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एक होती है जेल की ईद

Afroz Alam Sahil, BeyondHeadlines

दिल्ली: ईद के मायने हैं खुशी… खुशी अपनों से मिलने की, उनके साथ खाने-पीने, उठने-बैठने, खेलते-हंसने और बोलने-बतियाने की. लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिनके लिए ईद ग़म लेकर आती है.

यूं तो आमतौर पर उनकी ज़िन्दगी मुश्किल है, लेकिन ईद उनके लिए हालात और मुश्किल कर देती है. उन्हें अहसास होता है कि वो अपने परिवार से कितने दूर हैं, कितने अकेले हैं.

हम बात कर रहे हैं उन लोगों की, जो भारत के विभिन्न जेलों में बंद हैं. उनमें विचाराधीन क़ैदी भी हैं और दोषी भी.

तिहाड़ जेल के एक वरिष्ठ अधिकारी नाम न प्रकाशित करने के शर्त पर बताते हैं कि –‘ईद के दिन जेल के अंदर खुशी का माहौल होता है. उनके लिए खास पकवान बनाया जाता है. सब एक साथ नमाज़ पढ़ते हैं, इसके लिए बाहर ईमाम बुलाया जाता है ताकि वो इन्हें ईद की नमाज़ पढ़ा सके.’

वो बताते हैं कि –‘तिहाड़ में इस समय तक़रीबन 14,500 क़ैदी हैं, उनमें क़रीब 3 हज़ार से अधिक क़ैदियों ने इस बार रोज़ा रखा है. इनमें कई हिन्दू क़ैदी भी शामिल हैं. इनके लिए सहरी व इफ़्तारी का जेल प्रशासन खास इंतेज़ाम करती है.’

लेकिन 14 साल जेल में रहे और अदालत से बेगुनाह साबित होकर बाईज़्ज़त बरी होने वाले मो. आमिर खान जेल के अंदर अपनी ईदों को याद करते हुए बताते हैं कि –‘यूं तो जेल का हर दिन एक जैसा ही होता है, लेकिन ईद का मौक़ा जब आता है तो बाहर की दुनिया में खुशियां ही खुशियां होती हैं, मगर जेल की दुनिया में ग़म और छाई हुई होती है. सभी अपने पुराने दिनों को याद कर रहे होते हैं. कुछ रो रहे होते हैं, तो कुछ अपने ग़म को छिपाने के लिए ज़बरदस्ती मुस्कुराने की कोशिश करते हैं. इस ग़म में हिन्दू क़ैदी भी उनके साथ होते हैं. उन्हीं को ईद की सेवईयां खिलाकर और उनसे गले मिलकर अपने ग़म को कम करने की कोशिश में पूरे दिन लगे होते हैं.’

आमिर बताते हैं कि –‘मेरी 14 ईदें जेलों के अंदर हुई हैं, जिनमें 10 ईद तिहाड़ में गुज़रे हैं. लेकिन मेरे सामने ऐसा कभी नहीं हुआ कि सारे क़ैदियों ने एक साथ ईद की नमाज़ पढ़ी हो. ज़्यादातर क़ैदी अपने-अपने बैरकों में ही नमाज़ अदा करते हैं. क़ैदियों में से ही एक क़ैदी ईमाम बनता है और ईद की नमाज़ पढ़ाता है.’

वो बताते हैं कि –‘रमज़ान का आख़िरी अशरा काफी तकलीफ़देह होता है. अंडरट्रायल क़ैदियों के परिवार वाले उनके लिए नए कपड़े लाकर देते हैं. ईद की मुबारकबाद देते हैं, लेकिन दिल से वो भी हो रहे होते हैं. उनके जाने के बाद वो क़ैदी भी रो रहा होता है.’

आमिर आगे बताते हैं कि –‘जो दोषी क़ैदी हैं, उन्हें ईद के दिन भी जेल वाला कपड़ा ही पहनता होता है.’

