India

प्रधानमंत्री जी! कितनो को “मिस्टेकेन आइडेंटिटी” बताएंगे आप?

Abhishek Upadhyay for BeyondHeadlines

प्रधानमंत्री जी! अगर सरबजीत पाकिस्तान में इस देश का जासूस था, तो था. इसमें बुरा क्या था? रा, आईबी और मिलेट्री इंटेलीजेंस जैसी आपकी सरकारी संस्थाएं हजारों करोड़ के फंड इसी बात के लिए तो पाती हैं. यही काम तो करती हैं. जासूस बनाती भी हैं, भेजती भी हैं और पालती भी हैं.

सीआईए, एमआई 6, मोसाद और आईएसआई भी तो यही करती है. फिर वो “मिसटेकेन आइडेंटिटी” कैसे हो गया. आप और आक्सफोर्ड से पढ़े आपके विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद इसी को “डिप्लोमेसी” कहते हैं? ये डिप्लोमेसी है कि आपके देश और आपकी सरकार को खुफिया सूचना मुहैया कराने की एवज में पिछले 23 सालों से मर मर कर जी रहा सरबजीत अब सुकून से मर सकने की हालत में भी नहीं रहा, और आपकी सरकार “डिप्लोमैसी” की जलेबी गूंथ रही है.

sarabjit family (Photo Courtesy: Hindustan Times)

“दिस दैट” में बात करने वाले और टाई के फंदे में गला कसकर खुद को अंग्रेजों की औलाद समझने वाले विदेश मंत्रालय के अधिकारी उसे तीसरे देश में भेज देने की सलाह दे रहे हैं. अगर वाकई सरबजीत “मिस्टेकेन आइडेंटिटी” है तो पिछले ही साल जासूसी के आरोप में 30 साल से अधिक की सजा काटकर पाकिस्तान की कोटलखपत जेल से रिहा हुआ सुरजीत सिंह क्या था? वह भी आपके लिए “मिस्टेकेन आइडेंटिटी” ही था? रिहा होते ही उसने ठोंक के कहा कि मुझे पाकिस्तान में जासूसी के लिए भेजा गया था. सांप सूंघ गया था आपकी सरकार को, यह सुनकर.

फिर पाकिस्तान में जासूसी करने गया मोहन भास्कर कौन था? वह भी मिस्टेकेन आइडेंटिटी ही था! मोहन भास्कर ने लंबी यातना सही. भारत लौट कर लिखा – “मैं पाकिस्तान में भारत का जासूस था” और साथ ही यह भी लिख दिया कि “अगर मुझे अपने लिए किसी पेशे का चुनाव करना पड़े तो जासूसी मेरे लिए आखिरी विकल्प होगा. और अगर मुझे जासूस बनकर किसी देश में जाना पड़े तो पाकिस्तान मेरे लिए आखिरी विकल्प होगा”—-कितनो को “मिस्टेकेन आइडेंटिटी” बताएंगे आप. आपकी सरकार. जासूसी करने भेजेगा आपका देश पर बचाएगा कौन? अमेरिका बचाएगा या रुस बचाने आएगा?

अगर जासूस नहीं कह सकते हैं, तो कोई और नाम दे दीजिए. मगर निकालिए तो वहां से. प्रधानमंत्री जी आप बहुत पढ़े लिखे आदमी हैं. शायद अर्थशास्त्र के पितामह कहे जाने वाले एडम स्मिथ से भी अधिक ज्ञानी होंगे आप. अपनी याददाश्त पर जोर डालिए और सोचिए कि पश्चिम बंगाल के पुरुलिया में जब हथियार गिराए गए थे, उस वक्त भारत की सरकार ने किन किन देशों के किन किन जासूसों को पकड़ा था? फिर छोड़ कैसे दिया? कैसे वे आनन फानन में देश से बाहर भी निकल गए?

आपके देश के लिए जान जोखिम में डालने वाला क्या जूस की दुकान पर मिलने वाले मैंगो शेक का “डिस्पोजेबल गिलास” है कि चूसा, इस्तेमाल किया और फेंक दिया. रात गई और बात गई. आप भी सोचिए और हम भी सोचते हैं कि कितने रीढ़ विहीन देश हो चुके हैं हम? अब जब इस देश के लिए काम करने का गुनाह करने वाला अभागा सरबजीत “इररिवर्सिबिल कोमा” यानि कोमा से कभी भी वापस न आने की स्थिति में पहुंच गया है, तब भी उसे वापस लाने के लिए आपकी सरकार के मुंह से दो मज़बूत शब्द भी नहीं निकल पा रहे हैं. रिरिया रही है, आपकी सरकार! मानो भीख मांग रही हो, कनाट प्लेस की चौपाटी पर!

सरबजीत की बहन, उसकी बीबी, उसकी दो बेटियां का चेहरा कंपा देता हैं. समझ में नहीं आता है कि जीते हुए मर रही हैं या मर मर कर जी रही हैं. उन्हें कोई ये बताए कि उनके भाई, पति और बाप ने बहुत बड़ा गुनाह किया है. बहुत बड़ा गुनाह. एक ऐसे देश के लिए अपनी जान जोखिम में डाल दी जिसने उसकी पहचान को ही “मिस्टेकन आइडेंटिटी” करार दिया. बहुत बड़ी “मिस्टेक” की सरबजीत ने. वाकई बड़ी “मिस्टेक”. ये सजा इसी बात की तो है…

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