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दी हिन्दू अखबार की आतंकवाद पर सरकारी तंत्र की तोता नीति

I am Khalid Mujahid and I am innocent अभियान द्वारा जारी…

‘दी हिन्दू’ देश का ऐसा अखबार है, जो शायद विश्वसनीयता के मामले में भारत के सभी अख़बारों में सबसे आगे है. जब अख़बार कुछ लिखता है तो देश का वो तबका जो नीति बनाने और सत्ता चला रहे हैं, इसकी रिपोर्ट पर विश्वास करते हैं. इसकी ख़बरों और सम्पादकीय लेखों को रिसर्च स्तर पर बेहतरीन माना जाता है.

लेकिन कांग्रेस सरकार आने के बाद से देश भर में अचानक आतंकवाद विरोधी ऑपरेशन शुरू हो गया. जहाँ तहां हरकतुल मुजाहिदीन, इंडियन मुजाहिदीन और स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट के कथित लड़ाके दबोचे जाने लगे. दर्जनों का एनकाउंटर कर दिया गया. इस दौरान पूरे देश में आतंकवाद विरोधी जनमत के सहारे मुस्लिम विरोधी मानसिकता भी बढ़ने लगी जिसने सत्ता संस्थानों, ख़ुफ़िया तंत्र, पुलिस, राजनितिक पार्टियों और आम जन मानस को ये समझाने में सफल हो गया कि “सारे मुसलमान आतंकवादी नहीं हैं, लेकिन सारे आतंकवादी मुसलमान ज़रूर होते हैं”.

सभी अख़बार और टीवी चैनल अपने स्तर पर खोजी पत्रकारिता द्वारा जनता को बताते रहे कि किस तरह से मुस्लिम समाज आतंकी गतिविधियों का केंद्र बन गया है. लेकिन दो चार साल की खतरनाक मुहिम के खिलाफ जब मुस्लिम नेतृत्व ने डट कर मुकाबला किया तो मीडिया की मुहिम और कांग्रेस सरकार ने एक विराम लेना ज़रुरी समझा. इस दौरान तहलका, इंडियन एक्सप्रेस और अब आशीष खेतान, समेत कई व्यक्तियों औरन संस्थाओं ने सरकार की आतंकवाद विरोधी अभियान की पोल खोलनी शुरू कर दी है. हर रोज़ हैवानियत और सरकारी आतंक के नए उदाहरण सामने आने लगे हैं.

कांग्रेस सरकार के कथित आतंकवाद विरोधी अभियान का सबसे ज्यादा साथ देने वालों में ‘दी हिन्दू’ अख़बार था, जिसके सवांददाता की पहुँच ख़ुफ़िया विभाग के सभी सूत्रों तक थी. इस अख़बार ने अपने सूत्रों के द्वारा ऐसी ऐसी सूचनाएं जनता के सामने रखीं कि बहुत से समझदार किस्म के लोग प्रभावित होने लगे. लेकिन उसके बाद जब तहलका और उसकी टीम के कई पत्रकारों ने इस अभियान की जड़ों तक घुसने का प्रयत्न किया तो पता चला कि ‘दी हिन्दू’ जैसा विश्वसनीय अख़बार सरकारी तोते की तरह बोल रहा था. उसकी पहुँच ख़ुफ़िया सूत्रों तक थी ही नहीं बल्कि उसकी सारी सूचना ख़ुफ़िया विभाग के भेजे गए डिक्टेशन या सर्कुलर के अनुसार थी.

बेशर्मी की हद तब हो गयी जब सरकारी दावों की रोज़ ब रोज खुलती पोल और अदालतों में पुलिस के झूठे पर जाने वाले दावों को ‘दी हिन्दू’ अखबार ने रिपोर्ट करना बंद कर दिया. जिस जोश के साथ बेगुनाहों को मास्टर माइंड बनाने का काम हुआ. उनके बेगुनाह साबित होने की ख़बर के लिए और उसके जैसे अख़बारों ने एक इंच जगह देने की भी तकलीफ नहीं की. नतीजा ये हुआ की तमाम लड़के बेगुनाह होने के बावजूद अपने देश की जनता के सामने, अपने सगे-संबंधियों के सामने सर उठा कर खड़े होने लायक नहीं हो सके हैं.