आमिर के मुताबिक़ –‘जेल सुप्रीटेंडेन्ट ईद के दिन सभी बैरकों में जाकर मुस्लिम क़ैदियों को ईद की मुबारकबाद देते हैं. जेल के खाने में ईद के दिन सेवईयां भी बनती हैं, लेकिन उसकी क्वालिटी कोई खास नहीं होती लेकिन हां, कैन्टिन में भी सेवई व मिठाईयां बिक रही होती हैं, जिसे मुस्लिम क़ैदी खरीदकर अपने हिन्दू साथियों को खिलाते हैं. ऐसे में जेल के अंदर ईद के दिन साम्प्रदायिक सौहार्द का काफ़ी ज़बरदस्त माहौल देखने को मिलता है.’

आमिर बताते हैं कि –‘ईद का दिन क्योंकि छूट्टी का दिन होता है, इसलिए उस दिन कोई किसी से मुलाक़ात करने नहीं आता.’ जेल में मुलाक़ात के सिलसिले में वो बताते हैं कि आमिर बताते हैं कि –‘तिहाड़ जेल के अंदर जो मुलाक़ात होती है, वो एक मीटर के फासले से होती है. बीच में जाली या शीशा लगा होता है. लेकिन रक्षा-बंधन के दिन सबकी मुलाक़ाते आमने-सामने होती हैं. बहने अपने क़ैदी भाईयों को अपने हाथों से राखियां बांधती हैं, मिठाईयां खिलाती हैं. यानी हम एक-दूसरे को छूकर देख सकते हैं.’

आमिर की आपबीती बताती है कि जेलों में क़ैदियों के लिए हालात में सुधार की बहुत गुंज़ाईश है. वो बताते हैं कि –‘जेल प्रशासन को इस दिशा में सोचना चाहिए कि कम से कम ईद के मौक़े से मुस्लिम क़ैदियों को अपने परिवार वालों से रक्षा-बंधन के तरह मिलने दिया जाए. क्योंकि जेलों में सबसे अधिक मुस्लिम क़ैदी रह रहे हैं. ऐसा मैं नहीं, बल्कि सरकारी आंकड़ें बताते हैं.’

आमिर बताते हैं कि –‘ऐसा नहीं है कि ईद के दिन सिर्फ़ जेल के अंदर ग़म का माहौल होता है, बल्कि बाहर की दुनिया क़ैदियों के घर वाले भी ईद की खुशियां नहीं मना पाते हैं. उनके लिए भी ईद काफी मुश्किल होती है.’

आमिर एक लंबी बातचीत में यह भी बताते हैं कि –‘जेल के क़ैदी भी ज़कात-खैरात के हक़दार हैं. हमारे बरादाने-वतन को इस ओर एक बार ज़रूर सोचना चाहिए.’

खासतौर पर अपने मुसलमान भाईयों से अपील करते हुए आमिर कहते हैं कि –‘कम से कम त्योहार के मौक़े पर क़ैदियों के परिवार वालों को न भुलाया जाए, बल्कि जितनी हो सके, उनकी मदद की जाए ताकि उनके भी ज़ख़्मों पर महरम लग सके’

तिहाड़ जेल में ईद के मनाने के तरीक़ों के बारे में जेल के जनसम्पर्क पदाधिकारी मुकेश प्रसाद से बात करने पर वे इस सिलसिले में बात करने से इंकार कर देते हैं. उनका स्पष्ट तौर पर कहना है कि आपको जेल के बारे में कुछ भी जानने के लिए भारत सरकार के गृह मंत्रालय से इजाज़त लेनी होगी. क्योंकि सरकार के दिशानिर्देशों के तहत गृह मंत्रालय की आज्ञा के बग़ैर जेल के अधिकारी किसी से बात नहीं कर सकते हैं.

स्पष्ट रहे कि जेल का मक़सद होता है कि अपराधियों को सुधारकर वापिस समाज से जोड़ा जाए. इसके लिए उनका समाज से जुड़े रहना भी ज़रूरी है और त्यौहारों से भी. ऐसे में प्रशासन की ओर से यह व्यवस्था की जा सकती है कि जेल के क़ैदियों को भी ईद को ईद की तरह मनाने दिया जाए. कम से कम त्यौहार का दिन तो ऐसा होना ही चाहिए, जब सबको खुश होने का अधिकार हो, यानी ईद हो तो सबकी हो.

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