BeyondHeadlines News Desk
पटना धमाके की गुत्थी सिर्फ आठ-नौ घंटे के भीतर सुलझ गई. इसके सारे मास्टरमाइंड्स को गिरफ्तार किया जा चुका है. मीडिया की खबरें बता रही हैं कि इस आतंकी घटना की पूरी साजिश रचने वाला मुख्य अभियुक्त भी अब पुलिस की गिरफ्त में है. शायद यह पहली ऐसा आतंकी घटना है, जिसमें तफतीश शुरू होने के अगले आठ-नौ घंटे के अंदर ही सब कुछ सामने आ गया.
शायद ऐसा पहली बार हुआ कि इस बार हर बार की तरह पुराना, बासी, पैबंद-दार और घीसा-पीटा जांच का फार्मूला नहीं दोहराया गया. हमेशा सुस्त रहने वाली पटना पुलिस ने इस बार ऐसी चुस्ती-फुर्ती दिखाई कि ऑन-स्पॉट ‘आतंकी’ को दबोच लिया गया. यह अलग बात है कि वो चिल्लाता रहा कि मैं बेगुनाह हूं और मेरा नाम पंकज है. और सिर्फ वही नहीं, बल्कि भाजपा कार्यकर्ताओं ने भी हंगामा किया कि वो बेगुनाह है और भाजपा का कार्यकर्ता है. लेकिन पुलिस ने इनकी एक न सुनी. (आप न्यूज़-24 का वीडियो क्लिप यहां देख सकते हैं-http://www.youtube.com/watch?v=gHnO54gAOIQ). दूसरे चैनलों पर भी इस फूटेज को दिखाया गया था, जिसमें स्पष्ट रूप से पकड़े गए संदिग्ध के गले में भाजपा का झंडा भी आसानी के साथ देखा जा सकता है. और एक और खास बात कि सारे अखबारों के कैमरों इस संदिग्ध के चेहरे पर चमकते रहे, लेकिन किसी ने उसकी तस्वीर अपने अखबार में नहीं छापी है.
शायद ऐसा पहली बार हुआ कि धमाका होते ही मीडिया ने चीख-पुकार नहीं मचाई. चैनलों पर दौड़ते-भागते लोग नहीं दिखें. बल्कि सब नरेन्द्र मोदी के भाषण पूरे उत्साह के साथ सुनते रहे और चैनल वाले उसे दिखाते रहे. पाँच बेगुनाह मारे गए और किसी के आँखों से पाँच आँसू भी नहीं टपके… कौन थे वे मासूम लोग… किन सपनों के साथ आए थे गाँधी मैदान… क्या ख्वाहिशें थी उनकी या किस परेशानी से जूझ रहे थे वो… बस धूल का गुबार उड़ा और पाँच जिंदगियाँ जाया हो गईं… और जैसे ही भाषण खत्म हुआ मीडिया ने पूरे मसले का हल निकाल दिया. तुरंत यह पता चल गया कि रांची से यह आतंकी आए थे और भटकल के सहयोगी हैं. इस घटना को मुज़फ्फरनगर के साथ जोड़ दिया गया, ताकि राहुल गांधी के मसले का हल भी इसी के साथ निकल जाए.
शायद यह मसले का हल ही था कि जो अपने आपको पंकज बताता रहा, वो अब ऐनुल उर्फ इम्तियाज़ बन चुका था. जिस संदिग्ध को भाजपा कार्यकर्ता अपना कार्यकर्ता बताते रहे थे, उसे तुरंत आईएम का मास्टरमाइंड बना दिया गया. मोदी का समर्थक एक पल में भटकल का साथी बन चुका था.
एक अंग्रेज़ी वेबसाइट (firstpost.com) की गलती को देखकर अंदाज़ा लगाईए कि इतना ज़िम्मेदार वेबसाइट ऐसी गलती कैसे कर सकता है? इस वेबसाइट ने 6.35 में यह खबर प्रकाशित की कि बिहार डीजीपी के मुताबिक तीन लोगों को गिरफ्तार किया गया है, जिनके नाम रामनारायण सिंह, विकास सिंह और मुन्ना सिंह है. खबर तेज़ी के साथ लोगों तक पहुंचती रही, लेकिन बाद में इसके नीचे प्रकाशित कर दिया गया कि ‘Correction: We regret putting up an earlier update where we mentioned the three deceased as suspects because of an erroneous report.’