दी हिन्दू अखबार की आतंकवाद पर सरकारी तंत्र की तोता नीति

पेश है ‘दी हिन्दू’ जैसे विश्वसनीय अख़बार की सरकारी तोतेबाज़ी का एक जायजा…

22 दिसंबर 2007 में खालिद मुजाहिद को गिरफ्तार दिखाया गया. उस दिन से एक साल तक ‘दी हिन्दू’ के आतंकवाद संवाददाता प्रवीन स्वामी ने कई स्टोरीज़ की, जिसमें उन्होंने विस्तार से बताया कि आतंकवादी नेटवर्क कैसे पूरे देश में फैल रहा है. इन साड़ी स्टोरीज़ में उनका मुख्य सोर्स था पुलिस इंटेलिजेंस…

अपनी पहली स्टोरी 26 दिसम्बर 2007 “Wiretap warning on U.P. bombings went in vain” में उन्होंने खालिद मुजाहिद के बारे में लिखा- Based on the call, though, the Uttar Pradesh Police were able to trace Mr. Wani’s contacts in an operation which involved tracking multiple mobile phones purchased using false identity documents. The police were then able to arrest Azamgarh-based Unani doctor Mohammad Tariq and Jaunpur resident Mohammad Khalid Mujahid, who investigators say were among HuJI’s most important Uttar Pradesh-based operatives.

According to investigators, Mr. Wani had earlier arranged for several Uttar Pradesh men to train with HuJI units operating in the forests of Chhatroo, in Kishtwar. Mr. Khalid, for example, is thought have spent three months in the area in 2003. HuJI-trained operatives linked to Mr. Wani, the police say, also helped organise last year’s bombings in Varanasi, as well as a May 22 terror attack in Gorakhpur.

The former Doda-based HuJI commander, Abdul Raqeeb, who mentored both Mr. Wani and Mr. Khalid, began recruiting Uttar Pradesh seminary students and Students Islamic Movement of India members as early as 2001. Mr. Raqeeb was killed in a 2003 shootout with the Jammu and Kashmir Police, while his second-in-command, Mohammad Rizwan, is now jailed in Lucknow.

क्या ‘दी हिन्दू’ अख़बार की यह ज़िम्मेदारी नहीं थी कि वो ये भी बताता कि खालिद मुजाहिद के चचा ने 22 दिसम्बर से पहले ही खालिद के गायब होने और किडनैप किये जाने की आशंका व्यक्त करते हुए एक FIR कराई थी. जौनपुर पुलिस से पुछा जाता कि उस FIR पर उन्होंने किया एक्शन लिया था. 16 दिसंबर 2007 को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, नई दिल्ली और डीजीपी उत्तर प्रदेश को शिक्षक की गिरफ्तारी के विषय में फैक्स किया गया. 17 दिसंबर 2007 को अख़बारों में शिक्षक की गिरफ्तारी का समाचार प्रकाशित हुआ. स्थानीय लोगों के डेलीगेशन ने थाने में जाकर मुलाकात भी की. इसी दिन प्रदेश की मुख्यमंत्री, जौनपुर जिले के डीएम, राज्य के गवर्नर एवं मुख्य सचिव को फैक्स के ज़रिए गिरफ्तारी की जानकारी दी गई. इसी बीच 18/19 दिसंबर की रात कुछ अज्ञात लोग शिक्षक के घर पहुंचे और कुछ किताबें ले गए. 19 दिसंबर को ही एक बार फिर मुख्यमंत्री, डीएम और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को फैक्स करके घटना की जानकारी दी गई.

दिनांक 18 दिसम्बर 2007 को अख़बार में छपा है कि एस.टी.एफ. ने पूर्वांचल के जौनपुर व इलाहाबाद में छापा मारकर हूजी के दो सदस्यों को हिरासत में लिया व मड़ियाहू में भी छापा मारने वाली बात छपी है. दिनांक 21 दिसम्बर 2007 को यह भी लिखा है कि “मड़ियाहूं का खालिद जा चुका है तीन बार पाक” यदि खालिद पुलिस अभिरक्षा में नहीं था तो इस तरह की खबरें कहां से छपीं इस पर भी न कोई संज्ञान लिया गया है और न ही कोई कार्यवाही की गई है.

