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“आज़ाद मैदान विरोध-प्रदर्शन” सरकार दोहरे पैमाने समाप्त करे

Mujtaba Farooque for BeyondHeadlines

पिछले साल बर्मा व असम में मुसलमानों के क़त्ल-ए-आम के खिलाफ आज़ाद मैदान में हुए विरोध-प्रदर्शन के दौरान अचानक हो जाने वाले दंगे से नुक़सान की भरपाई के लिए मंगलवार को एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए भरपाई हासिल करने के लिए महाराष्ट्र सरकार को बॉम्बे हाईकोर्ट ने 8 सप्ताह की और मोहलत दी है. अदालत ने महाराष्ट्र सरकार से इस पूरे मामले में होने वाले नुक़सानात का तफ़सील व तमाम सवालों का जवाब देने का भी आदेश दिया है. दरअसल यह सुनवाई दो पत्रकारों के ज़रिए आज़ाद मैदान में हुए विरोध-प्रदर्शन के दौरान अचानक हो जाने वाले दंगे से नुक़सान की भरपाई के लिए दाखिल की गई जनहित याचिका पर हो रही थी.

आज़ाद मैदान विरोध-प्रदर्शन से संबंधित जनहित याचिका पर हाईकोर्ट की रुचि बहुत खूब है. ऐसा लगता है कि हिंदुस्तान का यह पहला प्रदर्शन है जिसमें तोड़फोड़ हुई है और अमन व इंसाफ का निज़ाम (व्यवस्था) इसके इस्लाह (सुधार) के लिए हरकत में आ गया हो.

Azad Maidan protest : government should eliminate dual scale of justice (Photo Courtesy: hindustantimes.com)

काश ऐसा होता कि कहीं कोई दंगा का माहौल नहीं बनता. लेकिन न जाने क्यों यह ज्यादा बड़ी व खतरनाक घटनाओं का नोटिस नहीं लिया जाता, उस समय हमारे यह जोशी या फिर कुलकर्णी कहाँ होते हैं?

कितने ही विरोध-प्रदर्शन ऐसे हैं जिसमें शिव-सेना और दूसरे संगठनों ने खुलेआम कानून का उल्लंघन करते हुए न सिर्फ तोड़-फोड़ की है, बल्कि कई मीडिया के कार्यालयों को तहस नहस कर दिया. लेकिन किसी मीडिया की हिम्मत नहीं होती, वो इसका सही विरोध भी सके. क़ायदे से अपने दफ्तर पर हुए हमले को भी दिखा सके.

सबसे बड़ी घटना जो भारतीय इतिहास का एक काला अध्याय है. वो है बाबरी मस्जिद की शहादत… इस आंदोलन के नतीजे में न जाने कितने मस्जिदें शहीद कर दी गई. हालांकि कई जगह मंदिर भी तोड़े गए. यानी  सैकड़ों मंदिरों, मस्जिदों में तोड़फोड़ सैकड़ों दंगे, सैकड़ों लोगों की जान- माल, इज़्ज़त व आबरू सब कुछ खाक में मिल गईं. सरकार की संपत्तियों का  करोड़ों-करोड़ का नुकसान हुआ.

पिछले 20 सालों से हर साल 6 दिसंबर देश के प्रशासन के लिए एक नासूर है. लेकिन क्या इस देश में कोई है जो इस आंदोलन के आयोजक आडवाणी जी, उमा भारती, विनय कटियार, अशोक सिंघल आदि से उसका भरपाई करवा पाए. कम से कम उन्हें इसके लिए नोटिस भेज सके. लोगों के जान-माल, इज़्ज़त व आबरू का इंसाफ मांग सके. कोई अदालत suo moto के तहत कोई कार्रवाई  कर सके. कोई सनकित और जोशी जनहित याचिका दाखिल करे.

आज़ाद मैदान के विरोध-प्रदर्शन में न जाने कौन लोग थे, जिन लोगों ने तोड़फोड़ की? न जाने यह किसकी साज़िश थी? उसकी जांच की जानी चाहिए थी, पर अफसोस किसी ने इसकी जांच नहीं की या न ही इसके जांच की मांग की. हमारी वेल्फेयर पार्टी महाराष्ट्र सरकार और भारत सरकार से मांग करती है कि अपने न्याय के दोहरे पैमाने को समाप्त करे. देश को वाक़ई अमन व इंसाफ देने के लिए हर घटने का नोटिस ले और जो इसके वास्तविक दोषी हैं उन्हें सजा दे. सिर्फ आज़ाद मैदान के आयोजकों को गैर जरूरी परेशानी क्यों हो?

(लेखक वेल्फेयर पार्टी ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं.)

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