो हमेशा के लिए ये दुनिया छोड़ गया. बावजूद इसके, इनके हौसलों में कोई कमी नहीं आई. इनका काम आज भी बदस्तूर जारी है.
32 साल के मोमिन फ़ैज फोटो-जर्नलिस्ट हैं. आप आज भी ग़ाज़ा में काम कर रहे हैं और अपनी खींची गई तस्वीरों के ज़रिए इज़रायल के ज़ुल्मों की दास्तान को दुनिया के सामने रख रहे हैं. इनकी तस्वीरें दुनिया के लगभग तमाम मशहूर अख़बारों व वेबसाईटों में प्रकाशित हो रही हैं.
BeyondHeadlines के साथ इस्तांबुल में एक ख़ास बातचीत में मोमिन फ़ैज़ बताते हैं कि, मैं अपनी तस्वीरों के ज़रिए फ़िलिस्तीन के साथ होने वाले इज़रायली ज़ुल्म को दुनिया से रूबरू कराना चाहता हूं.
फ़ैज़ बताते हैं कि इनके इस मिशन में उनकी पत्नी दिमा अयदीह भी उनके साथ हैं. वो भी जर्निलिस्ट हैं और साथ ही साथ फोटोग्राफ़ी व वीडियोग्राफ़ी भी करती हैं. वो फिलहाल ‘वूमेन इन पैलेस्टाईन’ मैग्ज़ीन में फुल-टाईम जर्निलिस्ट हैं. उन्होंने मुझे हमेशा काम करने के लिए प्रेरित किया है.
इस्तांबुल में मिडल ईस्ट मॉनिटर व अल-जज़ीरा मीडिया इंस्टीट्यूट के सहयोग से फ़िलीस्तीन इंटरनेशनल फॉरम फॉर मीडिया एंड कम्यूनिकेशन द्वारा आयोजित कांफ्रेंस ‘तवासुल —3’ (#PalestineAddressingTheWorld) में दिमा अयदीह भी फ़ैज़ मोमिन के साथ थी. जब इस संवाददाता ने उनसे फ़ैज़ के साथ शादी के बारे में पूछा तो उनका कहना था —‘हम ग़ाज़ा की औरतें स्वतंत्रता सेनानियों से प्यार करती हैं. हमारे लिए यह रोमांस और एक महान सम्मान है.’
मुसीबतों से मोमिन का सामना बचपन से ही होता आ रहा है. जब वो सिर्फ़ 7 दिन के थे, तो उनके पिता इस दुनिया को अलविदा कह गए. मोमिन की 2 बहनें और 5 भाई हैं. ये इनमें सबसे छोटे हैं. 2008 में जब वो ग़ाज़ा में पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहे थे, तभी उनके साथ ये हादसा हुआ और पढ़ाई रूक गई.
बता दें कि मोमिन फ़ैज़ लगातार दुनिया के विभिन्न देशों में जाकर अपने फोटोग्राफ़्स के ज़रिए फ़िलिस्तीन में इज़रायल के ज़ुल्म की दास्तान को रख रहे हैं. इस्तांबुल के बाद वो अभी मलेशिया में हैं, जहां उनका पहला इंटरनेशनल फोटो एग्ज़ीबिशन लगा था. उनकी ख़्वाहिश है कि वो कभी भारत को भी देखें और यहां के लोगों को भी फ़िलिस्तीन के दर्द को महसूस करा सकें.
वो कहते हैं कि, मैं फ़िलिस्तीन में जो तस्वीरें लेता हूं, उसे हमेशा अपने साथ रखता हूं. दुनिया के लोगों को ये दिखाने के लिए कि मेरा देश कितना सुंदर है. लेकिन अब मेरा दिल ग़ाज़ा के हालात को देखकर टूट जाता है. लेकिन इसे पहले से भी ज़्यादा सुंदर बनाने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास जारी रखूंगा.
मोमिन फ़ैज़ की कहानी ये साबित करने के लिए काफ़ी है कि अगर आपके दिल में कुछ कर गुज़रने का जज़्बा हो, तो आप कुछ भी कर सकते हैं. इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि आपके पैर हैं या नहीं…