शायद यह पहली घटना थी जिसमें पुलिस को आनन-फानन में उस बाजार पता नहीं लगाना पड़ा कि कहां से साइकिल खरीदी गई थी. (ये अलग बात है कि साइकिल की न तो कोई आर सी होती है, नहीं लाइसेंस प्लेट और नहीं चालक का कोई लाइसेंस.), क्योंकि इस बार साईकिल बम का इस्तेमाल के बजाए टाइमर बम कुकर बम का इस्तेमाल किया गया था. और पुलिस के छापा मारते ही कुकर प्राप्त हो गया. (हालांकि कुकर आप सबके घरों में भी ज़रूर होगा)
शायद ऐसा पहली बार हुआ कि पुलिस को स्केच बनवाने की ज़रूरत नहीं पड़ी. हालांकि स्केच बनवाने में पुलिस को कोई दिक्कत नहीं आती है, क्योंकि साइकिल की दुकान वाले को साइकिल खरीदने वाले का चेहरा हूबहू याद रहता है. चाहे साइकिल महीनो पहले ही क्यों न खरीदी गई हो. वो आतंकियों का स्केच हूबहू तैयार कराते रहे हैं और यह स्केच भी किसी कुख्यात आतंकी चेहरे से मिलता जुलता रहता है. (ये अलग बात है कि हम जिस दुकान से पानी की बोतल या अखबार खरीदते हैं, उस दुकानदार का चेहरा भी हमें शायद ही याद रहता हो.)
शायद ऐसा पहली बार हुआ कि सुरक्षा एजेंसियों को ज़्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी. ज़्यादा छापे नहीं मारने पड़े. दो-तीन छापों में ही पूरा काम निकल आया. नहीं तो अब तक को यही होता आया है कि हमारी सुरक्षा एजेंसियां आनन फानन में छापा मारती है. संदेहास्पद लोग पकड़े जाते हैं. उनके पास ये चीजें ज़रूर बरामद होती हैं- उर्दू का एक अखबार, पाकिस्तान का झंडा, इंडियन मुजाहिदीन या सिमी का साहित्य, पाकिस्तान मेड असलहा, विदेशी करेंसी… (मानो आतंक के आका आतंकियों को हर ब्लास्ट से पहले एक विशेष प्रकार की किट से लैस करके भेजते हैं. ब्लास्ट की जगह अलग हो सकती है. ब्लास्ट का समय अलग हो सकता है, मगर ये किट जिसे सुरक्षा एजेंसियां बरामद करती हैं, हमेशा एक सी होती है. कभी नहीं बदलती.), लेकिन इस बार इन सबकी जगह संदिग्ध के ठिकाने से डेटोनेटर, सीडी, तस्वीरें, तार, कांच की गोलियां, पेन ड्राइव, हथौड़ी, केरोसिन तेल, विस्फोटक में इस्तेमाल करने वाले फ्यूज़ ज़रूर मिले हैं. और एक और अहम चीज़ जो प्राप्त हुआ है, वो है उर्दू साहित्य…
शायद ऐसा पहली बार हुआ कि इस आतंकी घटना को आईएम के देसी माड्यूल बताया गया, और साथ ही बोधगया धमाके साथ जोड़ कर देखा गया. हालांकि अब तक पुलिस को आनन-फानन में जिस माड्यूल का पता चलता था वो माड्यूल इन्हीं में से एक होता था. पुणे बेकरी ब्लास्ट. मुंबई झावेरी बाजार ब्लास्ट. यूपी संकटमोचन मंदिर ब्लास्ट. जयपुर जौहरी बाजार ब्लास्ट, दिल्ली सीपी-गफ्फार मार्केट धमाके…. इन माड्यूल का पता धमाके में इस्तेमाल की गई चीजों से चलता रहा है. जैसे साइकिल, बाल रिंग, शार्पनेल, टाइमर आदि और इसी से साबित हो जाता था कि धमाके सिमी ने किए हैं, हूजी ने या फिर इंडियन मुजाहिदीन ने (ऐसा लगता है कि जैसे कापीराइट एक्ट के तहत हर आतंकी संगठन ने अपने अपने धमाकों में इस्तेमाल होने की जाने वाली चीजों का रजिस्ट्रेशन करा लिया हो और एक आतंकी संगठन कानूनन दूसरे आतंकी संगठन के माड्यूल में इस्तेमाल की गई चीजों का इस्तेमाल नहीं कर सकता, नहीं तो शायद पटियाला कोर्ट दिल्ली में कापीराइट एक्ट के तहत इस मामले में दावा भी दायर किया जा सकता है.), लेकिन इस बार बगैर कॉपी-राइट्स वाले मॉड्यूल का इस्तेमाल कर लिया गया.