इनमें से किसी भी घटना को ‘दी हिन्दू’ अखबार ने अपनी कथित निष्पक्ष ख़बरों में डालना मुनासिब नहीं समझा. 26 जनवरी फिर 19 मई, 17 अगस्त फिर 15 सितम्बर और 12 अक्टूबर 2008 में इसी अख़बार ने खालिद मुजाहिद को लगातार आतंकी लिखता रहा और इस अखबार ने उन संघठनों की एक भी नहीं सुनी जो पुलिस की फर्जी कहानी की पोल खोल रहे थे. दी हिन्दू अख़बार आतंकवाद की रिपोर्टिंग ऐसे कर रहा था जैसे की उनके रिपोर्टर स्वयं हर आतंकी घटना में आतंकवादियों के साथ रिपोर्टिंग के लिए मौजूद थे. ज़हर उगलने वाली हेडलाइंस और आम जनता को पुलिस को और गृह मंत्रालय के अधिकारीयों को एक कम्युनिटी के खिलाफ खड़ा करने के साफ़ एजेंडे वाली रिपोर्ट आरही थीं. ये वो काम था जो दशकों से आरएसएस भी नहीं कर सका था. मिसाल के तौर जिन ख़बरों में खालिद मुजाहिद का नाम लिया गया उनमें से कुछ की हेडलाइन्स इस तरह थीं…

Wiretap warning on U.P. bombings went in vain, 26 December 2007
HUJI chief shot dead, 26 January 2008,
Jaipur serial blasts: search for terror chief gropes in dark, May 19 2008
‘Indian Mujahideen’ claims responsibility, 27 July 2008
From seminary student to SIMI jihadist, 17 august 2008
U.P. authorities stalled action against Delhi suspects, 15 September 2008
2 more jihadists from Kerala killed, 12 October 2008

‘दी हिन्दू’ की इस तरह की रिपोर्टों ने आतंकवाद पर रिसर्च कर रहे राईट विंग के कथित थिंक टैंक्स को खुराक पहुंचाई जिसकी साफ़ मिसाल पुर्व आईपीएस अधिकारी केपीएस गिल के साउथ एशिया टेररिज्म पोर्टल (SATP) में देखी जा सकती है, जो हरकतुल मुजाहिदीन का परिचय कराते समय ठीक उन्हीं शब्दावली और सूचनाओं का प्रयोग करता है जो ‘दी हिन्दू’ ने छापी हैं. इसी तरह भारत में तमाम आतंकवाद विरोधी पर्चो, अभियानों, ब्लॉग्स, सोशल मीडिया और वेब साइट्स पर ‘दी हिन्दू’ की ख़बरों को बहुत विश्वसनीयता के साथ प्रयोग किया गया है. जिससे साफ़ जाहिर है की इन रिपोर्टों का उद्देश्य पूरा हो गया है और मुस्लिम समाज अपने ही मुल्क में अपने ही देशवासियों के बीच में शक की नज़र से देखे जाने लगे हैं.

उनके लिए मकान जमीन लेने से पहले ये साबित करना ज़रुरी हो गया है की उनका सम्बन्ध किसी आतंकवादी संगठन से तो नहीं है, इन में से एक भी रिपोर्ट में कहीं भी दुसरे पक्ष से नहीं पुछा गया कि खालिद मुजाहिद आतंकवादी था या नहीं?

लाल कृष्ण अडवानी जिनके खिलाफ बाबरी मस्जिद को ढाने के सारे दस्तावेज़ मौजूद हैं और एफ़आईआर लिखी हुईं हैं. मुक़दमे चल रहें हैं. ‘दी हिन्दू’ की इतनी हिम्मत नहीं है कि वो अडवाणी को हर रिपोर्ट में बाबरी मस्जिद मामले का आरोपी लिखे. क्यों नहीं उन्हें “बीजेपी नेता और बाबरी मस्जिद ध्वंस मामले में आरोपी” के तौर पर हमेशा पेश किया जाता? अगर ‘दी हिन्दू’ निष्पक्ष होता तो कम से कम एक बार खालिद मुजाहिद के वकील से उनके घर वालों का पक्ष भी अपने पाठकों के सामने रखता, ताकि पाठक ये समझ पाता कि पुलिस की गढ़ी हुई कहानी के खिलाफ एक मत है जिसको जानना भी ज़रुरी है और उनकी ये रिपोर्ट भारत में पनप रही मुस्लिम विरोधी मानसिकता को रोकने में सहयोग करती और आतंकवाद के मुद्दे को धर्म और जाति से ऊपर उठकर देखने की सम्भावना पैदा करती.

