#2Gether4India

ये कैसी बदसूरत नफ़रतों को सींच रहे हो तुम?

By Rujuta Shuchita Anand

ये कैसी बदसूरत नफ़रतों को सींच रहे हो तुम

पीढ़ी दर पीढ़ी

क्यों भूल रहे हो

कि जो तुम्हारा है आज

कभी किसी और का था

और कल किसी और का होगा

कैसे नज़रअंदाज़ किए जा रहे हैं

इस बात को

कि ना तो ये जिस्म अमर है

और ना ही ये बेहूदा क़ायदे-क़ानून

ग़ौर फ़रमाए तो समझ आता है

दरअसल

ये ज़िन्दगी, ये रुतबा, 

ये अदब, ये प्रतिष्ठा

ये सब खैरात में मिली है तुम्हें

उनसे

जिनसे

आज

बे-इन्तहा 

नफ़रत करते हो तुम

जब उनकी सौ सांसे रुकी

तब जाकि तुम्हारी एक सांस बनी थी

जब उनका लहू ज़मीन की आगोश में सो रहा था

तब जा के तुम्हारे ज़मीर ने सिर ऊपर उठाया था

उनकी अनगिनत पीढ़ियों के खाली पेटों ने,

हाथों में पड़े छालों ने

तुम्हारे निवालों को थाली में सजाया था

उनके साएं से मुकरते हो आज भी

जबकि जिस सड़क पर चलते आए हो अब तक

उन्होंने अपने पसीने से सींचा था

तुम्हारे घरों के उजालों में

उनकी अश्कों का ही तो तेल था

कैसे भूल रहे हो ये सब

अब

जब बारी उनकी है

तुमसे बराबरी ना करें वो,

ये ज़िद नहीं

तुम्हारे भीतर की

बुज़दिली है…

बढ़ा लो जितने भी फ़ासले

चाहे तुम

सच तो ये है

कि उनकी बदौलत

आज यूं

इतरा रहे हो तुम…

आगे बढ़ो

हाथ बढ़ाओ

जाति, धर्म, ईमान नहीं

इंसान से नाता बनाओ

सच तो यही है आख़िर

मिट्टी से बने हो

और मिट्टी में ही

सो जाओगे तुम

या फिर हवा में 

कहीं खो जाओगे तुम

या फिर मिट्टी में 

मिल जाओगे तुम…

उस मिट्टी से क्या

नफ़रत के ही पेड़ 

उगाओगे…?

किसी पेड़ की

छांव में

घड़ी भर रूको अगर कभी

तो दो पल के लिए

इस बात पर भी ग़ौर

फ़रमाओ तुम…

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