BeyondHeadlines News Desk
लखनऊ : उत्तर प्रदेश में आतंकवाद के नाम पर जेलों में कैद वबरी हुए युवकों को जेल प्रशासन, खुफिया व सुरक्षा एजेंसियोंद्वाराधमकाने व उत्पीड़न के खिलाफ रिहाई मंच ने यूपी प्रेस क्लब लखनऊ में प्रेसवार्ता कर पुलिस के आपराधिक वषड़यंत्रकारी रवैयों को उजागर किया.
प्रेस वार्ता में लखनऊ जेल से छूटे चिकमंडी निवासी जियाउद्दीन ने कहा किदो दिनों पहले 15 जून को दो मोटर साइकिलसवार लोगों ने मेरे मोहल्ले मेंमुझे रोक कर कहा कि जेल से छूट गए हो, लेकिन हमसे नहीं बच पाओगे. इस तरहके अपमानजनक शब्द, गालियां और धमकी देते हुए कहा कि जाकर अपने साथियोंसे कह दो कि वो छूटने की कोशिश क़तई न करें और अपने बाप शोएब से कह दो कि कितने लोगों को कितने दिन तक छुडाएंगे.
उन्होंने बताया कि मोटर साइकिल सवार अपने कमर में पिस्तौल बांधे हुए थे और चलते-चलते पिस्तौल दिखाकर डराने की कोशिश की. इस घटना पर उन्होंने एटीएस और खुफिया एजेंसियों की भूमिका पर सवाल उठाया. उन्होंने बताया कि थाना प्रभारी वजीरगंज को जब इस घटना की जानकारी दी गई तो उन्होंने रिपोर्ट दर्ज करने से इन्कार कर दिया तथा अनावश्यक मुझे ही परेशान करने लगे.
जियाउद्दीन ने कहा कि इसके बाद मुख्यमंत्री और डीजीपी समेत सभी आला अधिकारियों को पत्र भेजकर घटना से अवगत करा रिपोर्ट दर्ज करने का अनुरोध किया है. लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है.
लखनऊ जेल में बंद तारिक़ कासमी के पत्र का हवाला देते हुए रिहाई मंच के अध्यक्ष मो. शुऐब ने कहा कि जिस तरह से लखनऊ जेल में आतंकवाद के नाम पर कैद समेत अन्य कैदियों के बीच में जातिगत, धार्मिक, क्षेत्रीय तथा राष्ट्रवाद के नाम पर तनाव व्याप्त करने की कोशिश जेल सुपरिटेंडेंट केशव प्रसाद यादव व अन्य जेल कर्मियों द्वारा की जा रही है, वह एक खतरनाक षड़यंत्र की तरफ इशारा है.
जिस तरीके से जातिगत आधार पर जेल सुपरिटेंडेंट केशव यादव द्वारा आईजी जगमोहन यादव का हवाला देकर धौंस जमाई जा रही है, उससे जेल में कैदी असुरक्षित महसूस कर रह है. सरकार इस पर गंभीरता से संज्ञान नही ले रही है. इसी के चलते पिछले साल 18 मई को खुफिया एजेंसियों ने खालिद मुजाहिद की हत्या कर दी थी.
उन्होंने कहा कि जिस तरीके से जेल प्रशासन द्वारा पाकिस्तानी और भारतीय कैदियों के बीच में विवाद पैदा करने की कोशिश की जा रही है, उसे सरकार को संज्ञान लेना चाहिए. क्योंकि अगर कोई अनहोनी हो जाती है तो यह एक अंतर्राष्ट्रीय मसला होगा. इंसाफ पसंद आवाम यह कतई नहीं बर्दाश्त करेगी चाहे वह पुणे की यरवदा जेल में किसी कतील सिद्दीकी की हत्या हो या पाकिस्तान की जेल में सरबजीत की. उन्होंने इस घटना को खुफिया एवं सुरक्षा एजेंसियों का षड़यंत्र कहते हुए उच्च स्तरीय जांच की मांग की.