आखिरी बात यह है कि ‘दी हिन्दू’ की आतंकवाद पर रिपोर्ट के पैटर्न से ये साफ़ पता चलता है कि अखबार कुछ कथित आतंकवादी संगठनों और उनके द्वारा मुस्लिम कम्युनिटी की प्रोफाइलिंग के मिशन पर लगा हुआ है. मिसाल के तौर पर खालिद मुजाहिद के बारे में अगले एक साल तक की हर आतंकवादी घटना की ख़बरों में उसका नाम लिया गया है, जहाँ उसकी कोई ज़रुरत नहीं है. जिन घटनाओं में उसको कहीं भी अभियुक्त नहीं बनाया गया है. उन घटनाओं में भी आखिर के पाराग्राफ में चलते चलते खालिद मुजाहिद और तारिक कासमी का नाम दिया गया है. ऐसा जान पड़ता है कि अख़बार सभी पाठकों को ये पूरी तरह से याद करा देना चाहता है कि हरकतुल मुजाहिदीन के ये दो आतंकी हैं, जिन्हें किसी भी तरह की कानूनी सुविधा नहीं दी जानी चाहिए.

जब निमेष कमीशन रिपोर्ट जमा कर दी गई तो फिर अखबार की जिम्मेदारी थी कि वो ये पता करके पाठकों को बताये कि जिन लोगों को वो दुर्दांत आतंकवादी घोषित करता चला आर हा है उसे निमेष कमीशन ने क्या पाया है, लेकिन ऐसा लगता है कि ‘दी हिन्दू’ अख़बार का मिशन पूरा हो चूका था और उसे अब कोई चिंता नहीं थी कि उसके द्वारा प्रोफाइल कर दिए गए अभियुक्त मारे जाएँ.

ऐसा नहीं की ‘दी हिन्दू’ अखबार का ये मिशन सिर्फ खालिद मुजाहिद के लिए ख़ास था. बिलकुल यही पैटर्न बटला हाउस, हैदराबाद, मुंबई, दिल्ली और अन्य जगहों पर हुए ब्लास्ट के लिए इस्तेमाल किया गया है. बटला हाउस एनकाउंटर की पोस्ट मार्टम रिपोर्ट आने के बाद इसी अखबार की सारी दिलचस्पी ख़त्म हो गयी जैसे अखबार का काम सिर्फ आतंकवादी घोषित करना है. उनकी बेगुनाही के लिए आने वाले किसी सुबूत को सामने लाना नहीं.

यहाँ ‘दी हिन्दू’ अख़बार पर इसलिए बात की गयी, क्योंकि सिर्फ यही अखबार ऐसा था जो सबसे ज्यादा ख़ुफ़िया सूत्रों तक पहुँच रखता था. इसके पत्रकार की ख़ुफ़िया तंत्र में अन्दर तक पैठ नज़र आती थी. पहले उनकी रिपोर्टों से ये लगता था कि हरकतुल मुजाहिदीन और इंडियन मुजाहिदीन नाम का आतंवादी संगठन सचमुच में भारतीय मुसलामानों में पैठ बना चूका है. लेकिन बाद में आने वाले सुबूतों और रिपोर्टों से और पुलिस की अदालत में एक के बाद एक मामले हो रही असफलता ने ये जाहिर कर दिया कि दी हिन्दू अखबार की रिपोर्टिंग का एक विशेष एजेंडा था, जो पूरा होने के बाद ख़त्म हो गया. जितनी बड़ी बड़ी हेडलाइंस के साथ और जितने विश्वास के साथ ‘दी हिन्दू’ अखबार ने पुलिस और ख़ुफ़िया के दावे प्रकाशित किये थे. लेकिन अदालत में उसके दावों की पोल खुलती चली गयी और ‘दी हिन्दू’ अख़बार ये नहीं बता सका कि जो बड़े बड़े दावे उसने ख़ुफ़िया सूत्रों के माध्यम से जनता को पहुंचाए थे वो आखिर कैसे औंधे मुह कोर्ट में धराशायी हो गए? कोर्ट में चल रही करवाइयों से आम हिन्दू जनमानस बेख़बर है. कितने मास्टर माइंड बेगुनाह बरी हो रहे हैं, लेकिन इन अखबारों के पास उनके बरी होने की ख़बर छापने के लिए दो लाइन नहीं हैं. इन अखबारों को इस बात की कोई चिंता नहीं हैं कि इन आरोपियों का अदालत से बरी हो जाने के बाद में समाज की नज़र में उनका बरी होना भी ज़रुरी है ताकि वो सम्मान का जीवन गुजार सकें.

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