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अरविन्द केजरीवाल की चुनौतियां…

Amit Bhaskar for BeyondHeadlines

आज बहुत दिन बाद नई दिल्ली में अरविन्द की ‘पदयात्रा’ को कवर करने का अवसर मिला. थी तो पदयात्रा पर रैली में बदल गयी. लोगों का हुजूम देखकर अहसास हुआ दिल्ली की पब्लिक अब भी अरविन्द के साथ है. बूढ़ी औरतें अरविन्द को आशीर्वाद देना अब भी नहीं भूलती हैं. बच्चे अब भी खेल के मैदान की सफाई ना होने पर शिकायत करना नहीं भूलते हैं. सड़क किनारे खड़े लोग अरविन्द को गले लगाने को बेताब रहते हैं.

अरविन्द भी किसी को निराश नहीं करते हैं. माता पिता बच्चों को गोद में लेकर बस अरविन्द से गाल छुआना चाहते हैं. अरविन्द भी बड़े प्यार से बच्चों से मिलते हैं. युवाओं की टोली आगे-आगे ‘5 साल केजरीवाल’ गाते हुए डांस करती है. दूसरी टोली “हम जिएंगे और मरेंगे , ए वतन तेरे लिए …” गीत गाते हुए मस्त चाल में चलती है.

पुरुषों की पूरी टोली इस बात का ध्यान रखती है कि किसी भी महिला के साथ धक्का-मुक्की या बदतमीजी ना हो. बच्चे साईकिल पर केजरीवाल और भारत माता की जय के नारे लगाते हुए आगे-आगे चलते हैं. अरविन्द को देखने लोग बालकनी में आते हैं… ऊपर से ही हाथ हिला कर समर्थन जताते हैं. कुछ लोग अरविन्द के चले जाने पर कहते हैं कि जीतेगा तो यही, लेकिन थोड़े कम वोट से… फिर कुछ लोग उस आदमी को समझाने में लग जाते हैं. अरविन्द आगे बढ़ते हैं… तय रुट से जाने के बजाये अरविन्द हर उस जगह जाते हैं, जहाँ लोग उनके इंतज़ार में खड़े हैं. फिर चाहे वो रूट में हो या ना हो…

आज लगा कि लोगों के बीच अरविन्द का क्रेज़ कम नहीं हुआ है. हाँ! थोड़ी सी नाराज़गी ज़रूर है, जो मुझे लगता है धीरे-धीरे इस तरह की पदयात्राओं से ख़त्म हो जाएंगी. देखने में यह भी आया कि कुछ कट्टर भाजपा समर्थक अब सकुचाते हुए ही सही, लेकिन आम आदमी पार्टी को सही मानने लगे हैं. लेकिन इन सबके बावजूद अरविन्द केजरीवाल की राह बिल्कुल ही अड़चनमुक्त है ऐसा भी नहीं है.

अरविन्द के सामने अब भी लोगों को भरोसे में लेने की चुनौती है. जो लोग अरविन्द के इस्तीफे से नाराज़ हैं, उन्हें मनाना अब भी एक बड़ी चुनौती है. सरकारी कर्मचारियों के बीच मोदी लहर में सेंध लगना अब भी एक चुनौती है. हालांकि सरकारी आवास में रहने वाले लोग अपने “देश में मोदी, दिल्ली में अरविन्द” वाले कांसेप्ट से अब भी जुड़े दिखाई पड़ते हैं.

अरविन्द की अपनी विधानसभा पूरी तरह युवा कार्यकर्ताओं के मेहनत पर टिकी है. अरविन्द के व्यस्त रहने के बावजूद अगर नई दिल्ली के लोग अरविन्द के समर्थन में हैं, तो उसका पूरा श्रेय वहाँ के कार्यकर्ताओं को जाता है, जो दिन रात लोगों की समस्याओं को सुलझाने के लिए काम कर रहे हैं.

दिल्ली का चुनावी समर करीब है. किरण बेदी के भाजपा में आ जाने से मुक़ाबला और दिलचस्प हो गया है, लेकिन बेदी भाजपा के लिए संजीवनी साबित होती हैं या विष… ये 10 फ़रवरी को ही पता लग पाएगा. तब तक दिल्ली की सियासत को एन्जॉय कीजिए….

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