India

पिछड़े मुसलमान वास्तव में भारतीय हैं, उनको भी वही समानता मिलनी चाहिए जो दूसरों को प्राप्त है…

BeyondHeadlines News Desk

नई दिल्ली: ‘समाज में विभाजन पर विभाजन हमारे राष्ट्र को कमज़ोर कर रहा है, इसलिए समय आ गया है कि हम शक्तिशाली और समृद्ध राष्ट्र के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सामाजिक एकीकरण की ओर बढ़ें.’

ये बातें आज मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए दिल्ली सरकार के समाज कल्याण मंत्री राजेन्द्र पाल गौतम ने इंडिया इंटरनेशनल सेन्टर में अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग, दिल्ली सरकार के तत्वावधान में “आरक्षित समुदायों के सामाजिक सशक्तिकरण से संबंधित विभिन्न विषयों” पर आयोजित एक सम्मलेन में कही.  

उन्होंने कहा कि जो लोग विकास की दौड़ में पीछे रह गए हैं, जिन्हें समान अवसर और बराबरी का दर्जा आज भी पूरी तरह नहीं मिल पाया, उन लोगों को मुख्यधारा में शामिल करना एक संवैधानिक जनादेश है और इसे पूरा करने के लिए हमें एकजुट होकर काम करना होगा.

उन्होंने अपने भाषण में कहा कि केवल सामाजिक एकीकरण द्वारा ही ‘आईडिया ऑफ़ इंडिया’ के लक्ष्य को पूरा किया जा सकता है. जिसका सपना हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने देखा था. 

ओबीसी आयोग के सचिव शमीम अख़्तर ने अपना स्वागत भाषण देते हुए राष्ट्र निर्माण की आवश्यकता पर ज़ोर दिया और ज़ोर देकर कहा कि यदि समाज का सबसे बड़ा वर्ग वंचित रह जाता है, तो राष्ट्र के लिए अपना सही गौरव हासिल करना संभव नहीं है. 

सेवानिवृत्त आईएएस पी.एस. कृष्णन ने मंडल आयोग के पीछे की पृष्ठभूमि, तर्क और सभी आरक्षण के मुद्दों और आगे के रोड मैप पर अपने उल्लेखनीय विचार व्यक्त किए. 

उन्होंने कहा कि एससी/एसटी और अल्पसंख्यकों की स्थिति देश में बेहतर नहीं है. आगे उन्होंने पूछा, क्या डॉ. अंबेडकर के विचार को इसकी समग्रता में स्वीकार किया गया था? यदि हम संवैधानिक सुरक्षा उपायों और आपसी सहयोग का प्रभावी ढंग से उपयोग करते हैं, तो यह निश्चित रूप से भारत को एक वास्तविक और बेहतर लोकतंत्र बनने में मदद करेगा.

जेएनयू में समाजशास्त्र के प्रोफ़ेसर विवेक कुमार ने संवर्धित सभा को संबोधित करते हुए ज़ोर दिया कि शिक्षा, आर्थिक उन्नति और सामाजिक सशक्तिकरण के बिना किसी भी समुदाय का सामाजिक कल्याण संभव नहीं है. इसलिए सभी को विकास का सामान्य अवसर प्राप्त होना चाहिए.

सोशल एक्टिविस्ट व रिटायर्ड आईएएस पी.आर. मीना ने कहा कि सरकारी आयोगों के द्वारा किए गए सभी स्वतंत्र अध्ययनों ने ये साबित कर दिया है कि लोकतांत्रिक भारत में दलितों, आदिवासियों और मुसलमानों को व्यवस्थित रूप से हाशिए पर रखा गया है और उन्हें न्याय और समानता हासिल करने के लिए एक स्थायी गठबंधन बनाने की ज़रूरत है ताकि एक सम्मानजनक अस्तित्व पर कोई आंच न आए.

सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट फ़िरोज़ अहमद ने स्पष्ट रूप से कहा कि भारतीय पिछड़े मुसलमान वास्तव में भारतीय हैं और उनको वही समानता मिलनी चाहिए जो दूसरों को प्राप्त है.

अखिल भारतीय मुस्लिम पिछड़ा वर्ग महासंघ के महासचिव डॉ. इदरीस क़ुरैशी ने इस बात पर ज़ोर दिया कि पिछड़े भारतीय मुस्लिम जातियों को क़ानून के तहत अपनी मूल पहचान की घोषणा करके एक छतरी के नीचे आना चाहिए.

इस सम्मेलन का उद्देश्य सामाजिक गतिशीलता और एससी, एसटी और ओबीसी जैसे सभी समुदायों के मुद्दों को समझना और सामाजिक एकीकरण के लिए उन्हें प्रोत्साहित करना था.

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