Abhishek Upadhayay
नरेंद्र मोदी को भगवान मानते थे वंजारा… जिस वक्त वे गुजरात में फर्जी एनकाउंटरों की अगुवाई कर रहे थे, उस वक्त नरेंद्र मोदी ही उनके भगवान थे. उस वक्त जो कहानी हवा में तैर रही थी. उसके मुताबिक नरेंद्र मोदी को मारने की कोशिश में पाकिस्तान से एक से बढ़कर एक खूंखार आतंकी भेजे जा रहे थे. और वंजारा किसी सुपरमैन की तरह अचानक प्रकट होकर इन आतंकियों के सीने में एके-47 की पूरी की पूरी बैरल खोल देते थे.
अदभुत था भगवान और भक्त का ये रिश्ता… मगर समय बदला… भक्त जेल चला गया और भगवान राजकाज में मस्त हो गए. 6 साल से भक्त जेल में है, उधर भगवान और छोटे भगवान राज्याभिषेक की तैयारियों में व्यस्त हैं. वक्त सच का सामना करा ही देता है, वंजारा साहब!
आप तो फिर भी बड़े अधिकारी हैं. कुछ घंटे पहले तक आईपीएस हुआ करते थे… (इस्तीफा स्वीकार होने तक अभी भी आईपीएस ही मानूंगा) आपके साथ यह हुआ! बहुत अफसोस की बात है…. वंजारा साहब! बहुत अफसोस की बात है…
अब ज़रा सोचिए कि उन बेचारे गरीब, पिछड़े और आदिवासियों के साथ पिछले 10 सालों से क्या हो रहा होगा जिन्हें आपके इन्हीं भगवान ने धर्म की छुरी पकड़ा दी थी. इशारा कर दिया था कि मारो… हम तुम्हारे साथ हैं… तुम्हें कुछ नहीं होगा…. जमकर खून बहाया उन गरीब, पिछड़े, आदिवासियों ने…. उनका अपना भी खून बहा….
अब पिछले 10 सालों से साबरमती से लेकर बनासकांठा की जेलों में सड़ रहे हैं. घरवाले भूखे मर रहे हैं. बेटियां अधेड़ उम्र के तोंदलाए शरीर वाले ढक्कनों से ब्याही जा रही हैं. बेटे जेबें काट रहे हैं या फिर तपती दोपहरी में ईंटा, गारा उठा रहे हैं. भगवान ने अपने और छोटे भगवान यानि अमित शाह साहब के केस लड़ने की खातिर राम जेठमलानी जैसा वकील तैनात कर रखा है.
मगर भगवान के बहकावे में पहले खून बहाकर अब खून के आंसू रोने वाले इन बेचारों के लिए यूपी के श्रावस्ती जिले के उदईपुर जैसे मामूली गांव तक का भी कोई वकील साथ देने को नहीं खड़ा है, क्योंकि उसे भी 50-100 रुपए रोज़ के चाहिए ही होते हैं. ये बेचारे तो इतना भी नहीं दे सकते.
ध्यान देने वाली बात है कि ये सब के सब हिंदू हैं. जैसे वंजारा साहब भी हिंदू हैं. जी हां, सब के सब हिंदू हैं… मगर हिंदू हृदय सम्राट के लिए ये सब “यूज एंड थ्रो” हो चुके हैं. जैसे कि अब वंजारा साहब को अहसास हुआ है कि वे भी “यूज एंड थ्रो” हो चुके हैं. यानि इस्तेमाल किया और फेंक दिया. या यूं कह लें कि चूस लिया और गुठली फेंक दी. वो भी पैरों से ठेलकर. फेंकने के लिए हाथ का भी इस्तेमाल नहीं किया.
वंजारा साहब! हैरान मत होइए… धर्म की राजनीति ऐसी ही होती है. आपको आपके किसी भगवान ने धोखा नहीं दिया है. आपने खुद अपनी आत्मा को धोखा दिया है. अब भुगतिए… ये कोई पहली बार नहीं हुआ है. कश्मीर के गिलानियों ने भी वहां के मुसलमानों के साथ यही किया है. बिजनेस क्लास से नीचे जहाज़ में सफर नहीं करते हैं. ये गिलानी और यासीन मलिक टाइप के मुसलमानों के खैरख्वाह…
पता कीजिए कि इनके बेटे और बेटियां देश विदेश के किन स्कूलों में पढ़ रहे हैं. जितनी उनकी एक साल की फीस है, उतने में गरीब मुसलमानो के कई परिवार कई साल पल जाएंगे. मगर इनके उकसावे में आकर बंदूक उठाने वाला बेचारा गरीब घर के मुसलमान का बेटा अपनी पूरी जवानी जेल की चौखट में सड़ा देता है. कोई पूछने तक नहीं जाता है.
पुलिस उसके निर्दोष मां बाप और भाई बहन को भी एक झटके में खतरनाक आतंकी साबित कर देती है. कोई आंख उठाकर नहीं देखता है. जीते जी हो रही इन मौतों की तरफ. ये भी बेचारे हैं… इनका भी इसी तरह से भगवानों ने इस्तेमाल कर लिया, अपने सियासी फायदे के लिए और फिर चूसकर फेंक दिया.
वंजारा साहब! धर्म की राजनीति इस्तेमाल करना जानती है…. सिर्फ इस्तेमाल… अपने फायदे के लिए… मुनाफे के लिए… अपनी सत्ता के लिए… आप तो इसी कहानी के एक किरदार थे न… एक ऐसा किरदार जो इस पूरी कहानी को सुनने, जानने और समझने के बावजूद राजी खुशी इसका हिस्सा बनने को तैयार हुआ था… ये कहानी यहीं समाप्त होती है, वंजारा साहब… जेल मुबारक!