शायद ऐसा पहली बार हुआ कि आतंकी अपने जेब में अपने साथियों का नम्बर अपने साथ लेकर आया था. ताकि हम अगर डूबे तो साथ में अपने साथियों को भी ले डूबेंगे सनम… नहीं तो हमेशा से यही आया है कि ब्लास्ट कोई भी हो, कहीं भी हो, कैसा भी हो, खुफिया एजेंसियों के सूत्रों से मास्टर माइंड का नाम आधे घंटे के भीतर ही फ्लैश होना शुरु हो जाता था और वो इन्हीं में से कोई एक होता था. रियाज भटकल. इकबाल भटकल. यासीन भटकल… अहमद सिद्धी बप्पा उर्फ शाहरूख उर्फ यासीन अहमद. इलियास कश्मीरी. हाफिज सइद. लखवी… (मानो ये मास्टर माइंड कारनामे को अंजाम देते ही भारतीय सुरक्षा एजेंसियों को फोन कर रिपोर्ट करते हों कि सरकार काम हो गया, अब आप नाम आगे बढ़ा सकते हैं.), लेकिन भटकल तो इस बार जेल की हवा खा रहा है, तो उसके दोस्त काम को संभाल रहे हैं.
गृहमंत्री महोदय, कृपया ध्यान दें- एयरकंडीशंड कमरों में बैठकर हमारी सुरक्षा एजेंसियों और खुफिया एजेंसियों की इसी दिमागी मौज मस्ती के चलते, असली आतंकी तो पकड़ में आते ही नहीं, हां गरीब कमजोर बेगुनाहों को जेलों में ठूंसकर हर साल 26 जनवरी को वीरता पुरुस्कार जरूर हथिया लिए जाते हैं, नहीं तो अमेरिका में 9/11 के हमले के बाद किसी की कूवत नहीं हो पाई कि सार्वजनिक जगहों पर एक छुरछुरी भी फोड़ सके. और मोदी व उनके समर्थक भी इतने निडर नहीं हैं कि धमाके होने के बाद भी न डरे और दहाड़-दहाड़ कर अपना भाषण लोगों को सुनाते रहे और मीडिया उसे दिखाता रहे.
चलते-चलते आपको यह भी बताते चले कि पटना में नरेंद्र मोदी की ‘हुंकार रैली’ से पहले सीरियल ब्लास्ट को बीजेपी बड़ा मुद्दा बनाने जा रही है. आपके पार्टी के करीब आने वाले नीतीश सरकार को घेरने की रणनीति के तहत बीजेपी मंगलवार को देशभर में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर ब्लास्ट का ‘सच’ लोगों को बताएगी. समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक बीजेपी मंगलवार को देश के अलग-अलग शहरों में करीब दो दर्जन प्रेस कॉन्फ्रेंस करेगी. इसमें लोगों को इस सीरियल ब्लास्ट के अलग-अलग पहलुओं के बारे में बताया जाएगा.
और इन प्रेस कांफ्रेस में निशाने पर आप भी होंगे. आपका ‘म्यूजिक लॉन्च’ कार्यक्रम में शामिल होना दिक्कत खड़ा कर सकता है. आपके पहले भी शिवराज पाटिल बार-बार कपड़े बदलने को लेकर संकट में पड़ चुके हैं… खैर, यह राजनीति के खेल हैं, जिसे हम सब भारतीय बहुत आसानी के साथ समझ रहे हैं. एक ऐसा खेल जिसमें हम सबको बांटने की कोशिश चल रही है. ऐसे में ज़रूरत इस बात की है कि हम एकजूट होकर इस घटना में शहीद लोगों के इंसाफ की लड़ाई लड़े और आत्मा के शांति के लिए दुआ करें. मरने वालों ती संख्या अब 6 हो गई है और अभी भी 38 घायल लोगों का इलाज चल रहा है, जिनमें से 4 की हालत काफी गंभीर है. भगवान इस सब लोगों को जल्द से जल्द सेहत दे…