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पढ़िए! कश्मीर के नौजवान की लिखी ये नज़्म

By Tabasum Rasool

अभी कोई ईद थी शायद

ईद होती तो घर पर होते

घर पर न सही, फ़ोन पर बात तो होती

सब वहां परेशान होंगे

ऐसे ही जैसे मैं यहां

कैसे निवाले उठाए होंगे

किस तरह बच्चों को ईदी दी होगी

क्या बच्चों को नए कपड़े मिल गए होंगे

क्या लोग ईदगाह गए होंगे

फिर जाते थे शहीदों के मज़ारों पर

क्या इस बार गए होंगे

सुना है हर सू कर्फ़्यू है वहां

ऐसा पहले भी तो हुआ है

इससे बुरा भी तो देखा है

बच्चा, जवान और पीर

सबके जनाज़े देखे हैं

लोगों की हिम्मत भी देखी है

पत्थर से बंदूक़ का मुक़ाबला देखा है

वो जो जान से प्यारे हैं सबके

उनके लिए लोगों को मरते देखा है

ये क़ौम ग़ुलाम हो नहीं सकती

ये क़ौम है ज़िन्दा दिल लोगों की

ये ज़ुल्मत भी छट जाएगा

नूर से रौशन होगी सुबह

तब हम ईद मनाएंगे…

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