Afshan Khan for BeyondHeadlines
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के छात्रों का प्रदर्शन आज छठे दिन भी जारी है. छात्र बाब-ए-सैय्यद पर अब भी अपनी मांगों के साथ डटे हुए हैं. बता दें कि अब तक इस मामले में कुल चार मामले दर्ज हो चुके हैं. राजनीतिक लीडरों की आमद व रफ़्त की कोशिशें भी शुरू हो चुकी हैं. लेकिन ये सारा विवाद क़ौम के जिस नेता के नाम पर शुरू हुआ, उनका कहीं कोई अता-पता नहीं है.
याद रहे एएमयू का पूरा विवाद ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तहादुल मुस्लिमीन के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी के कैंपस में आने की ख़बर को लेकर हुआ, जिसको एएमयू के छात्रों ने भी ख़ारिज किया कि ओवैसी नहीं आ रहे थे.
लेकिन मेरा सवाल ये है कि आख़िर इसकी ज़रूरत ही क्यों पड़ रही है कि छात्रों को बार-बार बताना पड़ रहा है और तुष्टि करनी पड़ रही है कि वो नहीं आ रहे थे. क्या ओवैसी अपने ही देश में कहीं आ या जा नहीं सकते? क्या ये पूरी डिबेट बेमानी नहीं लगती?
अगर वो राजनीति करते भी हैं तो पूरे देश में सिर्फ़ उनको ही क्यों रोका जाए, क्या एक नेता राजनीति नहीं कर सकता? या एक मुस्लिम नेता राजनीति नहीं कर सकता?
ओवैसी कोई क्रिमिनल नहीं हैं. वो इस देश के राजनेता हैं, एक पार्लियामेंटेरियन हैं. उनके दामन पर देश के प्रधानमंत्री की तरह सैकड़ों घर जलाने और बच्चों को यतीम करने के आरोप नहीं हैं. और ना ही देश को लूट कर वो संत होने का ढोंग करते हैं. तो फिर आख़िर क्यों ओवैसी का नाम लेते ही कुछ हिंदुत्ववादी सोच के लोग भड़क क्यों जाते हैं? क्यों उनके लिए इतना आसान है ओवैसी के नाम पर दंगा भड़काना?
क्यों बीजेपी के द्वारा यह कहा गया कि ओवैसी आएंगे तो दंगा भड़केगा? क्या क्रिमिनल रिकॉर्ड वाले बीजेपी नेताओं से इलाक़े का माहौल ख़राब नहीं होता है? क्या क़ब्रिस्तान से निकाल कर मुस्लिम महिलाओं का बलात्कार करने की अपील करने वाले दंगा भड़काने का काम नहीं करते हैं?
आप गौर करेंगे तो पता चलेगा कि ओवैसी का इस तरह का कोई इतिहास नहीं रहा है, तो क्या वजह है कि मुसलमानों को भी ओवैसी के नाम से खुद को दूर करना पड़ता है? क्यों उन्हें लगता है कि ओवैसी से दूरी रखनी चाहिए?
याद रहे असदुद्दीन ओवैसी को 2013 में उनकी संसद में बेहतरीन परफॉरमेंस के लिए ख़िताब दिया गया, साथ ही 2014 में संसद रत्न पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है. अब सोचने वाली बात ये है कि क्या बीजेपी को सच में उनसे डर लगता है? क्या बीजेपी को दलित और मुसलमानों की आवाज़ बुलंद करने वाले ओवैसी से ख़ौफ़ महसूस होता है. अगर नहीं तो फिर क्या वजह है कि बेबुनियाद तरीक़े से उन पर हमला बोला जाता है. यह ओवैसी ही हैं, जिनकी बदौलत संसद में काम के सवाल और चर्चा की जाती है, वरना तो संसद को भी नेताओं ने मज़ाक बनाकर रख दिया है.
लेकिन मेरा सवाल ये भी है कि आख़िर जिस शख़्स के नाम पर यह पूरा बवाल शुरू हुआ वो अब तक ख़ामोश क्यों है? हर तरह के मामलों पर ट्वीट करने वाले ये क़ायद इस मामले पर चुप्पी क्यों साध गए? 14 छात्रों पर राजद्रोह का मामला भी दर्ज हो चुका है, लेकिन इन्होंने इस पर अब तक एक भी शब्द नहीं बोला? आख़िर इसे क्या समझ जाए? जबकि इस मामले में मायावती तक अपना बयान दे चुकी हैं, ट्वीट कर चुकी हैं.
बता दें कि एएमयू में जो कुछ हुआ वो किसी से छिपा हुआ नहीं है. रिपब्लिक टीवी के तथाकथित पत्रकारों ने जो किया वो उम्मीद से बाहर की चीज़ भी नहीं है. लेकिन भारत जैसे बहुसांस्कृतिक और बहुमूल्य देश में इस तरह से खुलेआम नफ़रत फैलाने वाले मीडिया का धर्मनिरपेक्षता के मूल्यों को ख़तरे में डालना किसी भी हालत में सही नहीं है. जो हरकतें इस मीडिया हाउस ने एएमयू में की, उससे किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए. यह साफ़ है कि बीजेपी के पैसों से चल रहे इस चैनल का अपना एक एजेंडा है जिससे देश को भयावह तरीक़े से नुक़सान हो रहा है और आगे भी होगा, अगर इनको नहीं रोका गया.
याद रहे कि स्मृति ईरानी ने भी एएमयू को बंद करने की बात कही थी. जब सत्ताधारी लोग इस तरह की ख़तरनाक बात कहने लगें तो फिर इनके टट्टुओं से और क्या उम्मीद की जा सकती है? लेकिन मुसमलानों के तथाकथित क़ायद ही इस पर चुप्पी साध लें तो इसे क्या माना जाए…