प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति व सामाजिक कार्यकर्ता रूपरेखा वर्मा ने कहा कि पिछले दिनों जिस तरह पुणे में सांप्रदायिक तनाव पैदा कर आईटी प्रोफेशनल मोहसिन की हत्या की गई, तो वहीं जिस तरह खुफिया एजेंसियों ने सांप्रदायिक व आर्थिक उदारीकरण की नीतियों के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले सामाजिक संगठनों पर नकेल कसने की कोशिश की, उससे यह नहीं समझना चाहिए कि इंसाफ पसंद आवाम आवाज़ उठाना बंद कर देगी.
आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाहों को रिहा न करने के सवाल पर सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी एसआर दारापुरी ने कहा कि सरकार की कमजोर इच्छाशक्ति और खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों के दबाव के चलते बेगुनाह जेलों में कैद हैं.
उन्होंने कहा कि आतंकवाद के बहुतेरे मामलों में विवेचना की धांधलियों के चलते इंसाफ नहीं हो पा रहा है. एजेंसियां सांप्रदायिक राजनैतिक शक्तियों के साथ मिलकर देश में ‘टेरर पॉलिटिक्स’ को बरक़रार रखकर जनता के मूलभूत सवालों को हाशिए पर रखना चाहती है.
पुणे, मेवात व मुज़फ्फरनगर समेत देश में सांप्रदायिक ताक़तों के बढ़ते वर्चस्व के सवाल पर बोलते हुए वरिष्ठ रंगकर्मी राकेश ने कहा कि सरकार बनने के बाद पूरे देश में जो सांप्रदायिक तनाव फैल रहा है वही मोदी सरकार का गुजरात मॉडल है. उन्होंने कहा कि यह इसी विकास मॉडल में संभव है कि जिन लोगों ने अपने देश समेत, दो देशों के बीच में तनाव पैदा करने के लिए समझौता कांड, मालेगांव विस्फोट करवाया हो, उनके आरोपियों के साथ गृह मंत्री और प्रधानमंत्री की तस्वीरें मीडिया मे आ चुकी हैं. ऐसे में भविष्य में इस पर आश्चर्य नहीं करना चाहिए कि ऐसे लोगों को रिहा करके उनको देश रक्षक घोषित करने की कोशिश की जाए.
इंडियन नेशनल लीग के राष्ट्रीय अध्यक्ष मोहम्मद सुलेमान ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार ने अगर निमेष कमीशन की रिपोर्ट पर दोषी पुलिस अधिकारियों व सुरक्षा एजेंसियों के खिलाफ कार्यवाई की होती तो सुरक्षा और खुफिया एजेंसियां इस तरह की करतूतें करने से बाज आतीं. अखिलेश सरकार की इसी नाकामी की वजह से मौलाना खालिद मुजाहिद की हत्या पिछले साल हुई थी. ऐसे में अगर जियाउद्दीन के एफआईआर पर कार्यवाई करते हुए दोषियों को दंडित नहीं किया गया तो आवाम के बीच इस सवाल को लेकर उतरा जाएगा. क्योंकि यह सिर्फ यूपी का मामला नहीं है, बल्कि पूरे देश में कैद बेगुनाहों की जिंदगी और उनके इंसाफ का सवाल है.
नागरिक परिषद के नेता रामकृष्ण ने कहा कि जिस तरह से जियाउद्दीन को धमकी देने वाले लोगों ने रिहाई मंच के अध्यक्ष मो. शुऐब, जो आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाहों की कानूनी लड़ाई भी लड़ते हैं, को धमकी देने का प्रयास किया है उसे उत्तर प्रदेश सरकार को गंभीरता से लेने की ज़रूरत है. मो. शुऐब पर इन मुक़दमों को लड़ने की वजह से पहले भी हमले हो चुके हैं और चार साल पहले ऐसे ही मुक़दमें लड़ने वाले शाहिद आज़मी की मुंबई में हत्या कर दी गई थी, फिर भी इंसाफ की लड़ाई नहीं रुकी.
उन्होंने कहा कि सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों को यह जान लेना चाहिए कि उनके दर्जनों आईपीएस रैंक के अधिकारियों को गुजरात में दिवंगत मुकुल सिन्हा ने जेल की सलाखों के पीछे भिजवाया और देश में इंसाफ के झंडे को बुलंद किया.